
उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के अछनेरा के तुरकिया गांव में हुए सामूहिक हत्याकांड में फांसी की सजा पाए गंभीर सिंह को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया. इसके बाद वो बुधवार की सुबह आगरा के सेंट्रल जेल से रिहा हो गए. उन्होंने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा कि उनको भगवान पर भरोसा था. इसके साथ ही उन्होंने अपनी जान को खतरा बताते हुए अपने लिए सुरक्षा की मांग भी की है. आइए देश को झकझोरने वाले इस हत्याकांड की पूरी कहानी जानते हैं.
ये अदालत अपने बड़े भाई सत्यभान, भाभी पुष्पा और उनके चार बच्चों आरती, महरा, गुड़िया और कन्हैया समेत कुल छह क़त्ल के मुल्ज़िम गंभीर सिंह को मुजरिम क़रार देते हुए मौत की सज़ा सुनाती है.
20 मार्च 2017, डिस्ट्रिक्ट एंड सेशंस कोर्ट, आगरा
22 महीने बाद... ये अदालत निचली अदालत के फ़ैसले को बरक़रार रखते हुए अपने बड़े भाई सत्यभान, भाभी पुष्पा और उनके चार बच्चों आरती, महरा, गुड़िया और कन्हैया समेत कुल छह क़त्ल के मुजरिम गंभीर सिंह को फांसी की सज़ा सुनाती है.
9 जनवरी 1019, इलाहाबाद हाई कोर्ट, प्रयागराज
6 साल बाद... ये अदालत गंभीर सिंह को फ़ौरन रिहा करने का हुक्म सुनाती है. क्योंकि उनके खि़लाफ ऐसा एक भी सबूत अदालत के सामने पेश नहीं किया जा सका, जिससे उसे छह क़त्ल का दोषी ठहराया जाए.
28 जनवरी 2025, सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली
12 फरवरी, 2025
आगरा सेंट्रल जेल, सुबह 11 बजे
करीब 12 लंबे वर्षों तक जेल की चारदीवीरी के पीछे कैद गंभीर सिंह को जेल से रिहा कर दिया जाता है. हाथ में सफेद थैला, कंधे पर गमछा और सर पर मंकी कैप. बाहर आते ही गंभीर सिंह अपने हाथों का लिखा एक ख़त भी दिखाता है. ये ख़त असल में पुलिस के नाम है. इस खत के जरिए वो जेल से बाहर आने के बाद अपनी सुरक्षा की मांग कर रहा है. उसे डर है कि उसे मार डाला जाएगा. इसीलिए वो सुरक्षा चाहता है.
अमूमन लंबे वक्त से बंद जेल से जब भी कोई कैदी बाहर आता है तो कोई ना कोई उसे लेने ज़रूर आता है. फिर यहां तो गंभीर पर एक-दो नहीं बल्कि एक ही रात में छह कत्ल करने का इल्ज़ाम था. उन छह कत्ल के लिए देश की दो-दो अदालतों ने उसे दो-दो बार फांसी की सजा भी सुना दी थी. लेकिन ऐन मौत से पहले देश की सबसे बड़ी अदालत ना सिर्फ उसे फांसी की सज़ा से बचा लेती है, बल्कि सीधे बरी करने का हुक्म सुना देती है.
इसके बावजूद गंभीर सिंह को लेने उसका कोई रिश्तेदार या दोस्त जेल तक क्यों नहीं आया? तो इस क्यों का जवाब दूं उससे पहले सुप्रर्म कोर्ट के फैसले और इस केस को बारीकी से जानना बेहद जरूरी है. जरूरी इसलिए है क्योंकि इस फैसले के जरिए आपको पता चलेगा कि 6 कत्ल के मामले की तफ्तीश को भी कैसे हमारी पुलिस मज़ाक बना कर रख देती है. तो सबसे पहले तो कत्ल के केस को समझ लीजिए.
9 मई 2012, तुरकिया, आगरा
आगरा के करीब एक गांव में एक ही परिवार के छह लोगों का कत्ल हो जाता है. इनमें परिवार का मुखिया सत्यभान उसकी पत्नी पुष्पा और 12 साल से छोटे चार बच्चे आरती, महरा, गुड़िया और कन्हैया शामिल थे. सभी की हत्या तेज़धार हथियार से की गई थी. इस मास मर्डर के बाद पुष्पा का भाई पहली बार पुलिस के सामने शक जताता है कि इन छह कत्ल के लिए कोई और नहीं बल्कि सत्यभान काी छोटा भाई गंभीर सिंह ज़िम्मेदार है.
ज़मीन को लेकर उसका सत्यभान से विवाद चल रहा था. एक ही परिवार में छह-छह कत्ल हुआ था. पुलिस पर केस को सुलझाने का लखनऊ से दबाव था. ऐसे में पुष्पा के भाई के बयान को ही पूरा सच मान कर आगरा पुलिस ने गंभीर सिंह और उसकी एक कजन गायत्री को गिरफ्तार कर लिया. आनन-फानन में पुलिस ने दो-दो हथियार भी बरामद कगर लिया. एक ड्रैगर और दूसरा कुल्हाड़ी. फिर गंभीर सिंह और गायत्री से जुर्म भी कबूल करवा लिया.
इसके बाद चार्जशीट दाखिल हुई और आगरा के इसी सेशन कोर्स में ट्रायल शुरू हो गया. पूरे पांच साल बाद सेशन कोर्ट ने सबूतों के अबाव में गायत्री को तो बरी कर दिया. लेकिन गंभीर सिंह को मुजरिम करार देते हुए मौत की सज़ा सुना दी. वो लगातार खुद को बेगुनाह बता रहा था. इस फैसले को उसने इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी. लेकिन दो साल के अंदर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को ही सही माना.
उसकी मौत की सजा बरकरार रखी. अब गंभीर सिंह इस फैसले के खिलाफ देश की सबसे बड़ी अदालत यानी सुपीम कोर्ट में पहुंचता है. उसमें बाकायदा तीन जजों की बेंच इस केस की सुनवाई करती है. इन तीन जजों की बेंच में जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता शामिल थे. करीब छह साल तक ये मामला सुप्रीम कोर्ट में चला. इसके बाद 28 जनवरी को देश की सबसे बड़ी अदालत ने अपना फैसला सुनाया.
सुप्रीम कोर्ट ने बताई रिहाई की चार वजहें
कोर्ट ने गंभीर सिंह को फौरन रिहा करने का हुक्म सुनाया. उसकी रिहाई की चार वजह बताई गई. इन्हीं चार वजहों में आगरा पुलिस के निकम्मेपन, लोअर कोर्ट और इलाहाबाद हाई कोर्ट की गलतियां छुपी थीं. पहली वजह है मकसद. जुर्म और कानून की दुनिया में किसी भी कत्ल को साबित करने के लिए सबसे जरूरी होता है मक़सद. मज़ाक देखिए आगरा पुलिस अपनी तफ्तीश में इस सबसे अहम वजह को ही भुला बैठी.
पुलिस ने कोर्ट में कत्ल के मकसद की जो कहानी सुनाई वो ये थी कि गंभीर सिंह का अपने बड़े भाई सत्यभान से ज़मीन को लेकर विवाद था. कहानी ये थी कि 2010 में सत्यभान और गंभीर सिंह की मां का भी कत्ल हुआ था. इसके लिए तब पुलिस ने दोनों भाई को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. लेकिन तब भी केस इतना कमज़ोर था बड़ा भाई सत्यभान ज़मानत पर फौरन बाहर आ गया. अब बारी गंभीर सिंह के बाहर आने की थी.
पुलिस की कहानी के मुताबिक ज़मानत के लिए गंभीर ने बड़े भाई से जमीन का एक टुकड़ा बेचने को कहा. सत्यभान ने वो जमनी अपनी पत्नी पुष्पा को बेच दी. इससे गंभीर नाराज हो गया और इसी वजह से उसने सभी को मार डाला. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि पुलिस की इस थ्योरी में कहानी तो है सबूत नहीं. ज़मीन बेचने या नाम करने के कोई सबूत पुलिस पेश ही नहीं कर पाई. ना पैसे के लेन-देन के सबूत दिए ना ज़मीन बेचने या नाम करने के कागज.
यानी पुलिस मकसद साबित ही नहीं कर पाई. दूसरी वजह आख़़िरी बार देखने वाला गवाह. सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि कत्ल के बाद पूरे गांव की भीड़ सत्यभान के घर के बाहर इकट्ठा थी. लेकिन पुलिस ऐसा एक भी चश्मदीद कोर्ट में पेश नहीं कर सकी, जिसने गंमभीर सिंह को कत्ल वाली रात मौके पर देखा था. इतना ही नहीं. पुलिस ने गंभीर सिंह की गिरफ्तारी अछनेरा रेलवे स्टेशन से दिखाई थी. अछनेरा रेलवे स्टेशन तुरकिया गांव से दस किलोमीटर दूर है.
पुलिस के मुताबिक जब उसने गंभीर सिंह को गिरफ्तार किया तब वो खून से सने वही कपड़े पहने था, जिनमें उसने छह-छह कत्ल किए थे. सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक एक कातिल जो छह-छह कत्ल कर चुका हो, जिसका कपड़ा खून से सना हो, वो दस किलोमीटर तक उन्हीं कपड़ों में घूमेगा ऐसा नामुम्किन लगता है. तीसरी वजह हथियारों की बरामदगी. पुलिस की कहानी के हिसाब से गिरफ्तारी के बाद गंभीर सिंह की निशानदेही पर उसने दो हथियार बरामद किए थे.
एक कुल्हाड़ी और एक कटारी यानी ड्रैगर. मगर पुलिस ने इन्हें फॉरेंसिंक लैब भेजने से पहले इसे सील तक नहीं किया. ये पुलिस के ही मालखाने में यूं ही पड़ा रहा. इसके बाद में फोरेंसिक लैब से जो रिपोर्ट आई उसमें कहा गया कि दोनों हथियारों पर कुछ खून के निशान जरूर मिले हैं. लेकिन ब्लड ग्रुप की कोई जानकारी नहीं दी गई. यहां तक कि पुलिस ये भी पुख्ता तौर पर नहीं बता पाई कि छह कत्ल कुल्हाड़ी से हुए या कटारी से. चौथी वजह ट्रायल कोर्ट ने सबूतों की सच्चाई पर ध्यान नहीं दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि इस केस से जुड़े जितने भी सबूत पुलिस ने कोर्ट में पेश किए उनकी सच्चाई पर शक होता है. क्योंकि इनमें से किसी भी सबूत को एक सबूत के तौर पर सुरक्षित नहीं रखा गया. यहां तक कि निचली कोर्ट और फिर हाई कोर्ट ने भी सबूतों की तरफ अच्छे से ध्यान नहीं दिया. सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनाते हुए कई बार और कई जगह इस बात पर हैरानी जताई कि छह-छह कत्ल जैसे संगीन केस में भी पुलिस की जांच कितनी लापरवाह ढंग से पूरी की गई.
हालांकि 12 साल बाद अभ गंभीर सिंह तो रिहा हो गया. लेकिन उसकी रिहाई के साथ ही ये सवाल भी अभी फिर से पैदा हो गया है कि यदि गंभीर सिंह बेकसूर है, तो फिर वो छह कत्ल किसने किए. क्या आगरा पुलिस इस केस की दोबारा जांच कर उसकी तह तक पहुंचने की अब कोई कोशिश करेगी. ताकि नाकामी का जो दाग उसके माथे पर लगा है उसे धो सके. फिलहाल इस मामले में आगरा पुलिस की तरफ से कोई बयान अभी तक नहीं आया है.