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दार्जिलिंग में सब-इंस्पेक्टर की हत्या के बाद फरार आरोपी 8 साल बाद ऐसे हुआ गिरफ्तार

दार्जिलिंग में साल 2017 के गोरखालैंड आंदोलन के दौरान सब-इंस्पेक्टर अमिताभ मलिक की हत्या के आरोप में गोरखालैंड प्रादेशिक प्रशासन (जीटीए) के एक पूर्व सदस्य को गिरफ्तार किया गया है. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने सोमवार बताया कि आरोपी का नाम प्रकाश गुरुंग है. वो वर्तमान में भारतीय गोरखा जनशक्ति मोर्चा (आईजीजेएफ) का नेता है.

दार्जिलिंग में साल 2017 के गोरखालैंड आंदोलन के दौरान सब-इंस्पेक्टर की हुई थी हत्या. दार्जिलिंग में साल 2017 के गोरखालैंड आंदोलन के दौरान सब-इंस्पेक्टर की हुई थी हत्या.
aajtak.in
  • कोलकाता,
  • 10 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 3:47 PM IST

दार्जिलिंग में साल 2017 के गोरखालैंड आंदोलन के दौरान सब-इंस्पेक्टर अमिताभ मलिक की हत्या के आरोप में गोरखालैंड प्रादेशिक प्रशासन (जीटीए) के एक पूर्व सदस्य को गिरफ्तार किया गया है. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने सोमवार बताया कि आरोपी का नाम प्रकाश गुरुंग है. वो वर्तमान में भारतीय गोरखा जनशक्ति मोर्चा (आईजीजेएफ) का नेता है. उसको रविवार सुबह दार्जिलिंग के बसबोटे रिम्बिक स्थित उसके घर से गिरफ्तार किया गया. स्थानीय अदालत में पेश करने के बाद 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

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एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि पुलिस अफसर की हत्या के मामले में केस दर्ज होने के बाद प्रकाश गुरुंग फरार हो गया था. उसके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था. जनवरी 2018 में इस मामले में दायर आरोप-पत्र में प्रकाश गुरुंग और गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) के अध्यक्ष बिमल गुरुंग सहित 27 लोगों के नाम थे. आरोप है कि साल 2017 में दार्जिलिंग को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर 100 दिनों से ज़्यादा चले आंदोलन के दौरान गुरुंग और उनकी पार्टी के सदस्यों ने रंगीत जंगल में शरण ली थी.

पुलिस ने उस जगह पर छापा मारा तो गुरुंग के समर्थकों के साथ झड़प में एसआई अमिताभ मलिक की मौत हो गई. दार्जिलिंग के पहाड़ी इलाकों में गोरखालैंड की डिमांड एक सदी से भी ज्यादा पुरानी है. साल 1905 में ब्रिटिश सरकार ने प्रशासनिक सुविधा के नाम पर बंगाल का पहली बार बंटवारा किया था. तब ही गोरखाओं के लिए अलग स्टेट की चर्चा भी होने लगी थी. हालांकि ऐसा हुआ नहीं. दो साल बाद स्थानीय संगठनों ने अलग स्टेट की सीधी डिमांड की थी. वे भाषा और तौर-तरीकों के आधार पर बंटवारा चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

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आजादी के बाद ऑल इंडिया गोरखा लीग ने तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू को इस बारे में ज्ञापन दिया. यदि अलग स्टेट न मिले तो लीग ने अलग यूनियन टैरिटरी का भी प्रस्ताव रखा था. एक और विकल्प भी था कि दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी को असम के साथ जोड़ दिया जाए, क्योंकि यहां भी नेपाली बोलने वाले गोरखाओं की आबादी अच्छी-खासी थी. एक विकल्प ये था कि दार्जिलिंग को खास जिला बना दिया जाए, जिसके पास राज्य में रहते हुए भी स्वायत्ता हो. धारा 244 ए के तहत ये संभव है. 

एक रिपोर्ट में नेपाली स्टडीज के प्रोफेसर माइकल जेम्स हट के हवाले से लिखा है कि साल 1951 के सेंसस में माना गया कि दार्जिलिंग में लगभग 20 प्रतिशत ही नेपाली भाषी रहते हैं. हालांकि, ये संख्या नेपाली बोलने वाली असल आबादी से काफी थी. प्रोफेसर हट के मुताबिक, दार्जिलिंग में तब 66 प्रतिशत नेपाली बोलने वाले रहते थे. गलत आंकड़ों की वजह से सरकार ने नेपाली भाषा को भारत की राष्ट्रीय भाषाओं शामिल नहीं किया. पश्चिम बंगाल के उत्तरी भाग में बसे नेपाली-गोरखा अपनी कल्चरल पहचान के लिए अलग होना चाहते हैं. 

स्थानीय संगठनों का आरोप है कि उनकी भाषा और चेहरे-मोहरे की वजह से उन्हें स्थानीय राजनीति से लेकर काम-धंधे में भी बंगाली भाषियों से पीछे रखा जाता है. दोहरे बर्ताव का एक सबूत पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के उस फैसले को माना जाता है, जब साल 2017 में उन्होंने सभी स्कूलों में बांग्लाभाषा अनिवार्य कर दी. नेपाली का इसमें कहीं जिक्र तक नहीं था. इसके बाद से गोरखालैंड का आंदोलन उग्र हो गया, जिसमें जान-माल का काफी नुकसान हुआ. इस दौरान चाय बगान बिजनेस पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा था. 

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