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कभी जिस बिहार से मिस्टर नटवरलाल निकले थे. मौजूदा बिहार से निकले सारे लल्लनटॉप के इस बाप ने तो नटवरलाल की भी कहानी फीकी कर दी. क्या खेल खेला इसने. जी हां. बात बिहार के उस कॉलेज के प्रिंसिपल बच्चा राय की है जो अपने यहां पढ़ने वाले लल्लनों को टॉप कराता था.
अब जो नया खुलासा हुआ है वो ये कि बच्चा राय की बेटी इस साल बिना बारहवीं के इम्तेहान में बैठे ही पूरे बिहार में साइंस में टॉप कर गई. और जिस सौरभ श्रेष्ठ को अब तक साइंस का टॉपर माना जा रहा था वो तो बेचारा सेकेंड टॉपर निकला. इसे कहते हैं लल्लनटॉप का बाप.
बिहार की पूरी शिक्षा प्रणाली का बाप!
वाकई ये बाप निकला. सिर्फ अपनी लाडली बेटी का नहीं. घोटालों का बाप. जालसाजी का बाप. फर्जीवाड़े का बाप. बिहार की पूरी शिक्षा प्रणाली का बाप. दसवीं और बारहवीं के इम्तेहान का बाप और बिहार के सारे लल्लनटॉप का बाप. क्या आपने कभी सुना है कि किसी इम्तेहान में कोई टॉप करे और उस टॉपर को जमाने से छुपा दिया जाए? आंखें खोल देने और दिमाग घुमा देने वाले दस्तावेज हैं ये. वो भी बिहार पुलिस के. जी हां. ये एफआईआर की कॉपी है. और इस कॉपी में सबसे ऊपर ये नाम लिखा है. शालिनी राय. रोल नंबर 33014/10106. इंटर साइंस में प्रथम स्थान. यानी साइंस टॉपर.
ऐसे बनाया बेटी को टॉपर
ये एफआईआर बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर एक झन्नाटेदार तमाचा है. ये एफआईआर इस बात का भी सबूत है कि बच्चा राय जैसे लोग कैसे बिहार शिक्षा बोर्ड के बाप बने हुए हैं. कमाल है इस बाप का. दो साल पहले बेटी को दसवीं के इम्तेहान में पूरे बिहार में टॉप कराया और अब बारहवीं में भी बेटी टॉपर नंबर वन बना दिया. गर्व होता अगर ये बच्ची शालिनी अपने दम पर टॉप करती. पूरा बिहार बेटी के साथ-साथ तब इस बाप पर फख्र करता. मगर बाप इस कदर कमाल निकला कि ना सिर्फ बेटी की कॉपी का नंबर बदलवा दिया बल्कि किसी को ये भनक तक नहीं लगने दी कि उसकी बेटी ने साइंस में टॉप किया है. बल्कि उसकी जगह इस दूसरे लल्लन को साइंस का टॉपर बना कर अपनी बेटी के नतीजे को छुपा लिया. एफआईआर में साफ-साफ लिखा है कि बच्चा राय की बेटी शालिनी राय का कॉपी नंबर फाड़ दिया गया और उसकी जगह दूसरा नंबर चिपका दिया गया.
पुलिस ने शुरू की छापेमारी
इस ताजा खुलासे के बाद जाहिर है दो साल पुरानी ये तस्वीर भी अब अचानक बेहद अहम हो गई है. दो साल पहले की ये तबकी तस्वीर है जब शालिनी राय ने दसवीं में टॉप किया था. तब सचमुच पूरे बिहार को यही लगा था कि बाप हो तो बच्चा राय जैसा और बेटी हो तो शालिनी जैसी. पर अब दो साल बाद जाकर ये मालूम पड़ा कि ये तो सचमुच लल्लनटॉप का बाप है. पर फिलहाल बाप फरार है. अब जाहिर है जब बाप ही फरार है तो बच्चे कहां मिलेंगे. वो भी गायब हो गए. उधर पुलिस ने जैसे ही एफआईआर दर्ज कर छापेमारी का सिलसिला शुरू किया तो इम्तेहान और उसके नतीजों के जिम्मेदार बिहार शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष ने भी आनन-फानन में इस्तीफा दे दिया.
रूबी को बोर्ड ने दिया 11 जून तक का वक्त
'आज तक' ने ललल्नटॉप का भांडा क्या फोड़ा बिहार में हड़कंप मच गया. नीतीश कुमार ने वादे के मुताबिक घोटाले की जांच के लिए जैसे ही पुलिस की स्पेशल इनवेस्टिगेटिव टीम बनाई तो सारे लल्लनटॉप गायब हो गए. ढूंढे नहीं मिल रहे अब. एसआईटी की एफआईआर में फिलहाल चार छात्रों को गलत तरीके से टॉप करने के लिए नामजद किया गया है. इनमें शालिनी राय के अलावा, सौरभ, राहुल कुमार और रूबी राय का नाम है. एफआईआर में साइंस की टॉपर शालिनी के बाद टॉपर नंबर दो यानी सौरभ के बारे में कहा गया है कि उसकी योग्यता और उसकी कॉपी में जमीन-आसमान का फर्क था. सौरभ इसलिए टॉप किया क्योंकि या तो उसकी कॉपी बदली गई या फिर कोई और गड़बड़ी हुई. साइंस के टॉपर तीन राहुल कुमार के बारे में भी यही कहा गया है कि योग्यता तीसरे दर्जे की भी नहीं लेकिन नाम टॉपर लिस्ट में था. आर्ट्स की टॉपर रूबी राय तो पोल खुलने के डर से विशेषज्ञों के सामने आने की हिम्मत ही नहीं जुटा सकी है. एफआईआर में कहा गया है कि रूबी का 11 जून तक इंतजार किया जाएगा. अगर वो 11 जून को बिहरा परीक्षा बोर्ड की कमेटी के सामने टेस्ट देने आती है तो ठीक वर्ना पुलिस अपनी कार्रवाई करेगी.
कॉलेज को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया ऐसा
एफआईआर में लिखा है कि विशुनदेव राय कॉलेज जहां से साइंस के पहले तीन टॉपर यानी शालिनी, सौरभ और राहुल और आर्ट्स की टॉपर रूबी राय निकली हैं उस कॉलेज की कॉपियों का मूल्यांकन भभुआ और आरा जिले में होना था. विशुन राय कॉलेज वैशाली जिले में आता है और इस जिले के सारे कॉलेज के परीक्षा केंद्रों का मूल्यांकन इन्हीं दो जगहों पर हुआ. पर अकेला विशुनराय कॉलेज ऐसा था जिसकी कापियां पटना के राजेंद्र बालक हाई स्कूल में जांची गईं. एफआईआर के मुताबिक ऐसा विशुनपाय कॉलेज को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया.
एफआईआर दर्ज करने के साथ ही एसआईटी की टीम लगातार अलग-अलग जगहों पर छापे मार रही है. टीम विशुन राय कॉलेज भी पहुंची. साथ ही पटना के उस स्कूल पर भी छापा मारा जहां इस कॉलेज की कापियां जांची गई थीं. छापे के बाद स्कूल की प्रिंसिपल को गिरफ्तार कर लिया गया. इसके अलावा स्कूल के दो क्लर्क भी गिरफ्तार किए गए है. जबकि एक चपरासी को हिरासत में लिया गया है.
बच्चा राय के नाम एक अनोखा रिकॉर्ड
बारहवीं के इम्तेहान के नतीजे तक को बेच डालने वाले कोई इक्का-दुक्का लोग नहीं है. पूरा का पूरा एक गिरोह है इसके पीछे. पर इस गिरोह के हर शख्स को अगर कोई बेनकाब कर सकता है तो वो है सबसे ज्यादा ललल्नटॉप देने वाले कॉलेज का प्रिंसिपल यानी बच्चा राय. बस इस एक शख्स ने अगर सच उगल दिया या इससे सच उगलवा लिया गया तो यकीन मानिए बिहार के लल्लन के टॉप बनने का सारा खेल आम हो जाएगा. इनका नाम है बच्चा राय. और पहचान है लल्लनों को टॉप कराना. रिकॉर्ड पर शायद कभी ये रिकॉर्ड नहीं आया मगर बच्चा राय के नाम एक अनोखा रिकॉर्ड है. जिस उम्र में बच्चे अमूमन कॉलेज में दाखिला लेने जाते हैं उस उम्र में ही ये उसी विशुनराय इंटरमीडिएट कॉलेज के प्रिंसिपल बन गए थे जो आज टॉपर्स उगलने की फैक्ट्री बन गई है.
19 साल की उम्र में बन गया प्रिसिंपल
बच्चा राय ने 1994 में दसवीं का इम्तेहान पास किया था. मगर इसके बाद खुद इन्हें बारहवीं का इम्तेहान पास करने में और चार साल लग गए. दरअसल ये बारहवीं में दो बार फेल हो गए. फिर तीसरी बार 1998 में इन्होंने अपने पिता के इसी विशुनराय कलेज से इम्तेहान दिया और फर्स्ट डिवीजन से पास कर गए. बारहवीं का इम्तेहान पास करने के अगले ही साल यानी 1999 में ये अचानक उसी कॉलेज के प्रिंसिपल बन गए. तब इनकी उम्र सिर्फ 19 साल थी. फिर प्रिंसिपल बनने के बाद इन्होंने ऐसा जादू दिखाया कि ये स्कूल टॉपर निकालने की खान बन गया. यहां दाखिले का मतलब ही था टॉपर नहीं तो डिस्टिंकशन नंबर के साथ वरना फर्स्ट डिवीजन से पास की तो गारंटी है ही.
2007 में पहली बार उछला था नाम
इस कॉलेज में गड़बड़ी का मामला सबसे पहले 2007 में सामने आया था. तब अचानक यहां के छात्रों का रिजल्ट पूरे बिहार को आईना दिखाने लगा था. उसके बाद से तो कॉलेज ने कभी पीछे मुड़ कर ही नहीं देखा. दो साल पहले तक टॉपर बनाने का कॉलेज का तरीका बड़ा सीधा-सादा सा था. तब इम्तेहान के दौरान ही परीक्षा केंद्रों पर छात्रों को नकल करा कर टॉप कराया जाता था. इसके लिए या तो जवाब पहले से तैयार होते थे या फिर कोई स्कॉलर छात्रों को जवाब लिखाता था. बहुत से छात्रों को तो परीक्षा केंद्र भी जाने की जरूरत नहीं पड़ती थी. उनकी जगह उन्हीं के नाम से दूसरा स्कॉलर कापी लिख आता था.
शिक्षा माफिया से आरजेडी का नेता तक
फिर दो साल पहले जब प्रशासन ने नकल पर नकेल लगाने की मुहिम शुरू की तो बच्चा राय ने भी अपना तरीका बदल लिया. तब तक वैसे भी वो शिक्षा माफिया से आरजेडी का नेता भी बन गया था. उसकी पहुंच अब बिहार परीक्षा बोर्ड तक थी. लिहाजा अब वो इम्तेहान के बाद कॉपियां बदलवाने के खेल में भी माहिर हो गया. जाहिर है बच्चा राय इस पूरे घोटाले का इकलौता जिम्मेदार तो नहीं हो सकता. उसके पीछे भी लोग हैं. जो सरकार से लेकर परीक्षा बोर्ड तक में हैं. बस देखना ये है कि उन सबके गिरेबान पर नीतीश सरकार का हाथ कब तक पहुंचता है. या पहुंचता भी है या नहीं?