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छावला गैंगरेप : दरिंदगी की इंतहा, पुलिस की लापरवाही, SC से तीनों आरोपी रिहा, गम और गुस्से में परिजन

सुप्रीम कोर्ट ने तीनों दोषियों को बरी करने में पुलिस की घोर लापरवाही को अपने फैसले का आधार बनाया. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अदालतें सबूतों पर चलकर फैसले लेती है ना कि भावनाओं में बहकर. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आरोपियों को अपनी बात कहने का पूरा मौका नहीं मिला.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पीड़िता की मां ने कहा- मैं हार गई. सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पीड़िता की मां ने कहा- मैं हार गई.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 08 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 2:03 PM IST

मैं हार गई हूं...ये शब्द सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर फूट फूट कर रोती हुई उस मां के हैं, जिसने अपनी बेटी को न्याय दिलाने के लिए 10 साल तक कई अदालतों के चक्कर काटे. निचली अदालत और हाईकोर्ट ने गैंगरेप और हत्या से जुड़े इस केस को रेयरेस्ट ऑफ रेयर' मानते हुए तीनों दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल पुराने इस मामले में फैसले को बदलते हुए सोमवार को तीनों आरोपियों को बरी कर दिया.

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दिल्ली का 10 साल पुराना छावला रेप केस एक बार फिर चर्चा में है. वजह सुप्रीम कोर्ट का फैसला. देश की सबसे बड़ी अदालत ने गैंगरेप और हैवानियत के इस मामले में तीनों दोषियों को बरी कर दिया. इस फैसले को सुनकर हर कोई हैरान रह गया. पीड़िता की मां ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अपनी हार बताया. उन्होंने कहा कि मैं हार गई. उनका कहना है कि इस फैसले के इंतजार में हम जिंदा थे. लेकिन अब हार गए. हमें उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट से उनकी बेटी को इंसाफ मिलेगा. लेकिन इस फैसले के बाद अब जीने का कोई मकसद नहीं बचा. 

कोर्ट फैसला सबूतों पर लेती है, भावनाओं पर नहीं- सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने तीनों दोषियों को बरी करने में पुलिस की घोर लापरवाही को अपने फैसले का आधार बनाया. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अदालतें सबूतों पर चलकर फैसले लेती है ना कि भावनाओं में बहकर. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आरोपियों को अपनी बात कहने का पूरा मौका नहीं मिला. आईए जानते हैं कि कैसे पुलिस की लापरवाही के चलते 19 साल की लड़की के साथ हैवानियत के मामले में दोषी बरी हो गए. 

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2012 का मामला

फरवरी 2012 की बात है. छावला की रहने वाली 19 साल की युवती गुड़गांव से काम खत्म कर बस से घर वापस लौट रही थी. कुछ देर बाद वो बस से उतरी और अपने घर की तरफ पैदल जाने लगी. तभी पीछे एक लाल रंग की कार आती है और उसमें सवार तीन युवक जबरन पकड़कर कार में खींच लेते हैं और उसे अगवा कर ले जाते हैं. 
 
दरिंदगी की हर हद की पार

बदमाशों ने युवती को हरियाणा ले जाने का फैसला किया. कार में उसके साथ घंटों तक ज्यादती करते रहे. वहां पहुंचकर सबसे पहले तीनों ने एक दारु के ठेके से शराब खरीदी और फिर कार को एक सुनसान जगह पर ले जाकर शराब पीते हुए रोशनी के साथ दरिंदगी करने लगे. तीनों दरिंदों ने उस लड़की के जिस्म को नोंचने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उसके जिस्म को कई जगह से दातों से काटा गया. उसके सिर पर घड़े से हमला किया. दरिंदे यही नहीं रुके, उन्होंने गाड़ी से लोहे का पाना और जैक निकालकर उसके सिर पर वार किया. दरिंदों ने उसे जला कर बदशक्ल करने के लिए गाड़ी के साइलेंसर से दूसरे औजारों को गर्म कर उसके जिस्म को जगह-जगह दाग दिया. यहां तक कि उसके प्राइवेट पार्ट को भी जलाया गया. इसके बाद आरोपियों ने बीयर की बोतल फोड़ी और उससे लड़की के पूरी जिस्म को तब तक काटते रहे. युवती की मौत हो चुकी थी. इसके बाद उसके प्राइवेट पार्ट में भी टूटी बोतल घुसा दी थी. उन दरिदों ने लड़की की आंखें फोड़कर उनमें कार की बैटरी का तेजाब भर दिया था.

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पुलिस की पकड़ में आए आरोपी

युवती के पिता गार्ड की नौकरी करते थे. जब काफी देर तक लड़की घर नहीं पहुंची, तो उन्होंने खोजबीन शुरू की. इसके बाद वे पुलिस से मदद मांगने के लिए भी गए. पीड़ित परिवार ने पुलिस को सारी घटना के बारे में बताया. लेकिन उस वक्त वे हैरान रह गए जब दिल्ली पुलिस ने उनसे कहा कि संदिग्ध बदमाशों को ढूंढ़ने के लिए उनके पास गाड़ी उपलब्ध नहीं है. इसके बाद पुलिस ने जांच शुरू की. पता चला कि तीनों आरोपी हरियाणा के ही रहने वाले थे. जिनकी पहचान रवि, राहुल और विनोद के तौर पर की गई थी. ये तीनों ही कार ड्राइवर थे. पुलिस ने उनकी मोबाइल फोन लोकेशन और कार की पहचान करके तीनों को एक-एक धरदबोचा था. 

पुलिस की लापरवाही और सुप्रीम कोर्ट का फैसला

पुलिस ने आरोपियों के 16 फरवरी को डीएनए टेस्ट के लिए सैंपल लिए. लेकिन पुलिस की कारस्तानी देखिए, अगले 11 दिनों तक सैंपल पुलिस थाने के मालखाने में पड़े रहे. यानी 27 फरवरी को वो सैंपल सीएफएसएल भेजे गए. पुलिस की इसी लापरवाही का कोर्ट में दोषियों को फायदा मिला. 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आरोपियों को अपनी बात कहने का पूरा मौका नहीं मिला. बचाव पक्ष की दलील थी गवाहों ने भी आरोपियों की पहचान नहीं की. कुल 49 गवाहों में दस का क्रॉस एग्जामिनेशन नहीं कराया गया. आरोपियों की पहचान के लिए कोई परेड नहीं कराई गई. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निचली अदालत ने भी प्रक्रिया का पालन नहीं किया. निचली अदालत अपने विवेक से भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के तहत सच्चाई की तह तक पहुंचने के लिए आवश्यक कार्यवाही कर सकता था. ऐसा क्यों नहीं किया गया?

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सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया है कि जांच के दौरान ASI द्वारा मृतक के शरीर के जो बाल मिला था, वो काफी संदिग्ध है. आदेश के दौरान कोर्ट ने इस बात का भी जिक्र किया कि लड़की का फील्ड में जो शव मिला था, वो सड़ा नहीं था. ये भी सवाल उठाया गया कि तीन दिनों तक शव फील्ड में पड़ा रहा, लेकिन किसी का भी उस पर ध्यान नहीं गया.

'आरोपियों का बढ़ेगा हौसला'

सुप्रीम कोर्ट ने 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' कहे जाने वाले इस मामले में तीनों दोषियों को बरी कर दिया. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सवालों में है. कई महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना की और कहा कि इससे आरोपियों का हौसला बढ़ेगा. फैसले के वक्त पीड़िता की मां और पिता के साथ कोर्ट के बाहर मौजूद एक्टिविस्ट योगिता भयाना ने कहा कि सुबह हमें पूरी उम्मीद थी कि कोर्ट मौत की सजा को बरकरार रखेगी. लेकिन जब हमने सुना कि दोषियों को बरी कर दिया गया. हमें अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ. हम इस फैसले के खिलाफ अपील करेंगे. दिल्ली महिला आयोग (DCW) की प्रमुख स्वाति मालीवाल ने पीड़िता के साथ हुई क्रूरता का जिक्र करते हुए सवाल उठाया है कि क्या इससे बलात्कारियों का मनोबल नहीं बढ़ेगा?
 

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