
Digital Arrest: पिछले तीन दिनों से हम आपको साइबर क्राइम के सबसे बड़े स्कैम बन चुके 'डिजिटल अरेस्ट' के बारे में बता रहे हैं. हम शातिर जालसाजों की मॉड्स ऑपरेंडी और उनके नए तौर तरीकों के बारे में आपको आगाह करने की कोशिश कर रहे हैं. ताकि आप भी ऑनलाइन जालसाजी करने वाले बेनाम अपराधियों के शिकंजे में आने से बच जाएं. इस सीरीज की इस चौथी कहानी में हम बात करेंगे कृष्ण दासगुप्ता की.
ऐसा नहीं है कि ‘डिजिटल अरेस्ट’ रैकेट में शामिल घोटालेबाज केवल भोली-भाली गृहिणी या कामकाजी वर्ग के साधारण लोगों को ही निशाना बनाते हैं, बल्कि हकीकत ये है कि ऐसे साइबर अपराध के अधिकांश पीड़ित शिक्षित और जागरूक नागरिक हैं. और ये शिक्षित नागरिक क्यों ठगे जाते हैं? खैर, ये ऐसा है जैसे किसी ने आपके सिर पर काल्पनिक बंदूक तान दी हो, और आपके पास उसकी बात मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
कुछ ऐसी ही है, दिल्ली के सीआर पार्क इलाके में रहने वाले 72 वर्षीय कृष्ण दास गुप्ता की दर्दनाक कहानी है. जिन्होंने 'डिजिटल अरेस्ट' स्कैम का शिकार होकर 83 लाख रुपये गंवा दिए. साइबर अपराधियों ने 12 घंटे से ज़्यादा समय तक उन्हें वीडियो कॉल पर बंधक बनाए रखा.
ये घटना इसी साल 24 मई की है. उस दिन सुबह 9:30 बजे, साउथ दिल्ली में रहने वाली रिटायर्ड नर्सिंग सुपरिंटेंडेंट कृष्णा दास गुप्ता को एक मैसेज मिला, जिसमें दावा किया गया था कि उनका मोबाइल नंबर 2 घंटे में ब्लॉक कर दिया जाएगा. यह मैसेज आधिकारिक लग रहा था, कथित तौर पर महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (MTNL) से आया था, और उन्हें बताया गया था कि उनके आधार नंबर का इस्तेमाल करके मुंबई में एक और सिम कार्ड जारी किया गया है.
इसके बाद यह स्कैम आगे बढ़ा. जिसके तहत उन्हें एक फ़र्जी अरेस्ट वारंट मिला. साइबर अपराधियों में से किसी एक ने वीडियो कॉल पर मुंबई पुलिस का अधिकारी बनकर उनसे बात की. इसके तुरंत बाद, कृष्णा को एक कॉल आया, जिसमें उन्हें वीडियो कॉल के ज़रिए मुंबई पुलिस के फ़र्जी अधिकारियों से जोड़ा गया.
जालसाजों ने उनसे बात करते हुए दावा किया कि उनके आधार का इस्तेमाल मनी-लॉन्ड्रिंग और पोर्नोग्राफ़िक सामग्री साझा करने जैसे अपराधों के लिए किया गया है. अपराधियों ने उन्हें एक फर्जी सुप्रीम कोर्ट अरेस्ट वारंट भी दिखाया, जिससे उन्हें यह विश्वास हो गया कि उन्हें अगले दो घंटों में गिरफ़्तार कर लिया जाएगा.
कृष्णा दास गुप्ता ने बताया, उन्होंने कहा कि मेरे आधार का इस्तेमाल धोखाधड़ी के लिए किया गया है, और उन्होंने मुझे गिरफ्तारी वारंट की धमकी दी. वो इतना डर गई थी कि उन्होंने इस बारे में किसी को नहीं बताया. यह मानते हुए कि वह एक गंभीर संकट में फंस गई हैं, कृष्णा ने उनके निर्देशों का पालन किया.
इसके बाद वह अपने बैंक गईं और अपनी जीवन भर की बचत के 83 लाख रुपये एक ऐसे खाते में ट्रांसफर कर दिए, जिसके बारे में घोटालेबाजों ने दावा किया कि वह प्रवर्तन निदेशालय (ED) का अकाउंट है. उनसे कहा गया था कि जांच के बाद उनके पैसे वापस कर दिए जाएंगे. इस 12 घंटे की परेशानी के दौरान, उन्हें किसी से बात करने की इजाजत नहीं दी गई, यहां तक कि उन्होंने अपने दोस्तों और बेटी के कॉल को भी अनदेखा कर दिया.
कृष्णा बताती हैं कि उन्हें लगा कि वह खुद को गिरफ्तारी से बचा रही हैं, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि उनके साथ धोखाधड़ी हो रही है. ये सब जानकर उनकी बेटी मुंबई से भागी भागी आईं और एफआईआर दर्ज कराई, लेकिन इस सिलसिले में मामला दर्ज करवाना आसान नहीं था. यह सिर्फ एक अज्ञात नंबर था, जिसने कृष्णा की जीवन भर की सेविंग का पैसा ठग लिया था. नाम फर्जी थे, पुलिसवाले फर्जी थे. ऐसे में पैसे के निशान को ट्रैक करना एक कठिन काम है.
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, अकेले दिल्ली में हर महीने डिजिटल अरेस्ट घोटाले के लगभग 200 मामले सामने आते हैं. और ऐसे सैकड़ों मामले होंगे जो शर्म, डर या देश की आपराधिक न्याय प्रणाली में विश्वास की कमी के कारण रिपोर्ट नहीं किए जाते. साइबर क्राइम एक्सपर्ट पवन दुग्गल कहते हैं कि कानून में डिजिटल गिरफ्तारी जैसी कोई चीज नहीं है. लोगों को पहले तो ऐसे कॉल करने वालों से कभी भी संपर्क नहीं करना चाहिए.