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Explainer: नूपुर शर्मा को मिला हथियार का लाइसेंस, जानिए- Licence लेने का पूरा प्रोसेस और नियम

विवादित नेता नूपुर शर्मा को हथियार का लाइसेंस जारी किया गया है. ऐसे में कई लोग जानना चाहते हैं कि हथियार का लाइसेंस कैसे लिया जा सकता है? हथियार लेने की कानूनी प्रक्रिया क्या है? तो हम आपको विस्तार से बताने जा रहे हैं इसी से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी.

गन लाइसेंस लेने की प्रक्रिया जितनी लंबी है, उतनी ही मुश्किल भी गन लाइसेंस लेने की प्रक्रिया जितनी लंबी है, उतनी ही मुश्किल भी
परवेज़ सागर
  • नई दिल्ली,
  • 13 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 12:03 PM IST

बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा को हथियार का लाइसेंस जारी किया गया है. अब वो अपनी आत्मरक्षा के लिए हथियार रख सकती है. ये वही नूपुर शर्मा है, जो पहले बीजेपी की प्रवक्ता थी. एक विवादित टिप्पणी के चलते पार्टी ने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया था. उसके खिलाफ कई राज्यों में मामले दर्ज हैं. ऐसे में कई लोग जानना चाहते हैं कि हथियार का लाइसेंस कैसे लिया जा सकता है? हथियार लेने की कानूनी प्रक्रिया क्या है? तो हम आपको बताने जा रहे हैं इसी से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी विस्तार से.

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कौन जारी करता है लाइसेंस 
शस्त्र अधिनियम, 1959 में संशोधन शस्त्र (संशोधन) अधिनियम, 2019 के नियमानुसार, किसी भी हथियार का लाइसेंस जारी करने का अधिकार राज्य सरकारों के गृह विभाग के पास होता है. अलग-अलग राज्‍यों में डीएम यानी जिलाधिकारी, जिला कलेक्टर, कमिश्नर या इस रैंक के अन्य अधिकारी लाइसेंस जारी करते हैं. लेकिन इस प्रक्रिया में पुलिस थाना और लोकल इंटेलिजेंस यूनिट (LIU) की महत्वपूर्ण भूमिका होती है.

शस्त्र अधिनियम, 1959 
भारत में हथियारों और गोला-बारूद आदि के उपयोग को नियंत्रित करने के मकसद से भारत की संसद द्वारा शस्त्र अधिनियम, 1959 पारित किया गया था. ताकि अवैध हथियारों और उनसे होने वाली हिंसा को रोका जा सके. उसी शस्त्र अधिनियम की धारा 13 (2) के तहत नए शस्त्र का लाइसेंस लेने के लिए आवेदन करने का प्रावधान है. शस्त्र अधिनियम, 1959 में साल 2016 और 2019 में महत्वपूर्व संशोधन भी किए जा चुके हैं.

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आवदेन का प्रारूप
देश के हर राज्य में हथियार के लिए लाइसेंस जारी करने की अपनी प्रक्रिया है. मसलन यूपी में गन लाइसेंस हासिल करने के लिए सबसे पहले एक तय फॉर्मेट (आर्म्स रूल 2016 प्रारूप घ-4) में आवेदन करना होता है. यह आवेदन शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 13 (2) के तहत दाखिल किया जाता है. इसमें तीन तरह के प्रारूप होते हैं. देश के कई राज्यों में ये प्रक्रिया ऑनलाइन भी है. 

आवेदन के वक्त देनी होगी हथियार की जानकारी
लाइसेंस का आवेदन करते वक्त आपको बताना होता है कि किस तरह के हथियार को रखने और चलाने के लिए आपको लाइसेंस लेना हैं. मसलन पिस्तौल, रिवॉल्वर जैसे छोटे हथियार या फिर राइफल, एकनाली या दोनाली जैसी बड़ी बंदूक लेनी है. वो हथियार जो प्रतिबंधित हैं, उनका लाइसेंस जारी नहीं किया जा सकता है. इन प्रतिबंधित हथियारों में 38 बोर, 9 एमएम और 303 जैसे हथियार शामिल हैं.

यहां करते हैं लाइसेंस के लिए आवेदन
सबसे पहले लाइसेंस लेने के लिए आपको आवदेन करना होता है, जिसका एक तय प्रारूप है, जिसे आर्म्स रूल 2016 प्रारूप घ के नाम से जाना जाता है, सबसे पहले इस आवेदन को पूरी तरह से भरकर सभी ज़रूरी दस्तावेजों के साथ डीएम, जिलाधिकारी या फिर कमिश्नर के दफ्तर में मौजूद असलहा यानी शस्त्र लाइसेंस विभाग में जमा कराया जाता है. 

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ऐसे पुलिस और LIU करती है जांच
इस प्रारूप यानी फॉर्म की एक कॉपी जिसे अनुसूचि 3 कहा जाता है, वो जांच के लिए पुलिस यानी एसएसपी या पुलिस कमिश्नर के ऑफिस जाती है. जहां से एक कॉपी संबंधित थाने के पास जाती है और कॉपी एलआईयू के पास जाती है. पुलिस इस बात की जांच करती है कि आवेदक बताए स्थान का ही रहने वाला है या नहीं. उसके खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज या नहीं? अगर दर्ज है तो वह किस प्रकार का मामला है? फार्म का एक हिस्सा डिस्ट्रिक्ट क्राइम रिकोर्ड ब्यूरो (DCRB) में भेजा जाता ताकि पता चल सके कि आवेदक का कोई आपराधिक इतिहास तो नहीं है. 

इसी तरह से LIU आवेदक की खुफिया जांच करती है. वह पता लगाती है कि वो किसी देश विरोध या जन विरोधी गतिविधियों में तो शामिल नहीं है. या वो कोई ऐसा काम तो नहीं करता, जिससे लोगों में डर का भाव पैदा हो. थाने से जांच रिपोर्ट सीओ या एसीपी के पास जाती है. इस रिपोर्ट के साथ एसएचओ का एक हलफनामा (affidavit) भी लगता है. वहां से सीओ या एसीपी उसे एसपी सिटी या एडीसीपी के पास भेजते हैं. फिर जांच रिपोर्ट और जानकारी पूरा कर उसे एसएसपी या पुलिस कमिश्नर के ऑफिस भेजा जाता है. वे अपनी संस्तुति या टिप्पणी के बाद कंप्लीट रिपोर्ट डीएम या कमिश्नर को भेज देते हैं. 

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ऐसे होती है मजिस्ट्रेट जांच
इसी तरह से आवेदन फॉर्म की एक कॉपी पुलिस के साथ-साथ नगर मजिस्ट्रेट या उप जिला मजिस्ट्रेट (SDM) के कार्यालय को भेजी जाती है. जहां से उसे आवदेक से संबंधित तहसील में भेजा जाता है. तहसीलदार उसे इलाके के लेखपाल को भेजता है. लेखपाल मौके पर यह जानकारी जुटाता है कि आवदेक ने किसी जमीन पर कब्जा तो नहीं किया है. या उसका किसी तरह का भूमि संबंधी विवाद तो नहीं है? फिर इलाके का अमीन अपनी रिपोर्ट लगाता है कि आवेदक पर किसी तरह का कोई सरकारी कर्ज या बकाया तो नहीं है? वो राजस्व संबंधी किसी मामले में डिफॉल्टर तो नहीं है? इसके बाद ये लोग अपनी रिपोर्ट लगाकर उस कॉपी को नायब तहसीलदार के पास भेजते हैं. इसके साथ एक हलफनामा (affidavit) भी लगता है. फिर तहसीलदार और सिटी मजिस्ट्रेट या एसडीएम उस पर अपनी संस्तुति या टिप्पणी के बाद उस रिपोर्ट डीएम या कमिश्नर को भेज देते हैं. 

वन संरक्षक भी करता है जांच
इसी प्रकार से जो आवेदक ग्रामीण या वन क्षेत्र में रहते हैं, उनके आवेदन का एक प्रारूप वन संरक्षक के पास भेजा जाता है. जिसमें वो आवेदन के बारे में बताते हैं कि वो उसी इलाके का रहने वाला है. उससे वन क्षेत्र में किसी को कोई भय या खतरा नहीं है. वह वन क्षेत्र में ऐसा कोई काम नहीं करता, जिससे वन क्षेत्र को नुकसान हो. वन संरक्षक अपनी रिपोर्ट लगातार उसे फॉर्म को डीएम या कमिश्नर ऑफिस को भेज देता है. 

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ज़रूरी है शूटिंग रेंज का प्रमाण पत्र
ऐसे ही नियम व प्रारूप ख के तहत एक कॉपी शूटिंग रेज में जाती है. जहां आवेदक को बुलाकर उसका ट्रायल लिया जाता है. वहां उससे हथियार चलवाया जाता है. उसे चलाने की शॉर्ट ट्रेनिंग भी दी जाती है. आवदेक के सफल हो जाने पर उसे एक प्रशिक्षण प्रमाण पत्र जारी किया जाता है. जिसे आवेदक के आवेदन फॉर्म की कॉपी के साथ लगाकर रिपोर्ट समेत वापस डीएम या कमिश्नर कार्यालय को भेजा जाता है.

आवेदक का वचन बंध 
शस्त्र लाइसेंस के आवेदन में एक वचन बंध (Promise Bond) भी संलग्न होता है. जिसमें वह वचन देता है कि वो अपने हथियार और उसकी गोलियों को सुरक्षित तरीके से रखेगा. वह हथियार के दुरुपयोग या उसे चोरी से बचाने के लिए सुरक्षित स्थान, सेफ या अलमारी में ही रखेगा. वह उसे सुरक्षित तरीके से साथ लेकर चलेगा. वह उस हथियार से होने वाले खतरों को देखते हुए उसके बारे में अपने घर में मौजूद सदस्यों और विशेषकर बच्चों को भी जागरूक करेगा. और आवदेक ये वचन देता है कि वह शस्त्र अधिनियम, 1959 के नियमों का पालन करेगा.

आवेदक की मेडिकल जांच
शस्त्र अधिनियम, 1959 के नियम 11 के उपनियम 4 के खंड (छ) में हथियार के लाइसेंस का आवेदन करने वाले व्यक्ति की मेडिकल जांच का प्रावधान किया गया है. जिसके तहत संबंधित सरकारी अस्पताल में उसकी शारीरिक और मानसिक जांच की जाती है. दरअसल, इस जांच के तहत विशेषज्ञ (डॉक्टर) आवेदक की उग्रता और शारीरिक दक्षता का आंकलन करते हैं. उसी के आधार पर वो रिपोर्ट बनाकर उसे डीएम या कमिश्नर कार्यालय को भेजते हैं.

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डीएम या कमिश्नर को है ये विशेष अधिकार
डीएम या डीसी ऑफिस के असलहा या शस्त्र लाइसेंस विभाग को जब सभी जगह से रिपोर्ट मिल जाती है. तब आवदेन पत्र के साथ सभी रिपोर्ट लगाई जाती हैं. फाइल पूरी तरह से तैयार हो जाने पर उसे क्रम में रखा जाता है. जिलाधिकारी या कमिश्नर अपनी मर्जी और समय के अनुसार उसी क्रम के अनुसार फाइल को अवलोकन के लिए मंगवाते हैं. वे आवेदक और उसकी फाइल को अच्छी तरह से देखते हैं, उसका अवलोकर करते हैं. तब वे लाइसेंस जारी करने या ना करने का फैसला करते हैं. काबिल-ए-गौर है कि लाइसेंस देना या नहीं देना पूरी तरह से डीएम, जिलाधिकारी या कमिश्नर पर निर्भर करता है. वे चाहें तो आवदेन को रद्द भी कर सकते हैं. 

आवदेन के साथ लगते हैं ये दस्तावेज
अगर आप शस्त्र लाइसेंस का आवेदन करने जा रहे हैं, तो आपके लिए यह जानना भी ज़रूरी है कि आवेदन प्रारूप के साथ क्या-क्या दस्तावेज लगाना ज़रूरी है. आवदेन को डीएम या कमिश्नर ऑफिस के असलाह लाइसेंस विभाग में जमा करते समय उसके साथ आधार, या पहचान प्रमाण पत्र, एड्रेस प्रूफ, मेडिकल सर्टिफिकेट, आयु प्रमाण पत्र (आपकी उम्र 21 वर्ष या उससे अधिक), चरित्र प्रमाण पत्र और तीन साल की ITR आदि जमा करना ज़रूरी है. 

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रजिस्टर्ड दुकान से ही खरीद सकते हैं हथियार
डीएम या कमिश्नर ऑफिस से लाइसेंस जारी होने के बाद आवेदक वही ​हथियार खरीद सकता है, जिसके लिए उसने आवेदन किया था. वह हथियार को सरकार से रजिस्टर्ड दुकान से ही खरीद सकता है. जो हथियार खरीदकर वह लाइसेंस पर चढ़वाता है. उसकी जानकारी आवेदक को संबंधित पुलिस थाने को भी देनी होती है. 

रखना पड़ता है हिसाब
हथियार अगर पिस्तौल, रिवॉल्वर या बंदूक है, तो उसके साथ कितनी गोलियां खरीदी गईं. इसका हिसाब भी सालाना तौर पर रखना पड़ता है. मसलन, एक साल में कितनी गोलियां खरीदी. कहां खर्च कीं. यह जानकारी देने पर ही आप दोबारा नई गोलियां खरीद सकते हैं. 

इस वजह से रद्द हो सकता है लाइसेंस, हो सकती है जेल
अगर कोई लाइसेंस धारक हर्ष फायरिंग करता है. दिखावा करने या रौब जमाने के लिए गोलियां चलाता है या फिर दहशत पैदा करने के लिए फायरिंग करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है या उसे जेल भी जाना पड़ सकता है. अगर लाइसेंसधारी शस्त्र अधिनियम, 1959 के नियम और शर्तों का पालन नहीं करता तो डीएम या कमिश्नर उसका लाइसेंस रद्द कर हथियार भी जब्त कर सकते हैं उसे मालखाने में रखवा सकते हैं.

ऐसे होता है लाइसेंस का रिन्यूअल
बंदूक का लाइसेंस पहले तीन साल के लिए मिलता था, जिसकी अवधि सरकार ने अब बढ़ाकर 5 साल कर दी है. यह अवधि यानी वैलिडिटी खत्म होने के बाद लाइसेंस को फिर से रिन्यू कराना होता है. इसके लिए भी लाइसेंस धारक की फिर से जांच-पड़ताल के बाद लाइसेंस फीस जमा करनी होती है. खिलाड़ी भी निशानेबाजी के लिए हथियार का लाइसेंस लेते हैं. 

लाइसेंस के लिए हैं 11 श्रेणी
शस्त्र लाइसेंस के लिए शस्त्र अधिनियम, 1959 के अनुसार 11 श्रेणी उल्लेखित हैं. जिसमें आमजन के साथ-साथ सेना या पुलिसकर्मियों, भूतपूर्व सैनिकों, खिलाड़ियों, लाइसेंसधारी के आश्रितों और लाइसेंसधारी की मृत्यु हो जाने पर उनके वारिसों को लाइसेंस दिए जाने का प्रावधान है.

दूसरे सूबे में ऐसे ले जा सकते हैं लाइसेंसी हथियार 
शस्त्र लाइसेंस वैसे तो आवदेक के राज्य की सीमा के लिए ही होता है. अगर कोई आवेदक अपने लाइसेंसी हथियार को लेकर दूसरे राज्य में जाना चाहता है तो शस्त्र नियम 1962 के उपनियम 53 के अनुसार आप अपना लाइसेंस पूरे देश के लिए बनवा सकते हैं. आपका राज्य द्वारा जारी लाइसेंस को ही एक प्रकिया के तहत ऑल इंडिया परमिट कर दिया जाता है. इसके बाद आप अपने हथियार के साथ पूरे देश में कहीं भी घूम सकते हैं. लेकिन सभी केंद्र शासित प्रदेशों और राज्यों को यह निर्देशित है कि जब भी किसी का लाइसेंस पूरे देश के लिए लागू किया जाए, तो उससे पहले वे गृह मंत्रालय से अनुमति ज़रूर लें. इसकी जटिल प्रक्रिया की वजह से ही देश में बहुत कम लोगों के पास गन लाइसेंस का ऑल इंडिया परमिट है.

 

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