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दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा- ना कहने के अधिकार से महिलाओं को कोई वंचित नहीं कर सकता

दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने वैवाहिक दुष्कर्म से संबंधित प्रावधानों की फिर से व्याख्या करने के लिए दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई की.

हाई कोर्ट से साफ कर दिया कि महिला की ना का मतलब ना ही होता है हाई कोर्ट से साफ कर दिया कि महिला की ना का मतलब ना ही होता है
संजय शर्मा
  • दिल्ली,
  • 11 जनवरी 2022,
  • अपडेटेड 6:52 PM IST
  • वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की याचिकाओं पर सुनवाई
  • महिलाओं के अधिकार को लेकर हाई कोर्ट गंभीर
  • आईपीसी की धारा 375 पर भी चर्चा

दिल्ली उच्च न्यायालय ने वैवाहिक दुष्कर्म यानी मैरिटल रेप के कानूनी प्रावधान के सिलसिले में यौन संबंध बनाने से महिलाओं के मना करने के अधिकार को प्राथमिकता दी है. HC ने कहा कि महिलाओं के ना करने के अधिकार से किसी भी सूरत में समझौता नहीं किया जा सकता. ऐसे लोगों को पहली नजर में ही सबूत और शिकायत मिलने के बाद सजा मिलनी चाहिए. इसमें संदेह की कोई कोई गुंजाइश ना हो.

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दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने वैवाहिक दुष्कर्म से संबंधित प्रावधानों की फिर से व्याख्या करने के लिए दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई की. हाई कोर्ट ने साफ कहा कि महिलाओं की यौन स्वच्छंदता, शारीरिक अखंडता और रिश्ते बनाने से ना कहने के अधिकार से कोई वंचित नहीं कर सकता. कोर्ट ने कहा कि जहां तक रेप का सवाल है कि तो विवाहित जोड़े और अविवाहित के बीच संबंधों के बीच बुनियादी और गुणात्मक अंतर है. 

वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि हम यहां यह निर्णय नहीं करेंगे कि वैवाहिक दुष्कर्म के आरोप सिद्ध होने पर कैसे दंडित किया जाना चाहिए, बल्कि हम यह विचार कर रहे हैं कि ऐसी स्थिति में व्यक्ति को दुष्कर्म का दोषी ठहराया जाए या नहीं.

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दिल्ली हाई कोर्ट ने आईपीसी की धारा 375 में वर्णित वैवाहिक दुष्कर्म के प्रावधानों के पीछे कानूनी तर्क को भी जानने की कोशिश की. आईपीसी की यह धारा पति और पत्नी के बीच यौन संबंध को दुष्कर्म के दायरे से बाहर करती है. लेकिन कोर्ट ने कहा कि यदि विधायिका को लगता है कि विवाह संस्था के तौर पर हमें इसे दुष्कर्म के रूप में वर्गीकृत करना चाहिए नहीं. लेकिन हम इस कानून के अपवाद पर विचार कर रहे हैं.

पीठ ने कहा कि भारतीय संस्कृति में वैवाहिक दुष्कर्म की अवधारणा ही नहीं है. इसे दुष्कर्म की श्रेणी में लाते ही ये आईपीसी की धारा 375 में आ जाएगा और 375 में दुष्कर्म साबित हो तो दंड अवश्य मिलेगा.

हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि आईपीसी की धारा 375 के अपवाद के प्रावधान को असंवैधानिक घोषित करने को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही सिद्धांत स्थापित कर दिए हैं. यदि विधायिका ने वैवाहिक रिश्ते में गुणात्मक अंतर के कारण इसे दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं रखा तो हम इस पर सवाल नहीं उठा रहे कि इसे दंडित किया जाए या नहीं. 

कोर्ट ने कहा कि हमें ब्रिटेन अमेरिका या यूरोप के देशों के न्यायालयों के पूर्व के फैसलों के बारे में बताने की बजाय उन आदर्श स्थितियों के बारे में बताना चाहिए, जिनमें इस प्रावधान को रद्द किया गया है.

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पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से यूके यूएस नेपाल और अन्य कई देशों के न्यायालय के फैसलों और दलीलों को इस मामले में सर्वथा अप्रासंगिक बताया. हाईकोर्ट ने कहा कि हमारा अपना न्याय शास्त्र है और अपनी न्याय प्रणाली है. हमारा अपना संविधान है और अपनी कानून व्यवस्था है.

 

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