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मुंबई: बहू के साथ एक घर में नहीं रहते, कोर्ट ने सास-ससुर को घरेलू हिंसा के आरोपों से बरी किया

महाराष्ट्र के मुंबई की एक फैमिली कोर्ट ने एक वरिष्ठ नागरिक जोड़े को राहत देते हुए घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम (पीडब्ल्यूडीवीए) के तहत दर्ज एक मामले में उनके नाम हटा दिए हैं. दरअसल, दोनों पति- पत्नी ने अदालत के साबित किया कि वे अपने बेटे और बहु के साथ कभी रहे ही नहीं तो इस केस का क्या मतलब?

court court
विद्या
  • मुंबई ,
  • 06 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 2:45 PM IST
  • बुजुर्ग दंपति को बहु ने घरेलू हिंसा मामले में घसीटा
  • मुंबई की कोर्ट ने बुजुर्ग दंपति को दी राहत

महाराष्ट्र के मुंबई की एक फैमिली कोर्ट ने एक वरिष्ठ नागरिक जोड़े को राहत देते हुए घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम (पीडब्ल्यूडीवीए) के तहत दर्ज एक मामले में उनके नाम हटा दिए हैं. दरअसल, दोनों पति- पत्नी ने अदालत में साबित किया कि वे अपने बेटे और बहू के साथ कभी रहे ही नहीं तो इस केस का क्या मतलब?

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गौरतलब है कि एक 83 वर्षीय ब्रीच कैंडी व्यवसायी और उसकी 76 वर्षीय पत्नी अपनी बहू द्वारा दायर घरेलू हिंसा के मामले में फंस गए थे. दोनों ने इस मामले से अपना नाम हटाने के लिए अदालत में एक आवेदन दिया.उनकी वकील कनुप्रिया केजरीवाल ने अदालत को बताया कि 18 नवंबर, 2010 को जब उनके बेटे की शादी हुई थी, तब से लेकर आज तक बुजुर्ग दंपति अपने बेटे और बहू के साथ एक ही छत के नीचे कभी भी नहीं रहे. इसके अलावा, उनके खिलाफ घरेलू हिंसा के कोई विशेष आरोप नहीं हैं. केजरीवाल ने कहा कि बहू केवल झूठे और तुच्छ मुकदमे में पति को उलझाने की कोशिश कर रही थी". बुजुर्ग दंपत्ति ने यह भी कहा कि वे बूढ़े  हैं और उन्हें प्रताड़ित नहीं किया जाना चाहिए और न ही किसी झूठे मुकदमें में घसीटी जाना चाहिए.

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बहू ने अपने पति और ससुराल वालों द्वारा मानसिक यातना और भावनात्मक संकट का हवाला दिया था और नेपियन सी रोड के अपमार्केट में 25 करोड़ रुपये मुआवजे और अपनी पसंद के एक फ्लैट की मांग की थी, जिसमें वह वर्तमान में अपने माता-पिता और एक बच्चे के साथ रह रही है. 

कोर्ट ने कहा रिश्तेदार होना और घरेलू संबंध होना दो अलग बाते हैं. इस केस में बेटा- बहु कभी माता- पिता के साथ रहे ही नहीं तो बहु के सास- ससुर के साथ घरेलू संबध रहे ही नहीं. ऐसे में इस तरह के आरोप नहीं लगाए जा सकते हैं. ये पूरी तरह गलत है.

 

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