Advertisement

कोरोना से मुश्किल हुई डिफॉल्ट बेल की राह, वकीलों को हो रही परेशानी

इन दिनों वकीलों के लिए डिफॉल्ट बेल ले पाना बहुत ही मुश्किल काम बन गया है. कुछ मामलों में जांच एजेंसियों ने कोरोना की महामारी के कारण जांच में देरी होने की बात कही है.

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
मुनीष पांडे
  • नई दिल्ली,
  • 12 नवंबर 2020,
  • अपडेटेड 9:26 PM IST
  • वकीलों के लिए मुश्किल हुआ डिफॉल्ट बेल पाना
  • चुनौतीपूर्ण हुआ अदालत को संतुष्ट कर पाना
  • कोरोना के कारण देरी की बात कह रहीं जांच एजेंसियां

कोरोना वायरस की महामारी के कारण वकीलों और अभियुक्तों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. वकीलों और अभियुक्तों के लिए डिफॉल्ट बेल पाने की प्रक्रिया में अदालत को संतुष्ट कर पाना बड़ी चुनौती बन गया है. वकीलों के लिए डिफॉल्ट बेल ले पाना बहुत ही मुश्किल काम बन गया है. कुछ मामलों में जांच एजेंसियों ने कोरोना की महामारी के कारण जांच में देरी होने की बात कही है.

Advertisement

डिफॉल्ट बेल में हो रही मुश्किल का हालिया उदाहरण महाराष्ट्र में सामने आया, जहां बॉम्बे हाईकोर्ट ने यस बैंक केस में आरोपी वाधवान बंधुओं को डिफॉल्ट बेल देने से इनकार कर दिया था. डिफॉल्ट बेल सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत किसी भी गिरफ्तार आरोपी को तब दी जाती है, जब जांच एजेंसियों की जांच पूरी न हुई हो या 10 साल से अधिक की सजा के मामलों में 90 और 10 साल से कम की सजा के मामलों में 60 दिन में चार्जशीट दायर न की गई हो.

देखें: आजतक LIVE TV

सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की बेंच ने डिफॉल्ट बेल को लेकर कहा कि यह सीआरपीसी की धारा 167 (2) के पहले प्रावधान के तहत यह एकमात्र वैधानिक अधिकार नहीं है, बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है. जिसमें एक अभियुक्त व्यक्ति को धारा 167 (2) के पहले शर्तों के साथ जमानत पर रिहा होने का अधिकार मिलता है. इस बेंच में न्यायमूर्ति नरीमन, नवीन सिन्हा और जस्टिस केएम जोसफ थे. कोर्ट ने साथ ही यह भी कहा था कि 167 (2) की शर्तें पूरी होने पर किसी आरोपी को जमानत पर रिहा किया जाना मौलिक अधिकार है.

Advertisement

हालांकि, जून में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि कोरोनो वायरस के कारण लागू लॉकडाउन की अवधि में विस्तार का मतलब यह नहीं कि पुलिस की ओर से चार्जशीट दायर किए जाने की अवधि भी बढ़ेगी. वाधवान बंधुओं के मामले में उनके वकीलों ने तर्क दिया कि दोनों को 26 अप्रैल को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन सीबीआई ने 25 जून को चार्जशीट दायर किया.

सीबीआई की ओर से एडिशनल सॉलिसीटर जनरल (एएसजी) अनिल सिंह ने जमानत का विरोध किया था. वाधवान के वकील अमित देसाई ने चार्जशीट के लिए 90 दिन का समय देने वाली आईपीसी की धारा 409 को बाद में जोड़े जाने का आरोप लगाया था, जिसमें उम्र कैद की सजा का प्रावधान है. उन्होंने चार्जशीट दायर किए जाने की समयसीमा बढ़ाने के लिए ऐसा किए जाने का तर्क दिया था.

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement