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अनाथ भतीजी से रेप के जुर्म में गिरफ्तार चाचा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस आधार पर दी जमानत

बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपनी भतीजी के बलात्कार के जुर्म में गिरफ्तार एक अपराधी को जमानत दे दी है. 20 वर्षीय आरोपी अपनी 14 वर्षीय भतीजी के रेप के अपराध में न्यायिक हिरासत में था. उसे पॉक्सो एक्ट के तहत सजा दी गई थी.

बॉम्बे हाई कोर्ट (फाइल फोटो) बॉम्बे हाई कोर्ट (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 12 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 6:35 PM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपनी भतीजी के बलात्कार के जुर्म में गिरफ्तार एक अपराधी को जमानत दे दी है. 20 वर्षीय आरोपी अपनी 14 वर्षीय भतीजी के रेप के अपराध में न्यायिक हिरासत में था. उसे पॉक्सो एक्ट के तहत सजा दी गई थी. लेकिन कोर्ट का कहना है कि उसे ज़मानत पर रिहा करने से उसकी कम उम्र के कारण इस बात की ज्यादा संभावना है कि वो पश्चाताप करेगा. ऐसा माना जाना चाहिए कि सज़ा प्रकृति में दंडात्मक होने के बजाय सुधारात्मक परिणाम के लिए दी जाती है.

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न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव ने कहा कि पीड़िता अनाथ है. उसके चाचा ने उसे अपने घर आश्रय दिया था. स्कूल और ट्यूशन नियमित रूप से जाने के बावजूद, अप्रैल 2023 से अगस्त 2023 तक उसने चुप्पी क्यों साधे हुई थी. अभियोक्ता ने पहले कहा कि घटना के दौरान आरोपी की मां घर पर थी, लेकिन बाद में कहा कि घर खाली था. ये चूकें महत्वपूर्ण हैं. पीड़िता के अनुसार यौन उत्पीड़न की तीन घटनाएं हुईं और उसने अपनी सहेली को बताया था कि मामला दर्ज होने के समय वह गर्भवती थी. 

पीड़िता ने पुलिस को बताया कि वो तीनों घटनाओं के बारे में चुप रही, क्योंकि वो डरी हुई थी. उनके आश्रय में थी. हालांकि, आरोपी की गिरफ्तारी के एक साल बाद पीड़िता ने एक हलफनामा दायर किया. इसमें कहा गया कि आरोपी को बिना शर्त जमानत पर रिहा किया जाए. वो बिना किसी दबाव के हलफनामा दे रही है. अभियोजन पक्ष ने जमानत याचिका का विरोध किया. अपराध को जघन्य बताते हुए कहा कि आरोपी ने अपनी ही भतीजी की कमजोरी का फायदा उठाया था.

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अतिरिक्त लोक अभियोजक ने तर्क दिया कि जमानत देने से न्याय प्रणाली में विश्वास खत्म हो जाएगा. फिर भी न्यायालय ने आरोपी की उम्र और पुनर्वास की संभावना पर विचार किया. इसके बाद कहा गया कि यदि आरोपी को जेल में अधिक समय तक रखा जाता है, तो इस बात की पूरी संभावना है कि वो समाज में विश्वास खो सकता है. इतना ही नहीं अपराध की राह पर चल सकता है या अपना जीवन बर्बाद कर सकता है. जेल के कई नुकसान हैं. युवाओं पर असंगत रूप से थोपे जाते हैं.

यही कारण है कि न्यायालय को लगता है कि सजा में सुधारात्मक दृष्टिकोण की ओर किसी भी संभावना को अपनाया जाना चाहिए. खासकर युवा अपराधियों के मामले में ऐसा बहुत जरूरी है, इसलिए युवा अपराधियों के मामले में न्यायालय द्वारा हर अवसर या उस सीमा तक जोखिम को रचनात्मक रूप से लिया जाना चाहिए. ऐसे आरोपियों को आगे की हिरासत में भेजने से पहले समाज में एक अच्छा नागरिक बनने का अवसर देना चाहिए. यही वजह है कि अदालत ने उसे जमानत दिया है.

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