निर्भया मामले मे आरोपियों की फांसी के लिए उल्टी गिनती शुरू होते ही जल्लाद की खोज शुरू हो गई है. तिहाड़ जेल प्रशासन ने जल्लाद की खोज के लिये उत्तर प्रदेश के जेल प्रशासन को चिट्ठी लिखी है. 9 दिसंबर को तिहाड़ जेल प्रशासन की तरफ से चिट्ठी लिखी गई थी जिसमें यूपी जेल प्रशासन से जल्लादों के बारे में ब्योरा मांगा गया. तिहाड़ जेल प्रशासन ने जल्लादों को जल्द से जल्द देने की बात भी इस चिट्ठी में कही है. (सांकेतिक तस्वीर)
क्राइम तक की टीम ने कुछ समय पहले एक ऐसे ही जल्लाद से बात की, जिनका यह खानदानी काम है. इस परिवार ने अभी तक 25 से ज्यादा लोगों को जल्लाद के रूप में फांसी दी है और आजाद भारत में अभी तक 57 फांसी हुई हैं. आखरी फांसी याकूब मेमन की नागपुर सेंट्रल जेल में दी गई थी. (सांकेतिक तस्वीर)
इस जल्लाद परिवार की कहानी लक्ष्मण, कालूराम, बब्बू सिंह से होते हुए अब पवन कुमार तक आ गई है. आइये उनसे ही जानते हैं कि फांसी घर में फांसी से पहले इशारों में क्यों बात की जाती है? (सांकेतिक तस्वीर)
फांसी घर के बारे में बात करते हुए पवन कहते हैं, "फांसी देते समय 4-5 सिपाही होते हैं, वह कैदी को फांसी के तख्ते पर खड़ा करते हैं. वह कुछ भी बोलते नहीं हैं, केवल इशारों से काम होता है. इसके लिए एक दिन पहले हम सब की जेल अधीक्षक के साथ एक मीटिंग होती है. इसके अलावा फांसी घर में जेल अधीक्षक, डिप्टी जेलर और डॉक्टर भी वहां मौजूद रहते हैं." (सांकेतिक तस्वीर)
फांसी देते समय वहां मौजूद लोग कुछ भी बोलते नहीं हैं, सिर्फ इशारों से काम होता है. इसकी वजह बताते हुए पवन कहते हैं, "इसकी वजह है कि कैदी कहीं डिस्टर्ब न हो जाए, या फिर वह कोई ड्रामा न कर दे. इसीलिए सभी को सब कुछ पता होता है लेकिन कोई भी कुछ बोलता नहीं है." (सांकेतिक तस्वीर)
बता दें कि निर्भया केस मे आरोपियों को फांसी देने के लिए जल्लादों की जरूरत पड़ेगी. यूपी में दो जल्लाद मौजूद हैं. दोनों मे से किसी एक को यूपी जेल प्रशासन तिहाड़ जेल भेजेगा. इस काम कि लिये तिहाड़ जेल प्रशासन जल्लादों के सारे खर्चों और यात्रा का खर्च भी वहन करता है.