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बाहुबली डी पी यादव विधायक महेंद्र भाटी हत्याकांड में बाइज्जत बरी

गाजियाबाद की दादरी विधान सभा के बीजेपी विधायक महेंद्र भाटी की हत्या के आरोपित पूर्व विधायक एवं पूर्व सांसद एवम् मंत्री डीपी यादव को बुधवार को बड़ी राहत मिल गई है. उत्तराखंड हाई कोर्ट ने उन्हें हत्या के आरोप से बाइज्जत बरी कर दिया है.

डीपी यादव महेंद्र भाटी हत्याकांड में बरी. डीपी यादव महेंद्र भाटी हत्याकांड में बरी.
अंकुर चतुर्वेदी
  • नई दिल्ली,
  • 11 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 8:00 AM IST
  • बाहुबली डी पी यादव को बरी किया गया
  • विधायक महेंद्र भाटी हत्याकांड में आरोपी थे

गाजियाबाद की दादरी विधान सभा के बीजेपी विधायक महेंद्र भाटी की हत्या के आरोपित पूर्व विधायक एवं पूर्व सांसद एवम् मंत्री डीपी यादव को बुधवार को बड़ी राहत मिल गई है. उत्तराखंड हाई कोर्ट ने उन्हें हत्या के आरोप से बाइज्जत बरी कर दिया है.

 मृतक  विधायक महेंद्र सिंह भाटी के परिजनों द्वारा कोई ठोस सबूत न पेश किए जाने पर डीपी यादव को आरोपों से बरी कर दिया. जबकि इसी मामले में देहरादून की सीबीआई कोर्ट ने डीपी यादव को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.

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बुधवार को हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने पूर्व सांसद डीपी यादव को रिहा करने के आदेश पारित किए. साथ ही सीबीआइ कोर्ट देहरादून का आदेश भी निरस्त कर दिया. हालांकि इस मामले में अन्य आरोपितों को लेकर हाई कोर्ट ने अभी निर्णय सुरक्षित रखा है.

महेन्द्र सिंह भाटी और डी पी यादव की क्या कहानी है 

महेंद्र सिंह भाटी 80 के दशक में गुज्जरों के बड़े नेता थे और नोएडा,ग्रेटर नोएडा गाजियाबाद में किसानों और गुज्जरों के बीच अच्छी पकड़ थी जिसके चलते 3 बार विधायक बने .महेन्द्र सिंह भाटी को डी पी यादव अपना राजनीतिक गुरु मानते थे.महेंद्र सिंह भाटी ने ही 1988 में डी पी यादव को विसरख ब्लॉक का प्रमुख बनवाया और बाद में 1989 में बुलंदशहर से टिकट दिलवाया.1989 में सपा से पहली बार डी पी यादव विधायक बने. महेंद्र सिंह भाटी और डी पी यादव के मधुर संबंधों में खटास तब आयी जब महेंद्र सिंह भाटी के भाई राजवीर भाटी की 1991 में हत्या होती है और इस हत्या में डी पी यादव के साले परमानंद यादव का नाम आता है.

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महेंद्र भाटी ने 1991 के उपचुनाव में डी पी यादव का खुलकर विरोध किया लेकिन डी पी यादव चुनाव जीत गए . महेंद्र सिंह भाटी को अपनी हत्या का आभास शायद पहले ही हो चुका था .इसीलिए जून 1992 में विधानसभा सत्र में भाटी ने अपनी राजनैतिक कारणों से हत्या की आशंका जताई थी और अक्टूबर 1992 में महेंद्र सिंह भाटी की हत्या हो जाती है .हत्या में डी पी यादव का नाम भी आने लगा और डी पी यादव सुर्खियों में आ गए .इसी केस में सीबीआई कोर्ट देहरादून ने डी पी यादव को दोषी माना लेकिन बुधवार को नैनीताल हाई कोर्ट ने फैसला दिया कि डी पी यादव दोषी नहीं हैं .

 नैनिताल हाइकोर्ट द्वारा दादरी विधायक रहे महेंद्र भाटी हत्याकांड में डीपी यादव को बरी करने की घोषणा से उनके समर्थकों मे खुशी की लहर दौड़ गयी है. डी पी यादव के समर्थकों ने उन्हे फूलमालाओं से लाद दिया और राजनैतिक गलियारों में डी पी यादव फिर चर्चा में आ गए .

डीपी यादव कौन है ?

डीपी यादव नोएडा के छोटे से गांव शरफाबाद में एक किसान के घर पैदा हुए.पिता का दूध का व्यवसाय था.डीपी ने दूध के कारोबार से चीनी मिल,पेपर मिल,शराब और शराब से जुड़े अन्य कारोबार किए.वक़्त से साथ डीपी का रसूख और कारोबार दोनो बढ़ते गए .डीपी यादव  होटल,रिसॉर्ट, टीवी चैनल ,पावर प्रोजेक्ट ,खदानें और कंस्ट्रक्शन कंपनी के मालिक है.डीपी यादव में स्कूल और कॉलेज भी बनवाए हैं .राजनीति में 3 बार विधायक ,मंत्री,लोकसभा ,राज्यसभा सांसद और अपनी खुद की राष्ट्रीय परिवर्तन दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे हैं.

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डी पी यादव के राजनैतिक सफर पर एक नजर डालते है

कम समय में राजनीति की सीढ़ियां चढ़ने वाले डी पी यादव का बुरा दौर भी आया .राजनैतिक दल सार्वजनिक रूप से उनके साथ मंच साझा करने में भी हिचकने लगे .2 बार के विधायक,मंत्री और 2 बार के सांसद को किसी पार्टी से जब टिकट नही मिला तब उनको अपनी पार्टी बनानी पड़ी .2007 में बड़े गाजे-बाजे के साथ डीपी द्वारा राष्ट्रीय परिवर्तन दल की शुरुआत की गई .डीपी खुद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और बदायूँ के आस पास के जिलों में अपने प्रत्याशी भी उतारे लेकिन 45 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद केवल 2 पर जीत मिली.डीपी यादव सहसवान से और उनकी पत्नी बिसौली से चुनाव जीतीं .डीपी ने सपा के परंपरागत सीट पर 109 वोटों से जीत दर्ज की.

चुनाव के बाद डीपी ने अपनी पार्टी का विलय बसपा में कर दिया .बसपा सरकार में डीपी ने बदायूँ जिले में अपनी पकड़ मजबूत करनी शुरू कर दी और सपा के गढ़ में सेंधमारी करते हुए अपने भतीजे जितेंद्र यादव को एमएलसी और अपनी सलहज को जिला पंचायत अध्यक्ष बनवा दिया.कह सकते हैं डीपी यादव के अच्छे दिन वापस आ रहे थे लेकिन अच्छे दिन जाने लगे. बिसौली से उनकी पत्नी उमलेश यादव  पर पेड न्यूज छपवाने का आरोप लगा, जिसे चुनाव आयोग ने गंभीरता से लिया. इसके चलते उमलेश यादव की सदस्यता समाप्त कर दी गई. ये चुनावी इतिहास का पहला मामला था और बसपा ने भी 2012 के चुनाव कुछ दिनों पहले इनसे किनारा कर लिया. 2012 के विधानसभा चुनाव में डीपी यादव ने सहसवान विधानसभा से फिर किस्मत आजमाई, लेकिन उनको शिकस्त मिली. अब रापद की हालत ये है कि पार्टी को खुद ये नहीं पता है कि संगठन के पदाधिकारी कौन हैं. जिले में भी संगठन का अता-पता नहीं है.

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डीपी को क्षेत्र में इसलिए भी जाना जाता है क्योंकि उन्होंने राजनीति में साहसिक विरोध दर्ज करवाए.राजनीति का सफर महेंद्र सिंह भाटी के साथ शुरू किया और उन्ही का विरोध भी किया. राजनीति में पहली बार 1989 में सपा से विधायक बने और मंत्री मंडल में जगह पाने में कामयाब रहे. डीपी को पंचायत राज मंत्री बनाया गया जिससे डीपी का रसूख और बढ गया और 1998 में मुलायम सिंह यादव के खिलाफ की लोकसभा चुनाव में विगुल फूंक दिया .डीपी ने अपनी राजनीति  समाजवादी पार्टी के खिलाफ़ ही केंद्रित कर ली . समाजवादी पार्टी बदायूं को अपना गढ़ बनाने के फिराक में थी और डीपी उसे चुनौतियां दे रहे थे .

गाजियाबाद के डीपी यादव जो कि बुलंदशहर से 2 बार विधायक बने उन्होंने बदायूँ को अपनी राजनैतिक जमीन बना लिया. डीपी ने बदायूं की राजनीति संभल लोकसभा सीट के रास्ते पकड़ी. उस समय बदायूं के गुन्नौर और बिसौली विधानसभा क्षेत्र संभल लोकसभा क्षेत्र में ही हुआ करते थे.अपनी राजनीतिक विरासत आगे वढ़ाने के लिए डीपी इस 2002 में अपने बड़े पुत्र विकास यादव को बिसौली विधानसभा से चुनाव मैदान में उतारा, जो केवल 900 वोटों से चुनाव हार गया. विकास ने जेल से ही चुनाव लड़ा था. छोटा बेटा कुणाल यादव सियासत में दखल नहीं रखता, लेकिन उनको यदु चीनी मिल का डायरेक्टर बनाकर यहां से ताल्लुक कायम रखा गया है.डीपी ने सम्भल जिले में अपने साले भारत सिंह यादव को स्थापित किया.भारत सिंह बीजेपी से एमएलसी रहे है और असमोली विधानसभा से चुनाव लड़ते हैं.भारत सिंह की पत्नी पूनम यादव है जिनको डीपी ने 2010 में बदायूँ की जिलापंचायत अध्यक्ष बनवाया.

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मुलायम सिंह यादव का साथ छोड़कर डीपी ने मायावती का दामन थामा और 1996 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा से संभल लोकसभा क्षेत्र से पहली बार सांसद बने. 1998 में फिर चुनाव हुए. तब सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव भी संभल से मैदान में उतरे थे. उनके आगे दाल नहीं गली और चुनाव हार गए. इसके बाद भाजपा से निकटता के सहारे 1999 में डीपी राज्यसभा सदस्य बने. इसके बाद 2004 में वे फिर संभल में पराजित हो गए. 2004 में केंद्र में NDA की सरकार बनी और डीपी को बीजेपी ने राज्यसभा भेज दिया लेकिन काफी आलोचना होने के बाद चंद दिनों में ही भाजपा ने डीपी से अपना साथ वापस ले लिया .वहीं 2009 में बदायूं लोकसभा क्षेत्र  से सहसवान से विधायक रहते हुए सपा के धर्मेंद्र यादव से चुनाव हारे.

सपा सरकार में डीपी का शोषण

बाहुवली डीपी यादव पर बदायूं में 10 दिन के भीतर जिला प्रशासन ने दो बार राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) की कार्रवाई की थी. पूर्व मंत्री, सांसद और विधायक डीपी यादव बदायूं की जिला जेल में 73 दिन रहे थे. 2004 में डीपी के खिलाफ गुन्नौर में दो, रजपुरा और सिविल लाइंस में एक-एक मुकदमा दर्ज हुआ था. 11 मई 2004 को डीपी यादव को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया. तत्कालीन डीएम ने बाहुवली के खिलाफ 13 मई को रासुका की कार्रवाई की. 22 मई को शासन ने रासुका की कार्रवाई को निरस्त कर दिया. 23 मई को प्रशासन ने फिर से इसके खिलाफ रासुका की कार्रवाई की. बाद में एडवाइजरी बोर्ड ने 23 जुलाई 04 को डीपी से रासुका हटा दी. रासुका खत्म होने के बाद 24 जुलाई को इसे जमानत पर जेल से रिहा कर दिया गया. 73 दिन तक डीपी यादव बदायूं जेल में रहा. डीपी के जेल में रहने के दौरान यहां कड़ी सुरक्षा रही थी.

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