
4 जनवरी, 1890 का दिन... ऑस्ट्रिया-हंगरी (अब चेक रिपब्लिक) के हॉस्टिन (Hostinne) में विक्टर लस्टिग (Victor Lustig) का जन्म हुआ. उसका परिवार काफी गरीब (Poor) था. कहा जाता है कि विक्टर जब 7 साल का हुआ तो उसके माता-पिता का तलाक हो गया था. जिसके बाद उसे उसके रिश्तेदारों ने अपने पास रख लिया.
वह बचपन से ही काफी शातिर था. लेकिन उसकी पढ़ाई-लिखाई में कुछ खास दिलचस्पी नहीं थी. विक्टर की एक खास बात थी कि वह किसी भी चीज को बहुत ही जल्दी सीख जाता था और लोगों से दोस्ती करने में तो उसे महारत हासिल थी. वह किसी से भी जल्दी से दोस्ती करके उसे अपना बना लेता था.
लेकिन वह काफी गरीब था इसलिए उसने पैसा कमाने के लिए बचपन से ही भीख मांगना शुरू कर दिया था. जब भीख नहीं मिलती तो वह छोटी-मोटी चोरियां करता. लोगों की जेब काटता. ताकि दो वक्त का खाना खा सके. उसके बारे में कहा जाता है कि एक दिन वह रेस्टोरेंट के बाहर खड़ा था तो उसने देखा कि अंदर एक परिवार बैठा हुआ है. उनके सामने ढेर सारा खाना पड़ा है. लेकिन थोड़ी ही देर बाद वे लोग उस खाने को यूं ही छोड़कर और बिल भरकर रेस्टोरेंट से बाहर निकल आए.
यह देख विक्टर को काफी गुस्सा आया. उसने सोचा कि जहां एक तरफ कई लोगों को खाने के लिए दो वक्त की रोटी भी नहीं मिलती. तो वहीं कुछ अमीर लोग इस तरह खाना बर्बाद करते हैं. तभी से उसने तय कर लिया कि वह अब अमीर लोगों से ठगी करेगा जिन्हें पैसे की कद्र नहीं होती.
विक्टर को आती थीं पांच भाषाएं
वक्त बीता और विक्टर 18 साल का हो गया. Daily Mail के मुताबिक, उसका दिमाग इतना तेज था कि उसने बड़ा होते-होते पांच अलग-अलग भाषाएं सीख ली थीं. लूट और चोरी जैसी वारदातों को वह अब भी अंजाम देता था, जिसके चलते उसे कई बार जेल भी जाना पड़ जाता था. उसे कार्ड खेलना काफी पसंद था. इसलिए जब भी वह जेल में होता तो कार्ड खेलने की नई-नई ट्रिक्स सीखता.
उसने पेरिस, बुडापेस्ट, प्राग, ज्यूरिक जैसे शहरों में कई चोरियां कीं और वहां जेल की हवा भी खाई. लेकिन चोरी करके वह ज्यादा पैसा नहीं कमा पा रहा था. इसिलए उसने तय किया कि वह यूरोप छोड़कर अमेरिका जाएगा. जहां वह बड़ा हाथ मारेगा.
अमीर लोगों को लगाया चूना
एक दिन वह न्यूयॉर्क के लिए यात्रियों से भरे जहाज में बैठकर रवाना हुआ. इस जहाज में उसने देखा कि कई अमीर लोग भी ट्रैवल कर रहे हैं. उसने उन्हें लूटने का प्लान बनाया. सबसे पहले उसने उन लोगों से यह कहकर दोस्ती की कि वह एक म्यूजिक कंपोजर है. लोगों को भी लगा कि वह सच में ही एक संगीतकार है.
विक्टर ने तब उन्हें अपने एक प्रोजेक्ट के बारे में बताया और कहा कि उसके लिए उसे फंडिंग की जरूरत है. अगर उसका ये प्रोजेक्ट कामयाब होता है तो जो भी उसमें पैसा लगाएगा उसे भी काफी फायदा होगा. शिप में बैठे कुछ लोग उसकी बातों में आ गए और उसे रुपये दिए. लेकिन विक्टर उन्हें किसी तरह चूना लगाकर वहां से रफूचक्कर हो गया.
पैसा डबल करने वाला बॉक्स
इसी तरह उसने एक और स्कैम किया था. उसने कारपेंटर से एक लकड़ी का बॉक्स बनवाया. जिसका नाम रखा रोमानियन बॉक्स (Romanian Box). इसमें एक रेडियम की रील लगी थी. उसने लोगों को बताया कि इस बॉक्स में जब आप एक असली नोट डालोगे तो बॉक्स से दो नोट बाहर आएंगे. यानि एक डॉलर डालने पर दो डॉलर बाहर निकलेंगे.
कैसे काम करता था ये बॉक्स
दरअसल, उसने पहले से ही बॉक्स में कुछ डॉलर डाल रखे थे. लोगों के सामने वह उस बॉक्स में एक डॉलर डालता और वहां से दूसरा डॉलर वो वाला बाहर निकलता तो उसने पहले से वहां रखा हुआ होता था. लोगों को लगता कि सच में यह पैसा डबल करने वाला बॉक्स है. लोग पैसों के लालच में उससे रोमानियन बॉक्स खरीदने के लिए कहते. लेकिन विक्टर काफी शातिर था वह पहले तो बॉक्स बेचने के लिए हां कर देता. और बाद में अचानक से मना कर देता. फिर जब सामने वाला इंसान उसे और ज्यादा पैसे देने के लिए कहता तो वह राजी हो जाता.
महज 2 डॉलर का था रोमानियन बॉक्स
उसने कारपेंटर से कई सारे रोमानियन बॉक्स बनवाए. इस एक बॉक्स के लिए वह उस समय एक हजार डॉलर से 30 हजार डॉलर की कीमत वसूलता था. जबकि, असल में वह बॉक्स महज 2 डॉलर का था. इसी तरह उसने कई लोगों को वह बॉक्स बेचा और लाखों डॉलर लूटे. बाद में जब लोगों को पता लगा कि उनके साथ ठगी हुई है तो उन्होंने ने पुलिस में उसके खिलाफ मामले दर्ज करवाए.
गलत नाम और पता बताता था विक्टर
लेकिन विक्टर इतना चालाक था कि वह हमेशा लोगों को अपना गलत नाम और पता बताता था. जिसके चलते उसके कई थानों में उसके अलग-अलग नामों से FIR दर्ज हुईं. पुलिस भी उससे इतनी परेशान हो चुकी थी कि उन्होंने उसे ढूंढने के लिए तब विक्टर लस्टिग नाम दे डाला. बता दें, आज तक किसी को भी नहीं पता है कि उसका असली नाम क्या था?
1925 में वापस आया यूरोप
इसी तरह उसके दिन कटते रहे और वह काफी अमीर बन गया. लोगों को ठग कर खूब पैसा कमाने के बाद 1925 में विक्टर लस्टिग पेरिस आकर बस गया. उस समय वह 35 साल का हो चुका था. वहीं, फ्रॉड के कई मामलों में कनाडा और अमेरिका की पुलिस उसकी तलाश कर रही थी. इस दौरान पहला विश्व युद्ध खत्म हुआ था और पेरिस में नवनिर्माण का काम चल रहा था. निर्माण की खबरें रोजाना अखबारों में छप रही थीं.
ऐसी ही खबरों से भरा हुआ एक अखबार विक्टर के हाथ लगा. वह घर पर उस अखबार को पढ़ रहा था, जिसमें एफिल टॉवर (Eiffel Tower) की मरम्मत के बारे में खबर छपी थी. बस यहीं से विक्टर के दिमाग में एक शातिर आइडिया आया.
ऐसे बेच डाला पेरिस का एफिल टवर
विक्टर ने एफिल टॉवर बेचने के लिए डाक और टेलीग्राफ मंत्रालय के डिप्टी डायरेक्टर का भेष लिया. प्रिंटिंग प्रेस से फर्जी दस्तावेज तैयार किए जिसमें एफिल टॉवर से जुड़ी जानकारियां डाली गई. इसके बाद चुनिंदा व्यापारियों तक यह खबर पहुंचाई कि एफिल टॉवर की मरम्मत करवाना सरकार के लिए मुश्किल है. इसलिए वह इसे बेच रही है. चूंकि यह गुप्त योजना है इसलिए इसका ज्यादा प्रचार नहीं हो रहा है.
बताया जाता है कि 6 व्यापारी विक्टर के झांसे में आ गए और उसने उनके साथ ‘होटल दि क्रॉनिकल’ में एक मीटिंग फिक्स की. मीटिंग में उसने कहा कि एफिल टॉवर से लोगों के जज्बात जुड़े हैं. इसलिए उसके हटाए जाने के बारे में ज्यादा प्रचार नहीं किया जा रहा है.
व्यापारी से मांगी मोटी रिश्वत
विक्टर लस्टिग की ये चाल काम कर गई. कुछ दिन बाद एक व्यापारी ने उसे फोन किया और कहा कि वह एफिल टॉवर खरीदना चाहता है. इस कॉन्ट्रैक्ट को देने के लिए विक्टर ने व्यापारी से मोटी रिश्वत मांगी. व्यापारी को लगा कि सरकारी कर्मचारी अक्सर बड़े टेंडर्स के लिए घूस लेते हैं, तो विक्टर भी यही कर रहा है. इसलिए वह घूस देने को तैयार हो गया. उसने काफी सारा पैसा विक्टर तक पहुंचा भी दिया.
पैसा लेकर हुआ फरार
लेकिन विक्टर पैसा लेकर रातों रात फरार हो गया. अगले दिन व्यापारी जब विक्टर के होटल में रजिस्ट्री के लिए पहुंचा, तो उसे खुद के ठगे जाने का अहसास हुआ. विक्टर ने इतनी चालाकी से इस काम को अंजाम दिया कि कोई उसे पकड़ भी नहीं पाया.
6 महीने बाद फिर बेचा एफिल टावर
इस घटना के 6 महीने बाद विक्टर दोबारा पेरिस लौट आया. इस बार नए व्यापारियों से संपर्क साधा गया. फिर से कुछ व्यापारी विक्टर के झांसे में आ गए और एफिल टॉवर खरीदने में दिलचस्पी दिखाई. उन्होंने विक्टर को घूस की मोटी रकम भी अदा की. विक्टर पैसे लेकर फिर से फरार हो गया.
गर्लफ्रेंड ने ही फंसा दिया
हालांकि, इस बार उसकी किस्मत पहले जैसे अच्छी नहीं थी. पहले वाले व्यापारी ने तो विक्टर के खिलाफ कोई भी रिपोर्ट नहीं की थी, मगर इस बार वाले व्यापारी ने विक्टर की करतूत सब के सामने रख दी. इस तरह विक्टर फंस गया. फिर भी वह पुलिस को चकमा देकर भागने में कामयाब रहा. लेकिन उसकी गर्लफ्रेंड बिली मे (Billy May) ने ही उसे फंसा दिया. दरअसल, उसकी गर्लफ्रेंड को जब पता चला कि विक्टर के अन्य महिलाओं के साथ भी अफेयर हैं तो उसने उसे सबक सिखाने का सोचा.
20 साल कैद की सजा सुनाई गई
Mirror के मुताबिक, बिली ने एफबीआई को बता दिया कि विक्टर इस समय न्यूयॉर्क है. जिसके बाद 10 मई 1935, के दिन विक्टर को गिरफ्तार कर लिया गया. कोर्ट ने उसे 20 साल कैद की सजा सुनाई गई. लेकिन 9 मार्च 1947 को उसकी जेल में ब्रेन ट्यूमर के चलते मौत हो गई.
1887 में बनी थी एफिल टावर
बता दें, 26 जनवरी, 1887 को पेरिस में एफिल टॉवर की नींव रखी गई थी. साल 1887 से 1889 के बीच इसका निर्माण हुआ था. एफिल टॉवर की ऊंचाई 324 मीटर है. जब यह बनकर तैयार हुआ, उस वक्त यह दुनिया की सबसे ऊंची इमारत थी. इस टॉवर का डिजाइन अलेक्जांद्रे-गुस्ताव एफिल (Alexandre Gustave Eiffel) ने किया था. इन्हीं के नाम पर इसका नाम भी रखा गया है.