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पहले वर्चस्व की लड़ाई, अब बेटी की सगाई... गले मिले दो बाहुबली और दोस्ती में बदल गई दुश्मनी

बाहुबली नेता, पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह और पप्पू यादव के बीच की अदावत लोग भूले नहीं हैं. इनकी दुश्मनी कई वर्षों तक चलती रही. मगर एक-दूसरे को मात देने में कोई कसर नहीं छोड़ने वाले जब एक दूसरे के गले मिले तो सारी दुश्मनी इस मौके पर खुशी में बदल गई.

आनंद मोहन सिंह और पप्पू यादव दोनों एक साथ सगाई समारोह में खुश दिखाई दिए आनंद मोहन सिंह और पप्पू यादव दोनों एक साथ सगाई समारोह में खुश दिखाई दिए
सुजीत झा
  • पटना,
  • 08 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 9:25 PM IST

बिहार में दो पूर्व सांसद और बाहुबली नेताओं के बीच वर्चस्व की लड़ाई के किस्से काफी मशहूर रहे हैं लेकिन सोमवार की रात दशकों की दुश्मनी उस समय दोस्ती में बदल गई, जब दोनों गले मिले. मौका था पूर्व सांसद आनंद मोहन की बेटी सुरभि आनंद की सगाई का. जिसमें तमाम हस्तियों के साथ जनाधिकार पार्टी के सुप्रीमो पप्पू यादव ने न सिर्फ नए जोड़े को शुभकामनाएं दी, बल्कि आनंद मोहन सिंह के साथ काफी वक्त गुजारा.

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सरकार और विपक्ष का जमावड़ा
सोमवार की रात पटना के एक होटल में आनंद मोहन सिंह की बेटी सुरभि आनंद की सगाई के मौके पर तमाम हस्तियां मौजूद थी. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, मंत्रिमंडल के कई सदस्य संजय झा, विजय कुमार चौधरी समेत तमाम लोग शामिल वहां पहुंचे थे. बीजेपी के तरफ से प्रतिपक्ष के नेता सम्राट चौधरी समेत कई नेता वहां मौजूद थे.

दोस्ती में बदल गई दुश्मनी
लेकिन चर्चा में रही आनंद मोहन और पप्पू यादव की मुलाकात. कई लोगों में आज भी इनके बीच की अदावत की यादें ताज़ा हो गई. इनकी दुश्मनी कई वर्षों तक चलती रही. एक-दूसरे को मात देने में कोई कसर नहीं छोड़ने वाले जब एक दूसरे के गले मिले तो सारी दुश्मनी इस मौके पर खुशी में बदल गई. आनंद मोहन अपनी बेटी की सगाई के लिये 15 दिनों के पेरौल पर जेल से बाहर आए हैं.

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दुश्मनी का दौर
एक जमाना वो भी था जब दोनों की लड़ाई चरम पर हुआ करती थी. कोसी क्षेत्र में वर्चस्व की लड़ाई को लेकर दिनों के बीच कई बार मुठभेड़ भी हुई. कइयों की जाने गई. जिसमें सहरसा का पामा और पूर्णिया के भंगरा कांड को आज भी याद किया जाता है. कोसी क्षेत्र में वर्चस्व की लड़ाई को लेकर इनके समर्थकों के बीच तो हजारों गोलियां चली होंगी. ऐसा नहीं है कि इन दोनों के बीच कोई व्यक्तिगत लड़ाई थी. 

90 के दशक में चरम पर थी लड़ाई
1990 का दशक चल रहा था. उस दौरान बिहार में ऐसा सामाजिक ताना-बाना बुना गया था कि जात की लड़ाई खुल कर सामने आ गई थी और अपनी-अपनी जातियों के प्रोटेक्शन को लेकर आनंद मोहन सिंह और पप्पू यादव लड़ाई लड़ रहे थे. बिहार में वो लालू प्रसाद यादव का दौर था. जहां मंडल और कमंडल की जोरआजमाइश चल रही थी.

आनंद मोहन सिंह ने की थी पप्पू यादव की मदद
लेकिन इसी दौरान एक ऐसी भी घटना घटी जो ये साबित करती है कि आनंद मोहन सिंह और पप्पू यादव की लड़ाई व्यक्तिगत नहीं थी. एक बार सहरसा से पटना आते हुये पप्पू यादव की गाड़ी दुर्घटना ग्रस्त हो गई. लोगों ने उस समय पप्पू यादव को घेर लिया था. लेकिन आनंद मोहन सिंह ने वहां पहुंचकर पप्पू यादव की गाड़ी को निकलवाने में मदद की थी.

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कौन है आनंद मोहन सिंह
कोसी की धरती पर पैदा हुए आनंद मोहन सिंह बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव के रहने वाले हैं. उनके दादा राम बहादुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे. राजनीति से उनका परिचय 1974 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन के दौरान हुआ. इसके लिए उन्होंने अपना कॉलेज तक छोड़ दिया. इमरजेंसी के दौरान उन्हें 2 साल जेल में भी रहना पड़ा. कहा जाता है कि आनंद मोहन सिंह ने 17 साल की उम्र में ही अपना सियासी करियर शुरू कर दिया था.

राजनीति में ऐसे रखा था कदम
साल 1990 में जनता दल (JD) ने उन्हें माहिषी विधानसभा सीट से मैदान में उतारा था. इसमें उन्हें जीत मिली थी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, विधायक रहते हुए भी आनंद एक कुख्यात सांप्रदायिक गिरोह के अगुआ थे, जिसे उनकी 'प्राइवेट आर्मी' कहा जाता था. ये गिरोह उन लोगों पर हमला करता था जो आरक्षण के समर्थक थे. 5 बार लोकसभा सांसद रहे राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव के गैंग के साथ आनंद मोहन की लंबी अदावत चली. उस वक्त कोसी के इलाके में गृह युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो गई थी. जब सत्ता में बदलाव हुआ खासकर 1990 में, तो राजपूतों का दबदबा बिहार की राजनीति में कम हो गया था.
 

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