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तेंदुए ने बनाया पूरे शहर को बंधक, 50 घंटे तक खौफ में रहे लोग

राजधानी दिल्ली से तकरीबन 72 किलोमीटर दूर बसे मेरठ के लिए तीन दिनों तक जैसे यह नियति बन कर रह गई थी. शहर में घुस आए बिन बुलाए मेहमान ने पूरी आबादी को तीन दिनों तक कुछ यूं ही बंधक बनाए रखा.

ब्रजेश मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 15 अप्रैल 2016,
  • अपडेटेड 2:00 AM IST

अगर आपके घर में कोई अनचाहा मेहमान घुस आए, तो फिर आप क्या करेंगे? यकीनन आप जल्द से जल्द उससे पीछा छुड़ाना चाहेंगे, लेकिन अगर ये मेहमान बेहद दिलकश होने के साथ-साथ बेहद खौफनाक भी हो, तो आपका रवैया क्या होगा? दिल्ली से सटे मेरठ के बाशिंदों के लिए कुछ ऐसे ही हालात पैदा हो गए, जब उनके घर ऐसा ही एक अनचाहा मेहमान घुस आया और ना सिर्फ घुस आया, बल्कि 50 घंटे साथ रहा भी.

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राजधानी दिल्ली से तकरीबन 72 किलोमीटर दूर बसे मेरठ के लिए तीन दिनों तक जैसे यह नियति बन कर रह गई थी. शहर में घुस आए बिन बुलाए मेहमान ने पूरी आबादी को तीन दिनों तक कुछ यूं ही बंधक बनाए रखा. लेकिन आखिरकार कंक्रीट के जंगलों में रहने वाले लोग सचमुच के जंगल से भटक कर उस अनचाहे मेहमान को उसके घर तक पहुंचाने में कामयाब रहे. लेकिन इस पूरी कवायद में तीनों तक करीब 15 लाख की आबादी वाला एक पूरा का पूरा शहर जैसे सील होकर रह गया. स्कूल कॉलेज बंद हो गए. घरवालों ने बच्चों का बाहर निकलना बंद कर दिया. सड़कों पर सन्नाटा पसर गया. अस्पताल के बिस्तर खाली हो गए.

जब मिली तेंदुए की पहली झलक
12 अप्रैल के पहले तक मेरठ में सबकुछ ठीक-ठाक था. लेकिन इसी रोज सुबह सात बजे जब लोगों की नजर शहर में घुस आए एक तेंदुए पर पड़ी, तो देखनेवालों के पसीने छूट गए. दरअसल, शहर के सैनिक अस्पताल में कुछ लोगों ने पहली बार इस जानवर को देखा और देखते ही देखते पूरे अस्पताल में दहशत फैल गई. एक कमरे का ताला खोलने की कोशिश कर रहे डॉक्टर पर तेंदुए ने हमला कर दिया और भाग निकला. बस, फिर क्या था अस्पताल से निकल खबर शहर में पहुंची और हर तरफ सन्नाटा खिंच गया. फौरन अस्पताल में सेना को बुलाया गया. लेकिन सैनिकों के पहुंचने से पहले ही ये चौपाया मौके से गायब हो चुका था.

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शुरू हो गई अनचाहे मेहमान को दबोचने की कवायद
अस्पताल पहुंचे लोगों को आस-पास की जमीन के अलावा एक दीवार पर तेंदुए के पंजों के कुछ निशान भी मिले, जिससे ये बात साफ हुई कि तेंदुआ किस रास्ते से बाहर भागा. दरअसल, तब तक उसके पंजे में चोट लग चुकी थी. और ये निशान उसके खून से बन रहे थे. अब ये तेंदुआ दीवार कूद कर तेंदुआ शहर के रेस कोर्स में घुस चुका था. और फिर एक पेड़ पर छिप कर बैठ गया. हालांकि शहर में तेंदुआ घुस आने की खबर मिलते ही तब तक वन विभाग और जिला प्रशासन समेत तमाम एजेंसियां अपने पंजों पर आ चुकी थी और इन अनचाहे मेहमान को धर दबोचने की कवायद शुरू कर दी गई.

निशाने पर लगी गोली, लेकिन नहीं हुआ असर
शाम होते-होते पेड़ पर जा बैठे तेंदुआ का पता मिल चुका था. और वन विभाग की टीम उसे पकड़ने की कवायद शुरू कर चुकी थी. तब इसी सिलसिले में उसे पहली बार बेहोश करने के लिए ट्रैंकुलाइजर गन से शूट किया गया. गोली निशाने पर लगी भी. लेकिन जवान तेंदुए पर इसका कोई खास असर नहीं हुआ और पूरी तरह बेहोश होने से पहले ही पेड़ से उतर कर अंधेरे में गुम हो गया. और ये लुका-छिपी अगले दो दिन तक जारी रही.

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आखिरकार मिली कामयाबी
गुरुवार यानी 14 अप्रैल को वन विभाग ने उसे एक बार फिर से बेहोश करने का फैसला किया. ट्रैंकुलाइजर गन के साथ एक्सपर्ट्स और डॉक्टर्स एक बार फिर इस जानवर के करीब पहुंचे. पहली गोली चली और सीधे निशाने पर लगी, लेकिन जवान तेंदुए पर इस गोली का कोई खास असर नहीं हुआ. अब वन विभाग के अफसरों ने दूसरी कोशिश की. लेकिन इस कोशिश में एक हादसा हो गया. तेंदुआ झपट पड़ा और ट्रैंकुलाइजर गन लिए एक डॉक्टर के हाथ में खंरोच आ गई. हालांकि इसके बावजूद उसे दूसरी गोली लग चुकी थी. और उस पर नशा छाने लगा था. लेकिन पूरी हिफाजत के लिए उसे नशे की तीसरी डोज भी दी गई और तब वो पूरी तरह बेहोश हो गया. और इस तरह 50 घंटों में 13 अलग-अलग कोशिशों के बाद आखिरकार ये अनचाहा मेहमान पिंजरे में था. और पूरे शहर ने राहत की सांस ली.

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