
लखीमपुर हिंसा मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा की मुश्किलें और बढ़ गई हैं. सीजेएम कोर्ट ने आशीष मिश्रा पर 307 धारा लगाने का आदेश दे दिया है. इस केस को SIT ने सोची-समझी साजिश बताया है. SIT के जांच अधिकारी ने आरोपियों के खिलाफ धाराएं बढ़ाने के लिए कोर्ट में अर्जी दी थी, जिसे कोर्ट से अब मंजूरी मिल गई है.
ऐसे में अब मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा समेत सभी 13 आरोपियों की मुश्किलें बढ़ गई हैं. आइए जानते हैं कि आईपीसी की इन धाराओं में दोषी पाए जाने पर आशीष मिश्रा समेत सभी आरोपियों को कितनी सजा हो सकती है.
भारतीय दंड सहिंता की धारा 307
जब कोई इंसान किसी दूसरे इंसान की हत्या की कोशिश करता है. और वह हत्या करने में नाकाम रहता है. तो ऐसा अपराध करने वाले को आईपीसी की धारा 307 के तहत सजा दिए जाने का प्रावधान है. आसान लफ्जों में कहें तो अगर कोई किसी की हत्या की कोशिश करता है, लेकिन जिस शख्स पर हमला हुआ है, उसकी जान नहीं जाती तो इस तरह के मामले में हमला करने वाले शख्स पर धारा 307 के अधीन मुकदमा चलता है.
क्या होती सजा
हत्या की कोशिश करने वाले आरोपी को आईपीसी की धारा 307 में दोषी पाए जाने पर कठोर सजा का प्रावधान है. आम तौर पर ऐसे मामलों में दोषी को 10 साल तक की सजा और जुर्माना दोनों हो सकते हैं. जिस आदमी की हत्या की कोशिश की गई है अगर उसे गंभीर चोट लगती है, तो दोषी को उम्रकैद तक की सजा हो सकती है.
क्या होती है आईपीसी की धारा 326
भारतीय दंड संहिता की धारा 326 के अनुसार, धारा 335 द्वारा प्रदान किए गए मामले को छोड़कर अगर कोई भी शख्स, घोंपने, काटने, गोली चलाने या किसी भी सामान को अपराध के दौरान हथियार के तौर पर इस्तेमाल करता है और उससे जानबूझकर किसी को ऐसी गंभीर चोट पहुंचाता है, जिससे उसकी मौत संभव है या फिर आग, गरम पदार्थ, जहर, एसिड, विस्फोटक या सांस, मुंह या खून के जरिए इंसान के शरीर में जाने वाले किसी भी ऐसे पदार्थ का इस्तेमाल करता हो, जो शरीर के लिए घातक है या फिर किसी जानवर का इस्तेमाल कर किसी को चोट पहुंचाता है. तो उसके खिलाफ आईपीसी धारा 326 के तहत कार्रवाई होती है.
क्या होती है सजा
धारा 326 के तहत दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास या किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा का प्रावधान है, जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है. साथ ही दोषी पर आर्थिक जुर्माना भी लगाया जाता है. इस धारा के तहत आने वाले अपराध गैर-जमानती और संज्ञेय होते हैं. ऐसे मामलो की सुनवाई प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट करते हैं. इस धारा के तहत होने वाले अपराध समझौते के काबिल नहीं होते.
आईपीसी की धारा 34
भारतीय दंड संहिता की धारा 34 के अनुसार, अगर किसी अपराध को एक से ज्यादा लोग एक ही मकसद से अंजाम देते हैं. और उन सभी अपराधियों की मंशा एक सामान होती हैं. और वे उस अपराध को करने से पहले आपस में प्लानिंग करते हैं, तो ऐसा हर शख्स उस आपराधिक साजिश और घटना के लिए जिम्मेदार माना जाता है. जैसे कि अपराध उस अकेले शख्स ने ही अंजाम दिया हो.
भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 34 में किसी अपराध की सजा का प्रावधान नहीं है, बल्कि इस धारा के तहत ऐसे अपराध के बारे में बताया गया है, जो किसी दूसरे अपराध के साथ अंजाम दिया गया हो. यानी जब किसी वारदात को अंजाम दिया गया हो तो उसके साथ ही कुछ और लोग भी उसी अपराध को करने के इरादे से उसमें शामिल हों. ऐसे मामलों में उन सभी पर आईपीसी की धारा 34 भी लगाई जाती है. अगर ऐसे किसी मामले में सरकारी नौकरी करने वाला शख्स भी शामिल हो तो वह अपनी नौकरी करने की योग्यता खो देता है. यह एक संगीन धारा मानी जाती है.
क्या है भारतीय दंड संहिता
भारतीय दण्ड संहिता यानी Indian Penal Code, IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक द्वारा किये गये कुछ अपराधों की परिभाषा औ दण्ड का प्राविधान करती है. लेकिन यह भारत की सेना पर लागू नहीं होती है.
अंग्रेजों की देन है आईपीसी
भारतीय दण्ड संहिता यानी आईपीसी सन् 1862 में ब्रिटिश काल के दौरान लागू हुई थी. इसके बाद समय-समय पर इसमें संशोधन होते रहे. विशेषकर भारत के स्वतन्त्र होने के बाद इसमें बड़ा बदलाव किया गया. पाकिस्तान और बांग्लादेश ने भी भारतीय दण्ड संहिता को ही अपनाया. लगभग इसी रूप में यह विधान तत्कालीन ब्रिटिश सत्ता के अधीन आने वाले बर्मा, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, ब्रुनेई आदि में भी लागू कर दिया गया था.
आर्म्स एक्ट 25 की धारा 3 क्या है?
आर्म्स एक्ट की धारा 25 के तहत उन मामलों में अपराध लागू नहीं होगा, जिनमें संदिग्ध को यह जानकारी नहीं है कि उसके पास जीवित गोला-बारूद है. धारा 3 के तहत आशीष मिश्रा के मामले में भी कार्रवाई की मांग की गई है.