
उत्तराखंड में कानून निर्माताओं और रखवालों की सोशल मीडिया पर तैरती तस्वीरें कमाल की हैं. इनको देख कर समझना मुश्किल हैं कि ये किसी नेता या समाजसेवी की हैं या फिर गैंगस्टरों की हैं. देख कर अफसोस होता है, सिर शर्म से झुक जाता है. इन तस्वीरों के देखकर कौन कहेगा कि सूबे में जनता की चुनी हुई सरकार का राज है, पुलिस है, कानून है, उसको मानने वाले लोग रहते हैं.
इन तस्वीरों को देख कर तो यही लगता है कि यहां पूरा का पूरा जंगलराज चल रहा है. वरना आखिर ये कैसे मुमकिन होता कि दिन दहाड़े, सूरज की रौशनी में खुलेआम सबके सामने एक पूर्व विधायक अपनी थार जीप में बैठ कर यूं दल-बल के साथ अस्लहे लेकर मौजूदा विधायक के दफ्तर पर आ धमकता और गाली-गलौज करने के साथ-साथ ताबड़तोड़ गोलियां चलाने लगता.
अफसोसनाक इत्तेफाक ये भी है कि वारदात की ये तस्वीरें उसी दिन की हैं, जब देश 76वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. यानी ये उस दिन की वारदात है, जिस दिन देश में अधिकारिक तौर पर संविधान लागू हुआ, कानून का राज शुरू हुआ. एक विधायक और पूर्व विधायक के बीच उत्तराखंड के हरिद्वार में छिड़ी इस शर्मनाक सियासी गैंगवार की पूरी इनसाइड स्टोरी आज हम आपको बताएंगे.
इस कहानी की शुरूआत में पूर्व विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन वर्तमान विधायक उमेश कुमार के दफ्तर में पहुंचते हैं. पहले अपने चेले-चपाटों से गन मांगते हैं. फिर राइफल में मैग्जीन लोड करते हैं और खुद ही अपनी रिवॉल्वर से उमेश कुमार के दफ्तर की तरफ अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर देते हैं. एक, दो, तीन, चार, पांच... गिनने वाले थक जाते हैं, लेकिन गोलियों की बौछार कम नहीं होती.
पूर्व विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन और उनके समर्थकों का ये रूप देख कर विधायक उमेश कुमार के दफ्तर से कुछ लोग हिम्मत जुटा कर समझाइश के लिए आगे आते हैं. चैंपियन और समर्थकों को शांत हो जाने को कहते हैं, लेकिन वे उनको बुरी तरह पीटने लगते हैं. ये सिलसिला कई मिनटों तक चलता है. अंधाधुंध फायरिंग भी चलती रहती है. सभी गुस्से की आग में जलते नजर आते हैं.
विधायक के ऑफिस पर गोली चलाते हुए कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन और उनके समर्थकों को बात का भी ख्याल नहीं रहता है कि गुस्से और टशनबाजी में चलाई जा रही गोली बिल्डिंग के अंदर या फिर आस-पास मौजूद किसी भी आदमी को लग सकती है. किसी की कीमती जिंदगी पलक झपकते खत्म हो सकती है. रिहायशी इलाके में हुई इस फायरिंग में किसी बेगुनाह की भी जान जा सकती है.
हमलावर ये भी भूल जाते हैं कि सामने बिल्डिंग की छत पर तिरंगा लहरा रहा है और कोई गोली तिरंगे पर भी लग सकती है. राष्ट्र ध्वज का भी अपमान हो सकता है. लेकिन वो कहते हैं ना कि जब इंसान की मति मारी जाती है, तो फिर उसे किसी बात का होश नहीं रहता. यहां धन-दौलत और झूठी शान में आकर चैंपियन उमेश कुमार के दफ्तर पर आकर इसी बात का प्रमाण पेश करते हैं.
चैंपियन के चले जाने के बाद अब तक अपने दफ्तर में ही उमेश कुमार अपने समर्थकों के साथ गन लेकर अब उनको सबक सिखाने जाने लगते हैं. ठीक चैंपियन की तरह ही इनकी आंखों में भी गुस्सा है, चेहरे पर झुंझलाहट और जुबान पर गालियां. विधायक जी कहते हैं कि आज वो इस पार या उस पार करके ही रहेंगे. रोज-रोज का झंझट खत्म होगा. वो तो भला हो पुलिस वालों का.
वो चैंपियन के हमले की खबर सुन कर तब तक उमेश कुमार के दफ्तर में पहुंच चुके थे, जिन्होंने जान पर खेल कर किसी तरह उनको रोका और उनसे हथियार वापस रखवा लिया. वरना बहुत मुमकिन है कि ताव-ताव में उमेश भी अपने समर्थकों के साथ चैंपियन पर हमला करते, फिर से गोली-बारी होती और अब तक जो नहीं हुआ था. वो हो जाता, तो किसी ना किसी की जान चली जाती.
अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर गुस्से और तैश में आकर की गई इन वारदातों का वीडियो किसने बनाया? वहां कौन पहले से कैमरा लेकर मौजूद था? तो जवाब है खुद दोनों विधायकों के समर्थकों और बाद में पत्रकारों ने. असल में चैंपियन जब उमेश कुमार के दफ्तर पर हमला करने जा रहे थे, तो उन्होंने हमला अचानक नहीं, बल्कि ऐलानिया किया. अपने गुर्गों से बाकायदा आदेश दिया.
गन और गाड़ी निकालने को कहा और कुछ को कैमरों के साथ तैनात रहने का हुक्म दिया. इसके बाद विधायक उमेश कुमार के दफ्तर में पहुंच कर गोलियां चलाईं और उन्हें ना सिर्फ अपने कैमरे में कैद किया, बल्कि फेसबुक पर हमले का वीडियो भी अपलोड कर दिया. यानी कानून तो तोड़ा ही, उसके बाद खुलेआम सबूत भी दे दिए कि जाओ जो करना है, कर लो. हमें किसी बात का फर्क नहीं पड़ता.
ये और बात है कि बाद में वो वीडियो उनके फेसबुक पेज से हटा दिया गया. अब ये तो ठहरे पूर्व विधायक, विधायक भी उन्हीं के नक्शे कदम पर चलते नजर आए. उनके भी हमलावरों ने अपने आका के पिस्टल लेकर रास्ते पर भागते हुए की तस्वीरें अपने मोबाइल फोन में कैद की और उन्हें भी वायरल कर दिया. शायद ये बताने के लिए कि विधायक जी किसी से नहीं डरते, चाहे वो कुंवर साहब ही क्यों न हों.
फिलहाल पुलिस ने खुलेआम हुई गोलीबारी, जानलेवा हमले और धमकियों के इस सिलसिले के बाद पूर्व विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन और विधायक उमेश कुमार और उनके कुछ समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया है. लेकिन पुलिस की गिरफ्त में आने के बाद भी तेवर कम नहीं हो रहे. आइए अब इस लड़ाई की इनसाइड स्टोरी भी जान लीजिए. असल में चैंपियन और उमेश कुमार के बीच पुरानी सियासी रंजिश है.
इसकी शुरुआत साल 2022 में तब हुई थी, जब दोनों खानपुर विधानसभा सीट से चुनाव में आमने-सामने थे. पूर्व विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन खानपुर से चार बार विधायक रहे, लेकिन आखिरी बार उनका टिकट काट कर बीजेपी ने उनकी पत्नी देवयानी को टिकट दे दिया. इस चुनाव में उमेश कुमार ने देवयानी को करारी शिकस्त दी. उमेश कुमार चुनाव जीत गए, जबकि चैंपियन को तीसरे नंबर पर रह गए.
इसके बाद इस दुश्मनी में मानों और तेजी आ गई. सोशल मीडिया पर दोनों एक-दूसरे पर छींटाकशी करते रहे. चैंपियन ने उमेश कुमार के परिवार पर कथित तौर पर अभद्र टिप्पणी की थी. बदले में उमेश कुमार ने भी सोशल मी़डिया पर लाइव आकर उन्हें भला-बुरा कहा, गालियां दीं. उमेश कुमार चैंपियन के रुड़की वाले ऑफिस में भी उन्हें ललकारने पहुंच गए, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ.
तब इस लड़ाई की आखिरी किस्त के तौर पर चैंपियन ने 26 जनवरी की शाम को उमेश कुमार के दफ्तर पर धावा बोल दिया और फायरिंग कर डाली. फिलहाल पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार तो कर लिया है, गुर्गे भी गिरफ्तार किए गए हैं. अपराध में इस्तेमाल की गई सारी गाड़ियां और हथियार जब्त कर लिए गए हैं. पुलिस ने दोनों ही नेताओं के पास मौजूद सारे के सारे हथियारों के लाइसेंस के निरस्तीकरण के लिए डीएम को लिख दिया है. हालांकि विधायक उमेश कुमार को तो फिलहाल जमानत पर रिहा कर दिया गया है, लेकिन चैंपियन को न्यायिक हिरासत में भेज दिया है.