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इराक में ऑपरेशन 'बच्चा बम'

इस्लामी हुकूमत के लिए आईएसआईएस का प्लान कितना खौफनाक है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वो आठ साल की उम्र तक से बच्चों को अगवा कर उन्हें आतंकवादी बनाने में जुटा है.

पुलिस के हाथ लगा यह बच्चा पुलिस के हाथ लगा यह बच्चा
प्रियंका झा
  • नई दिल्ली,
  • 25 अगस्त 2016,
  • अपडेटेड 1:14 AM IST

सीरिया और इराक जैसे मुल्कों में आईएसआईएस की बदौलत फिदायीन हमलावरों और यहां तक मासूम मानव बमों की भी कोई कमी नहीं. लेकिन हाल के दिनों में ये पहला मौका है, जब इराक में पुलिस ने एक ऐसे मासूम मानव बम को काबू करने में कामयाबी हासिल की है, जो आतंकियों के इशारे पर अपने जिस्म पर बारूद बांध कर बेगुनाहों को मौत के घाट उतारने आया था. जानिए आखिर कैसे मुमकिन हुआ ये और कैसे पकड़ा गया जिंदा और मासूम मानव बम?

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बच्चे के पेट में बंधी है बारूद से भरी बेल्ट
इस बच्चे के पेट में बंधी ये सफेद रंग पट्टी यानी बारूद से भरी बेल्ट. दरअसल, ये बेल्ट ही मौत का वो सामान है जो सिर्फ इस बच्चे को ही नहीं, बल्कि इसके आस-पास मौजूद तमाम लोगों को बस ही झटके में उड़ा सकता है. क्योंकि ये मासूम कोई मामूली बच्चा नहीं, बल्कि आईएसआईएस का वो मानव बम है, जिसे दुनिया के इस सबसे बदनाम आतंकवादी संगठन ने कुछ इसी तरह तैयार कर बेगुनाहों की जान लेने के लिए किरकुक शहर के बीच छोड़ दिया था. लेकिन इससे पहले कि वो अपने इस इरादे में कामयाब हो पाता, पुलिसवालों को इसकी हरकतों पर शक हो गया और बम को डेटोनेट करने या फोड़ने से पहले ही उसे दबोच लिया गया.

बम डिफ्यूज करना सबसे बड़ी चुनौती
अब चूंकि मामला अपने-आप में बेहद संगीन था, पुलिसवालों ने सबसे पहले बच्चे के दोनों हाथ कस कर पकड़ लिए, ताकि वो किसी भी कीमत पर अपने जिस्म में लगा वो स्विच ना दबा सके, जिससे बारूद से भरे इस बेल्ट में धमाका हो और तबाही मचे. लेकिन ये ऑपरेशन सिर्फ इस बच्चे को काबू कर लेने भर से मुकम्मल नहीं हो सकता था. बल्कि अभी पुलिसवालों के सामने इस बम को बच्चे के जिस्म से अलग कर उसे डिफ्यूज करने की बड़ी चुनौती थी. क्योंकि फिदायीन हमलावरों या मानव बमों के मामले में ऐसा अक्सर देखा गया है, जब खुद मानव बमों से पहले रिमोट थामे मानव बमों के आका ऐसे आतंकवादियों को अपने हाथों से उड़ा देते हैं.

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मामूली सी गलती का मतलब मौत
लिहाजा मौके की नजाकत को देखते हुए फौरन इराकी फौज के बम डिस्पोजल स्क्वायड को मौके पर बुलाया गया. और वहां आते ही स्क्वायड के लोग बच्चे के जिस्म पर लगी बारूद से भरी वो सफेद रंग की पट्टी उतारने में जुट गए. लेकिन ये काम बेहद खतरनाक है, क्योंकि इस काम में एक मामूली सी गलती का मतलब भी सिर्फ और सिर्फ मौत है. फिर चाहे वो गलती बम में लगे स्विच के दबने की हो, किसी तकनीकी खराबी से बम डेटोनेट होने या फिर आस-पास रिमोट लिए मौजूद किसी और आतंकवादी के रिमोट दबा देने की. ये बम बड़ी तबाही का सबब का सबब बन सकता है. उधर, दूर से लोगों की भीड़ दिल थाम कर लगातार ये रौंगटे खड़े करनेवाला मंजर को देख रही थी... इधर, जैसे ही ये बेल्ट पैर के रास्ते बच्चे के जिस्म से निकाली गई, ऑपरेशन की कामयाबी के चलते लोग खुशी के मारे तालियां बजाने लगे.

किरकुक के ये हालात कितने भयानक हैं, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस मासूम मानव बम के पकड़े जाने से पहले ही इस शहर में दो फिदायीन हमले हो चुके हैं. जबकि इससे पहले कि ये बच्चा भी अपने इरादे में कामयाब होता, पुलिसवालों ने उसे पकड़ लिया. इराक का सिर्फ ये इकलौता बच्चा बम ही नहीं, बल्कि आईएसआईएस लंबे समय से बच्चों के दिमाग में जहर भरने में लगा है. उन्हें दहशतगर्दी के सांचे में ढालने में लगा है. यही वजह है कि सीरिया और इराक जैसे मुल्कों में आईएसआईएस के चंगुल में फंस कर अब भी सैकड़ों बच्चे उस उम्र में मरने-मारने का सबक सीख रहे हैं, जिस उम्र में इंसान को ठीक से जीना तक नहीं आता.

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इस्लामी हुकूमत के लिए आईएसआईएस का प्लान कितना खौफनाक है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वो आठ साल की उम्र तक से बच्चों को अगवा कर उन्हें आतंकवादी बनाने में जुटा है. साफ है कि आईएसआईएस की इस फौज में शामिल होने का सिर्फ और सिर्फ एक ही मतलब है, वो है मौत. फिर चाहे ये मौत आईएसआईएस की ओर से लड़ते हुए आए या फिर आईएसआईएस छोड़ कर जाने के जुर्म खुद आईएसआईएस की ओर से दी जाए.

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