
Parliament attack: आज देश की संसद के अंदर और बाहर जो हुआ, उसने नए संसद भवन के सुरक्षा इंतजामों की पोल खोलकर रख दी. दो लोग संसद के बाहर नारेबाजी करते हैं. और रंग-बिरंगा धुआं उड़ाते हुए विरोध प्रदर्शन करते हैं. पकड़े गए दोनों लोगों की पहचान नीलम और अनमोल के रूप में हुई है. वहीं दूसरी तरफ सदन के अंदर लोकसभा की कार्रवाई के दौरान दो लोग दर्शक दीर्घा से अचानक कूदकर सांसदों के बीच पहुंच जाते हैं. उनमें से एक अपने जूते से कुछ निकाल कर फेंकता है और सदन धुंआ धुंआ हो जाता है. दोनों युवक पकड़े गए. जिनमें से एक नाम सागर शर्मा है. ये लोग एक सांसद के नाम पर लोकसभा विजिटर पास लेकर अंदर पहुंचे थे. हैरानी की बात ये है कि ये सब संसद पर हमले की बरसी के दिन हुआ. चलिए आपको याद दिलाते हैं कि आखिर आज से 22 साल पहले संसद पर कैसे हमला हुआ था.
वो 13 दिसंबर 2001 का दिन था. उस दिन संसद पर हुए आतंकी हमले में संसद भवन के गार्ड, दिल्ली पुलिस के जवान समेत कुल 9 लोग शहीद हुए थे. उस दिन एक सफेद एंबेसडर कार में आए पांच आतंकवादियों ने 42 मिनट में लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर को गोलियों से छलनी करके पूरे हिंदुस्तान को दहला दिया था. चलिए हम आपको बताते हैं संसद पर हमले की पूरी कहानी मिनट दर मिनट:
तारीख- 13 दिसंबर, 2001
समय- सुबह 11 बजकर 28 मिनट
स्थान- संसद भवन, दिल्ली
संसद के शीतकालीन सत्र की सरगर्मियां तेज़ थीं. विपक्ष के जबरदस्त हंगामे के बाद दोनों सदनों की कार्यवाही 40 मिनट के लिए स्थगित की जा चुकी थी. सदन स्थगित होते ही प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी लोकसभा से निकल कर अपने-अपने सरकारी निवास के लिए कूच कर चुके थे. बहुत से सांसद भी वहां से जा चुके थे. पर गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी अपने कई साथी मंत्रियों और लगभग 200 सांसदों के साथ अब भी लोकसभा में ही मौजूद थे. हमेशा की तरह लोकसभा परिसर के अंदर मीडिया का पूरा जमावड़ा था. तब तक बहुत से सांसद और मंत्री भी सदन के अंदर से बाहर निकल आए थे और गुनगुनी धूप का मजा ले रहे थे.
तारीख- 13 दिसंबर, 2001
समय- सुबह 11 बजकर 29 मिनट
स्थान- संसद भवन का गेट नंबर 11
उपराष्ट्रपति कृष्णकांत शर्मा के काफिले में तैनात सुरक्षार्मी अब सदन से उनके बाहर आने का इंतज़ार कर रहे थे. और ठीक उसी पल, एक सफेद एंबेस्डर कार तेज़ी से उपराष्ट्रपति के काफिले की तरफ बढ़ती है. संसद भवन के अंदर आने वाली गाड़ियों की रफ्तार से तय रफ्तार कहीं ज्यादा तेज थी. इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, तभी उस कार के पीछे लोकसभा के सुरक्षा कर्मचारी जगदीश यादव भागते नजर आए. वो लगातार कार को रुकने का इशारा कर रहे थे. जगदीश यादव को यूं भागते देख उपराष्ट्रपति के सुरक्षाकर्मी एएसआई जीत राम, एएसआई नानक चंद और एएसआई श्याम सिंह भी एंबेस्डर कार को रोकने की कोशिश में उसकी तरफ भागे.
सुरक्षाकर्मियों को अपनी ओर आता देख एंबेस्डर कार का ड्राइवर अपनी गाड़ी को गेट नंबर एक की तरफ मोड़ देता है. गेट नंबर एक के नजदीक ही उप-राष्ट्रपति की कार खड़ी थी. तेज रफ्तार और मोड़ की वजह से कार का ड्राइवर नियंत्रण खो देता है और गाड़ी सीधे उपराष्ट्रपति की कार से जाकर टकराती है. हर तरफ हड़कंप मच जाता है. सुरक्षाकर्मी अलर्ट हो जाते हैं.
तारीख- 13 दिसंबर, 2001
समय- सुबह 11 बजकर 30 मिनट
स्थान- गेट नंबर 1, संसद भवन
इससे पहले कि कोई कयास लगाए जाते, तभी उस एंबेस्डर के चारों दरवाजे एक साथ खुलते हैं और गाड़ी में बैठे पांच हथियारबंद संदिग्ध हमलावर पलक झपकते ही बाहर निकलते हैं और अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर देते हैं. पांचों एके-47 से लैस थे. पांचों हमलावरों की पीठ और कंधे पर बैग थे.
पहली बार आतंक लोकतंत्र की दहलीज पार कर चुका था. पूरा संसद भवन गोलियों की त़ड़तड़ाहट से गूंज उठा था. आतंकवादियों के पहले हमले का शिकार बने वे चार सुरक्षाकर्मी जो एंबेस्डर कार को रोकने की कोशिश कर रहे थे.
पर संसद भवन में मौजूद बाकी लोगों को अभी भी पता नहीं था कि क्या हुआ या क्या हो रहा है? गोलियों की आवाज को ज्यादातर लोग पटाखों का शोर समझ रहे थे. किसी ने वहमो-गुमान में भी नहीं सोचा था कि संसद भवन के अंदर भी आतंकवादी घुस सकते हैं. पर फिर तभी गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच एक धमाके की आवाज आती है.
गोलियों की गूंज के बाद पहला धमाका ये एलान कर चुका था कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर यानी संसद भवन पर हमला हो चुका है. गोलियों की तड़तड़ाहट और धमाकों की गूंज के बीच सुरक्षाकर्मियों को लहुलुहान जमीन पर गिरते देख पलभर में तस्वीर साफ हो चुकी थी. और अब संसद भवन के अंदर चारों तरफ अफरा-तफरी और दहशत का माहौल था. जिसे जिधर जो कोना दिखाई दे रहा था, वो उधर ही भाग रहा था.
अब भी गोलियों की आवाज सबसे ज्यादा गेट नंबर 11 की तरफ से ही आ रही थी. पांचों आतंकवादी अब भी एंबेसडर कार के ही आस-पास से गोलियां और ग्रेनेड बरसा रहे थे. तभी आतंकवादियों को गेट नंबर 11 की तरफ जमा देख संसद भवन के सुरक्षा कर्मी दिल्ली पुलिस और सीआरपीएफ के जवानों के साथ गेट नंबर 11 की तरफ बढ़ते हैं. अब दोनों तरफ से गोलीबारी शुरू हो चुकी थी.
गोलीबारी से महज कुछ सौ मीटर की दूरी पर मौजूद गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को भी तब तक हमले की खबर मिल चुकी थी. लिहाजा, लालकृष्ण आडवाणी और रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज समेत तमाम वरिष्ठ मंत्रियों को फौरन सदन के अंदर ही महफूज जगहों पर ले जाया गया. इसके साथ ही सदन के अंदर जाने वाले तमाम दरवाजे भी बंद कर दिए जाते हैं और वहां सुरक्षाकर्मी अपनी-अपनी पोजीशन ले लेते हैं.
उधर, दूसरी तरफ सुरक्षा कर्मियों को गेट नंबर 11 की तरफ बढ़ते देख पांचों आतंकवादी भी अपनी पोजीशन बदलने लगते हैं. पांच में से एक आतंकवादी गोलियां चलाता हुआ, अब गेट नंबर 1 की तरफ भागता है. जबकि बाकी चार गेट नंबर 12 की तरफ बढ़ने की कोशिश करते हैं.
आतंकवादियों की कोशिश किसी तरह सदन के दरवाजे तक पहुंचने की थी. ताकि वो सदन के अंदर घुस सकें. मगर सुरक्षा कर्मियों ने पहले ही तमाम दरवाजों के इर्द-गिर्द अपनी पोजीशन ले रखी थी. इसके अलावा आतंकवादी जिस तरह गोलियां बरसाते हुए इधऱ-उधऱ भाग रहे थे उससे साफ लग रहा था कि वे अंदर तो घुस आए हैं पर उन्हें ये पता नहीं है कि सदन के अंदर दाखिल होने के लिए दरवाजे किस तरफ हैं?
इसी अफरा-तफरी के बीच एक आतंकवादी जो गेट नंबर 1 की तरफ बढ़ा था, वहीं से गोलियां बरसाता हुआ सदन के अंदर जाने के लिए संसद भवन के गलियारे से होते हुए एक दरवाजे की तरफ बढ़ता है. लेकिन इससे पहले कि वो अपनी कोशिश में कामयाब होता उसे सुरक्षाबलों की गोली लग जाती है. गोली लगते ही गेट नंबर एक के करीब गलियारे में ही दरवाजे से कुछ दूर वो गिर पड़ता है.
पहला आतंकवादी गिर चुका था. पर अभी वो जिंदा था. सुरक्षाकर्मी उसे पूरी तरह से निशाने पर लेने के बावजूद उसके करीब जाने से अभी भी बच रहे थे. क्योंकि डर ये था कि कहीं वो खुद को उड़ा ना ले. और सुरक्षाकर्मियों का ये डर गलत भी नहीं था. क्योंकि जमीन पर गिरने के कुछ ही पल बाद जब उस आतंकवादी को लगा कि अब वो घिर चुका है तो उसने फौरन रिमोट दबा कर खुद को उड़ा लिया. उसने अपने शरीर पर बम बांध रखा था.
चार आतंकी अब भी जिंदा थे. न सिर्फ जिंदा थे बल्कि लगातार भाग-भाग कर अंधाधुंध गोलियां बरसा रहे थे. ऐसा लगता था मानो वे घंटों मुकाबला करने की तैयारी के साथ आए थे. क्योंकि उनके पास गोली, बम और ग्रेनेड का पूरा जखीरा था. जो वो अपने शरीर में छुपा कर और कंधे पर टंगे बैग में लेकर आए थे.
अब तक एनएसजी कमांडो और सेना को भी हमले की खबर दी जा चुकी थी. आतंकवादियों से निपटने में माहिर दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की टीम भी संसद भवन के लिए कूच कर चुकी थी. पर संसद भवन में लाइव ऑपरेशन अब भी जारी था. न्यूज चैनल के जरिए हमले की खबर अब देश-विदेश तक फैल चुकी थी.
इस बीच शायद बाकी बचे चार आतंकवादियों को भी अपने एक साथी की मौत की खबर लग चुकी थी. शायद ये खबर उन्हें उस धमाके से मिली थी जो रिमोट के जरिए एक आतंकवादी ने खुद को उड़ा कर किया था. लिहाजा बाकी आतंकवादी अब और ज्यादा घबरा गए. घबराहट में अब चारों आतंकवादी इधर-उधर भागते हुए छुपने का ठिकाना ढूंढने लगे.
दूसरी तरफ सुरक्षाकर्मी अब चारों तरफ से आतंकवादियों को घेरना शुरू कर चुके थे. गोलीबारी अब भी जारी थी. और फिर इसी दौरान गेट नंबर पांच से एक और अच्छी खबर आई. एक और आतंकवादी सुरक्षाकर्मी की गोलियों से ढेर हो चुका था.
अब बचे थे तीन आतंकवादी. उन तीनों को अच्छी तरह पता था कि वो संसद भवन से ज़िंदा बच कर नहीं निकल सकते. लिहाज़ा उन्होंने भी सदन के अंदर जाने की एक आखिरी कोशिश की. वे गोलियां बरसाते हुए धीरे-धीरे गेट नंबर 9 की तरफ बढ़ने लगे. मगर मुस्तैद सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें गेट नंबर नौ के पास ही घेर लिया.
तारीख- 13 दिसंबर, 2001
समय- दिन के करीब 12.10 बजे
स्थान- गेट नंबर 9, संसद भवन
अब पूरा ऑपरेशन गेट नंबर 9 के पास सिमट गया था. दोनों तरफ से लगातार गोलियां चल रही थीं. बीच-बीच में आतंकवादी सुरक्षाकर्मियों पर हथगोले भी फेंक रहे थे. पर चूंकि वे चारों तरफ से घिर चुके थे, लिहाजा अब बचने का कोई रास्ता नहीं था. और आखिरकार कुछ देर बाद एक-एक कर तीनों आतंकवादी ढेर हो चुके थे.