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VC से बन बैठे हाई कमिश्नर, VVIP सुरक्षा पर 2 शब्दों ने पहुंचाया जेल... 'नटवर' वाइस चांसलर की गजब कहानी सुन होगी हैरानी!

वो कहते हैं ना कि नकल में भी अकल की जरूरत होती है. जब इंसान अकल से मात खा जाता है तो फिर नकल की पोल भी खुल ही जाती है. दो-दो यूनिवर्सिटी में वाइस चांसलर के पद पर रह चुके 66 साल के एक बुजुर्ग के साथ कुछ ऐसा ही है, जिन्हें अब गाजियाबाद पुलिस ने ठगी और जालसाजी के इल्जाम में गिरफ्तार कर लिया है.

पुलिस की गिरफ्त में जालसाज डॉ. प्रोफेसर केएस राणा. पुलिस की गिरफ्त में जालसाज डॉ. प्रोफेसर केएस राणा.
आजतक ब्यूरो
  • गाजियाबाद ,
  • 19 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 8:45 PM IST

वो कहते हैं ना कि नकल में भी अकल की जरूरत होती है. जब इंसान अकल से मात खा जाता है तो फिर नकल की पोल भी खुल ही जाती है. दो-दो यूनिवर्सिटी में वाइस चांसलर के पद पर रह चुके 66 साल के एक बुजुर्ग के साथ कुछ ऐसा ही है, जिन्हें अब गाजियाबाद पुलिस ने ठगी और जालसाजी के इल्जाम में गिरफ्तार कर लिया है.

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डॉ. प्रोफेसर केएस राणा. जी हां, यही नाम है इनका. असल में राणा साहब इन दिनों एक एनजीओ के लिए काम करते हैं, लेकिन उन्हें लाल बत्ती वाली गाड़ियों में, पुलिस की सुरक्षा में. पूरे ताम-झाम और भौकाल के साथ घूमने का बड़ा शौक है. बस यही शौक उन्हें इस बार पुलिस की जाल में फंसा गया. हुआ यूं कि डॉ. प्रोफेसर केएस राणा ने खुद को ओमान का हाई कमिश्नर बताते हुए गाजियाबाद जिला प्रशासन को एक चिट्ठी लिखी और बताया कि जनाब इन दिनों गाजियाबाद के निजी दौरे पर हैं.

इस दौरे में उनकी सेवा और सुरक्षा के लिए प्रोटोकॉल और सिक्योरिटी की दरकार है. लेकिन सुलटैनेट ऑफ ओमान की ओर से कथित तौर लिखी गई इस चिट्ठी में एक ऐसी बारीक मगर बड़ी गलती थी, जिस पर गाजियाबाद के एसएसपी अजय कुमार मिश्रा की नजर पर पड़ गई. बस यहीं उन्होंने इस चिट्ठी को वेरिफाई करने का फैसला किया. डॉ. प्रोफेसर केएस राणा की पोल खुल गई. असल में इस चिट्ठी में डॉ. राणा को हाई कमिश्नर ऑफ सुलटैनेट ऑफ ओमान बताया गया था. 

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हकीकत ये है कि जिन मुल्कों पर ब्रिटिश राज नहीं रहा, उन देशों में हाई कमिश्मनर नहीं बल्कि एबेंसेडर होते हैं. ब्रिटिश राज वाले देशों को कॉमनवेल्थ देशों के तौर पर गिना जाता है और चूंकि ओमान पर कभी ब्रिटिश हुकूमत नहीं रही. ऐसे में भारत में ओमान का नुमाइंदा हाई कमिश्नर नहीं बल्कि एंबेसेडर ही होगा. बस, नकल की कोशिश कर रहे राणा साहब से यहीं एक गलती हो गई. गाजियाबाद पुलिस ने फौरन इस लेटर को वेरिफाई करने का फैसला किया ओमान एंबेसी से डॉ. प्रोफेसर केएस राणा के बारे में जानकारी मिली.

पता चला कि ऐसा कोई आदमी ओमान एबेंसी में है ही नहीं. बस इसी के बाद पुलिस ने डॉ. प्रोफेसर केएस राणा को गिरफ्तार कर लिया. उनके कब्जे से एक चमचमाती मर्सिडीज जीएल 350 सीडीआई एसयूवी भी बरामद कर ली. उस पर लाल नीली बत्ती और फर्जी डिप्लोमेटिक नंबर प्लेट लगी थी. वैसे राणा ने एक और भी गलती थी उसने सिक्योरिटी प्रोटोकॉल के लिए डायरेक्टर गाजियाबाद पुलिस को लिख दिया. नियम के मुताबिक यदि हाई कमिश्नर दिल्ली के बाहर जाता है, तो पहले विदेश मंत्रालय को सूचना दी जाती है.

विदेश मंत्रालय संबंधित जिले के अधिकारियों को चिट्ठी लिखता है. लेकिन यहां राणा साहब ने खुद गाजियाबाद के जिला प्रशासन को चिट्ठी लिख दी और ये ओवर स्मार्टनेस भी इन बुजुर्ग के पकड़े जाने की एक वजह बन गई. पुलिस ने जब डॉ. प्रोफेसर केएस राणा के कब्जे से बरामद की गई कार के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि ये कार भी उनकी नहीं बल्कि किसी और की है. उन्होंने इस कार में जाली नंबर प्लेट लगा रखी थी. उन्होंने पूछताछ में बताया है कि वो कई यूनिवर्सिटी में वाइस चांसलर के पद पर भी रह चुके हैं.

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पुलिस उनके इस दावे को भी वेरिफाई कर रही है. इस बीच छानबीन में पता चला है कि डॉ. प्रोफेसर केएस राणा नाम का ये आदमी साल 2019 में कुमाऊं यूनिवर्सिटी में अंतरिम वाइस चांसलर रह चुका है. तब उत्तराखंड की गर्वनर रही बेबी रानी मौर्या ने इन्हें कुमाऊं यूनिवर्सिटी का चांसलर नियुक्त किया था. हालांकि जब इस बारे में मीडिया ने बेबीरानी मौर्या से बात की, तो उनका कहना था कि उनके पास जो अनुशंसा आई थी उन्होंने उसके मुताबिक काम किया. यदि किसी ने जुर्म किया है तो उसे उसकी सजा मिलनी ही चाहिए. 

पुलिस की छानबीन में साफ हुआ है कि राणा सिर्फ कुमाऊं यूनिवर्सिटी ही नहीं बल्कि राजस्थान के मेवाड़ यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी इन जयपुर में भी वाइस चांसलर के पद पर रह चुका है. पुलिस की मानें तो वो पिछले साल के अगस्त महीने से ही फर्जी हाई कमिश्नर बन कर घूम रहा था. इस तरह से उसने मथुरा और फरीदाबाद में भी वीआईपी प्रोटोकॉल एन्जॉय किया है. वाइस चासंलर से पहले वो डॉ भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी आगरा में जूलोजी, एनवायरमेंटल साइंस समेत कई विभागों का प्रमुख भी रहा है.

पिछले साल डॉ. प्रोफेसर राणा को एनजीओ की ओर से ट्रेड कमिश्नर नियुक्त किया गया था. लेकिन जल्द ही ट्रेड कमिश्नर बना राणा खुद को हाई कमिश्नर बताने लगा. इतना ही नहीं उसने देव कुमार नाम के एक शख्स को अपना पर्सनल सेक्रेटरी भी रख लिया, जो फर्जीवाड़े में इन जनाब की मदद किया करता था. अब पुलिस उसकी भी तलाश में लगी है. 

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