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ज्ञानवापी केस: क्या है सीपीसी 7/11 का प्रावधान, जिस पर सुनवाई के दौरान भिड़े हिंदू-मुस्लिम पक्ष

प्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मामले में आदेश देते हुए वाराणसी की जिला अदालत को कहा कि प्राथमिकता के आधार पर इस याचिका के सुनवाई योग्य होने पर फैसला करें. यानी पहले सुनवाई इस मुद्दे पर हो कि हिंदू पक्षकारों की ये याचिका सुनवाई योग्य है भी या नहीं.

CPC के आदेश 7 के नियम 11 के तहत किसी याचिका को अस्वीकार कर सकती है अदालत CPC के आदेश 7 के नियम 11 के तहत किसी याचिका को अस्वीकार कर सकती है अदालत
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 26 मई 2022,
  • अपडेटेड 6:32 PM IST
  • सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर वाराणसी कोर्ट में जारी है सुनवाई
  • गुरुवार को सुनवाई के दौरान सीपीसी आदेश 7, नियम 11 का जिक्र

वाराणसी की अदालत में ज्ञानवापी मामले को लेकर सुनवाई चल रही है. इस दौरान आम नागरिकों को एक और शब्द 7/11 जानने को मिला है. इसका इस्तेमाल कई जगह किया जा रहा है. ऐसे में इसका मतलब जानना और समझना भी ज़रूरी हो जाता है. तो आइए जानने की कोशिश करते हैं कि इसका पूरा मतलब क्या है? 
 
सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मामले में आदेश देते हुए वाराणसी की जिला अदालत को कहा कि प्राथमिकता के आधार पर इस याचिका के सुनवाई योग्य होने पर फैसला करें. यानी पहले सुनवाई इस मुद्दे पर हो कि हिंदू पक्षकारों की ये याचिका सुनवाई योग्य है भी या नहीं. इस सुनवाई का मुख्य आधार उपासना स्थल कानून के साथ सिविल प्रक्रिया संहिता (Civil procedure code) में आदेश 7 नियम 11 ही है. 

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ये आदेश मुख्यतया किसी वाद यानी याचिका को अदालत में खारिज करता है. इसकी और विस्तार में व्याख्या इस प्रकार से की गई है. दिवानी प्रक्रिया संहिता यानी सिविल प्रोसीजर कोड (CPC) का आदेश 7 नियम 11 कहता है कि किसी वाद यानी मुकदमे को अदालत सुनने से अस्वीकार कर देगी, अगर निम्नलिखित सात कसौटियों पर वो वाद यानी दावा खरा ना उतरे- 

1. जहां अर्जी में कॉज ऑफ एक्शन (Cause of action) यानी कार्रवाई करने का कोई कारण नहीं दिखाया या बताया गया हो. 

2. जहां दावा की गई राहत का कम मूल्यांकन किया गया हो. वादी, अदालत की ओर से तय समय सीमा के भीतर मूल्यांकन को सही करने के लिए निर्देश देने के बाद भी दूसरा पक्ष ऐसा करने में विफल रहे.
 
3. जहां दावा की गई राहत का उचित मूल्यांकन तो किया गया हो लेकिन वाद के दस्तावेजों पर अपर्याप्त धनराशि की स्टाम्प लगी हो. अदालत की ओर से तय मोहलत के भीतर आवश्यक स्टाम्प लगाने के आदेश के बावजूद वादी ऐसा करने में विफल रहे.

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4. जहां वादपत्र में दिया गया कोई बयान या प्रार्थना किसी कानून से निषिद्ध यानी सुनवाई से वर्जित प्रतीत होता हो.

5. जहां इसे डुप्लीकेट में दाखिल नहीं किया गया.

6. जहां वादी नियम 9 के प्रावधान का पालन करने में विफल रहे. यानी वादी द्वारा वाद की अपेक्षित प्रतियां दाखिल करने के अदालती आदेशों का पालन करने में विफल रहे. 

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ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्षकार अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी वाराणसी ने कहा है कि हिंदू पक्ष की याचिका 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट (Places of Worship Act) के तहत सुनवाई के लिए वर्जित है. इसलिए ये CPC आदेश 7 नियम 11 के प्रावधान के तहत आता है. जिसमें कहा गया है कि जहां वादपत्र में दिया गया कोई बयान किसी कानून द्वारा वर्जित प्रतीत होता है, उसे अदालत अस्वीकार करेगी.

जबकि हिन्दू पक्षकारों का कहना है कि वहां 15 अगस्त 1947 से पहले और बाद तक लगातार देवी श्रृंगार गौरी की पूजा अर्चना होती रही है. लिहाजा उनका वाद ऑर्डर 7 नियम 11 के प्रावधान चार की परिधि से बाहर और ऊपर है. यानी कोर्ट इस पर न केवल सुनवाई कर सकता है बल्कि उनको दावे के मुताबिक न्याय कर उनका अधिकार भी दिला सकता है. इसमें उपासना स्थल कानून और आदेश 7 नियम 11 और प्रावधान (डी) भी प्रभावी नहीं होता है.

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