
हेट स्पीच को बोलचाल की भाषा में भड़काऊ भाषण कहते हैं. ये किसी खास शख्स, समुदाय, जेंडर या नस्ल को टारगेट करता है. यूनाइटेड नेशन्स स्ट्रेटजी एंड प्लान ऑफ एक्शन्स के अनुसार संवाद का कोई भी तरीका, जो किसी की पहचान, उसके देश, भाषा, तौर-तरीके, जाति-धर्म, रंग को बुरा बताता हो, वो हेट स्पीच होता है. पिछले कुछ वर्षों में हेट स्पीच के मामलों में तेजी देखी गई है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट की माने तो साल 2021 के मुकाबले 2022 में 31 फीसदी ज्यादा केस दर्ज किए गए हैं. इतना ही नहीं इस तरह के मामलों में उत्तर प्रदेश अव्वल स्थान पर पहुंच गया है.
हेट स्पीच के मामलों को आईपीसी की धारा 153ए के तहत दर्ज किया जाता है. एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार साा 2022 में पूरे भारत में 1500 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं, जो कि साल 2021 की तुलना में 31.25 फीसदी ज्यादा है. हालांकि, राहत की बात ये है कि साल 2020 के मुकाबले ऐसे मामलों में 15.57 फीसदी की गिरावट देखी गई है. पिछले साल, इनमें से सबसे अधिक मामले उत्तर प्रदेश (217) में दर्ज किए गए थे. इसके बाद हेट स्पीच के मामले में राजस्थान (191), महाराष्ट्र (178), तमिलनाडु (146), तेलंगाना (119), आंध्र प्रदेश (109), और मध्य प्रदेश (108) का स्थान आता है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत कार्य करता है. जो सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से क्राइम डेटा के एकत्र करके उनका विश्लेषण करता है. उसके बाद हर एक सलाना रिपोर्ट प्रकाशित करता है. इसके मुताबिक, साल 2022 में 9 राज्यों ने आईपीसी की धारा 153ए के तहत 100 से अधिक मामले दर्ज किए, जबकि 2021 में केवल दो राज्य आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश में इससे अधिक केस दर्ज किए गए थे. आंकड़ों के अनुसार, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश दोनों ने 2021 में 108 केस दर्ज किए थे. यहां राहत की बात यही है कि साल 2020 के मुकाबले केस कम हुए हैं.
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एनसीआरबी के मुताबिक, साल 2020 में ऐसे सात राज्य थे जिनमें प्रत्येक में 100 से अधिक ऐसे मामले थे. इनमें आंध्र प्रदेश, असम, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश शामिल था. इसी वर्ष के आंकड़ों से पता चलता है कि साल 2020 में तमिलनाडु में सबसे अधिक 303 मामले दर्ज किए गए थे. मध्य प्रदेश में ऐसे अपराधों की संख्या लगभग तीन गुना बढ़कर 108 हो गई, जो 2021 में 38 थी. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 2020 में ऐसे 73 मामले दर्ज किए गए थे. कुछ राज्यों में तो आंकड़े 2021 से बढ़कर 2022 में दोगुने से भी ज्यादा हो गए, जैसे उत्तर प्रदेश (217 और 108), महाराष्ट्र (178 और 75), राजस्थान (191 और 83), गुजरात (40 और 11). असम में 2020 में 147 केस दर्ज किए गए थे, जबकि साल 2021 में 75 मामले थे.
दिल्ली में साल 2022 में 26, 2021 में 17 और 2020 में 36 केस दर्ज किए गए. जम्मू और कश्मीर में 2022 में 16, 2021 में 28 और 2020 में 22 ऐसे अपराध हुए. एनसीआरबी ने कहा कि 'अपराध में वृद्धि' और 'पुलिस द्वारा अपराध पंजीकरण में वृद्धि' स्पष्ट रूप से दो अलग-अलग चीजें हैं. एक तथ्य जिसे बेहतर समझ की आवश्यकता है. यहां एनसीआरबी का ये कहना है कि कई बार कुछ राज्यों में केस दर्ज किए जाने को प्राथमिकता दिए जाने की वजह से मामले ज्यादा दिखते हैं. इसका मतलब ये नहीं कि वहां अपराध ज्यादा हैं. यहां जिन राज्यों में आंकड़े कम है, तो वहां केस कम नहीं होंगे. वास्तव में ज्यादा से ज्यादा केस दर्ज किए जाने की प्राथमिकता को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. कई राज्य की सरकारों ने इसकी पहल की है. वरना पुलिस पहले केस दर्ज करने से बचती थी.