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CrPC Section 121: सिक्योरिटी को नामंजूर करने की शक्ति का प्रावधान करती है धारा 121

CrPC की धारा 121 (Section 121) में मजिस्ट्रेट की एक विशेष शक्ति के बारे में विस्तार से बताया गया है. आइए जानते हैं कि सीआरपीसी की धारा 121 इस बारे में क्या जानकारी देती है?

मजिस्ट्रेट की शक्ति पर आधारित है ये धारा मजिस्ट्रेट की शक्ति पर आधारित है ये धारा
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 03 जून 2022,
  • अपडेटेड 9:31 PM IST
  • मजिस्ट्रेट की शक्ति पर आधारित है ये धारा
  • 1974 में लागू की गई थी सीआरपीसी
  • CrPC में कई बार हुए है संशोधन

Code of Criminal Procedure: दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधान के तहत किसी मामले में कोई मजिस्ट्रेट उसके समक्ष पेश की गई सिक्योरिटी को स्वीकार करने से इनकार कर सकता है. CrPC की धारा 121 (Section 121) में मजिस्ट्रेट की इसी शक्ति के बारे में विस्तार से बताया गया है. आइए जानते हैं कि सीआरपीसी की धारा 121 इस बारे में क्या जानकारी देती है?

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सीआरपीसी की धारा 121 (CrPC Section 121)
दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure 1973) की धारा 121 (Section 121) मजिस्ट्रेट को प्रतिभुओं को अस्वीकार करने की शक्ति प्रदान करती है. यानी वह मजिस्ट्रेट किसी मामले में उसके समक्ष पेश की गई सिक्योरिटी को अस्वीकार कर सकता है. CrPC की धारा 121 के मुताबिक-

(1) मजिस्ट्रेट किसी पेश किए गए प्रतिभू को स्वीकार करने से इनकार कर सकता है या अपने द्वारा, या अपने पूर्ववर्ती द्वारा, इस अध्याय के अधीन पहले स्वीकार किए गए किसी प्रतिभू को इस आधार पर अस्वीकार कर सकता है कि ऐसा प्रतिभू बंधपत्र के प्रयोजनों के लिए अनुपयुक्त व्यक्ति है:

परंतु किसी ऐसे प्रतिभू को इस प्रकार स्वीकार करने से इनकार करने या उसे अस्वीकार करने के पहले वह प्रतिभू की उपयुक्तता के बारे में या तो स्वयं शपथ पर जांच करेगा या अपने अधीनस्थ मजिस्ट्रेट से ऐसी जांच और उसके बारे में रिपोर्ट करवाएगा.
 
(2) ऐसा मजिस्ट्रेट जांच करने के पहले प्रतिभू को और ऐसे व्यक्ति को, जिसने वह प्रतिभू पेश किया है, उचित सूचना देगा और जांच करने में अपने सामने दिए गए साक्ष्य के सार को अभिलिखित करेगा.

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(3) यदि मजिस्ट्रेट को अपने समक्ष या उपधारा (1) के अधीन प्रतिनियुक्त मजिस्ट्रेट के समक्ष ऐसे दिए गए साक्ष्य पर और ऐसे मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट पर (यदि कोई हो), विचार करने के पश्चात् समाधान हो जाता है कि वह प्रतिभू बंधपत्र के प्रयोजनों के लिए अनुपयुक्त व्यक्ति है तो वह उस प्रतिभू को, यथास्थिति, स्वीकार करने से इनकार करने का या उसे अस्वीकार करने का आदेश करेगा और ऐसा करने के लिए अपने कारण अभिलिखित करेगाः

परंतु किसी प्रतिभू को, जो पहले स्वीकार किया जा चुका है, अस्वीकार करने का आदेश देने के पहले मजिस्ट्रेट अपना समन या वारंट, जिसे वह ठीक समझे, जारी करेगा और उस व्यक्ति को, जिसके लिए प्रतिभू आबद्ध है, अपने समक्ष हाजिर कराएगा या बुलवाएगा.

इसे भी पढ़ें--- CrPC Section 120: जमानती बॉन्ड के कंटेंट से जुड़ी है सीआरपीसी की धारा 120 

क्या है सीआरपीसी (CrPC)
सीआरपीसी (CRPC) अंग्रेजी का शब्द है. जिसकी फुल फॉर्म Code of Criminal Procedure (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर) होती है. इसे हिंदी में 'दंड प्रक्रिया संहिता' कहा जाता है. CrPC में 37 अध्याय (Chapter) हैं, जिनके अधीन कुल 484 धाराएं (Sections) मौजूद हैं. जब कोई अपराध होता है, तो हमेशा दो प्रक्रियाएं होती हैं, एक तो पुलिस अपराध (Crime) की जांच करने में अपनाती है, जो पीड़ित (Victim) से संबंधित होती है और दूसरी प्रक्रिया आरोपी (Accused) के संबंध में होती है. सीआरपीसी (CrPC) में इन प्रक्रियाओं का ब्योरा दिया गया है.

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1974 में लागू हुई थी CrPC
सीआरपीसी के लिए 1973 में कानून (Law) पारित किया गया था. इसके बाद 1 अप्रैल 1974 से दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी (CrPC) देश में लागू हो गई थी. तब से अब तक CrPC में कई बार संशोधन (Amendment) भी किए गए है.

 

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