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CrPC Section 157: जांच के लिए प्रक्रिया बताती है सीआरपीसी की धारा 157

सीआरपीसी की धारा 157 (Section 157) में जांच के लिए प्रक्रिया (Procedure) और प्रारंभिक जांच (Initial screening) को परिभाषित (Define) किया गया है. आइए जान लेते हैं कि सीआरपीसी (CrPC) की धारा 157 इस संबंध में क्या प्रावधान करती है?

जांच के लिए प्रक्रिया से संबंधित है ये धारा जांच के लिए प्रक्रिया से संबंधित है ये धारा
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 23 जून 2022,
  • अपडेटेड 10:13 PM IST
  • जांच के लिए प्रक्रिया से संबंधित है ये धारा
  • 1974 में लागू की गई थी सीआरपीसी
  • CrPC में कई बार हुए है संशोधन

Code of Criminal Procedure: दंड प्रक्रिया संहिता में न्यायलय (Court) और पुलिस (Police) की कार्यप्रणाली से जुड़े कई अहम कानूनी प्रावधान मौजूद हैं. इसी प्रकार से सीआरपीसी की धारा 157 (Section 157) में जांच के लिए प्रक्रिया (Procedure) और प्रारंभिक जांच (Initial screening) को परिभाषित (Define) किया गया है. आइए जान लेते हैं कि सीआरपीसी (CrPC) की धारा 157 इस संबंध में क्या प्रावधान करती है? 

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सीआरपीसी की धारा 157 (CrPC Section 157)
दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure 1973) की धारा 157 में अन्वेषण के लिए प्रक्रिया यानी जांच के लिए प्रक्रिया और प्रारंभिक जांच के बारे में जानकारी दी गई है. CrPC की धारा 157 के अनुसार-

(1) यदि पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को, इत्तिला प्राप्त होने पर या अन्यथा, यह संदेह करने का कारण है कि ऐसा अपराध किया गया है जिसका अन्वेषण करने के लिए धारा 156 के अधीन वह् सशक्त है तो वह उस अपराध की रिपोर्ट उस मजिस्ट्रेट को तत्काल भेजेगा जो ऐसे अपराध का पुलिस रिपोर्ट पर संज्ञान करने के लिए सशक्त है और मामले के तथ्यों और परिस्थितियों का अन्वेषण करने के लिए, और यदि आवश्यक हो तो अपराधी का पता चलाने और उसकी गिरफ्तारी के उपाय करने के लिए, उस स्थान पर या तो स्वयं जाएगा या अपने अधीनस्थ अधिकारियों में से एक को भेजेगा जो ऐसी पंक्ति से निम्नतर पंक्ति का न होगा जिसे राज्य सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा इस निमित्त विहित करे: परंतु

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(क) जब ऐसे अपराध के किए जाने की कोई इत्तिला किसी व्यक्ति के विरुद्ध उसका नाम देकर की गई है और मामला गंभीर प्रकार का नहीं है तब यह आवश्यक न होगा कि पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी उस स्थान पर अन्वेषण करने के लिए स्वयं जाए या अधीनस्थ अधिकारी को भेजे; (ख) यदि पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को यह प्रतीत होता है कि अन्वेषण करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है तो वह उस मामले का अन्वेषण न करेगा. परंतु

यह और कि बलात्संग के अपराध के संबंध में, पीड़ित का कथन, पीड़ित के निवास पर या उसकी पसंद के स्थान पर और यथासाध्य, किसी महिला पुलिस अधिकारी द्वारा उसके माता-पिता या संरक्षक या नजदीकी नातेदार या परिक्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता की उपस्थिति में अभिलिखित किया जाएगा.

(2) उपधारा (1) के परंतुक के खंड (क) और (ख) में वर्णित दशाओं में से प्रत्येक दशा में पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी अपनी रिपोर्ट में उस उपधारा की अपेक्षाओं का पूर्णतया अनुपालन न करने के अपने कारणों का कथन करेगा और उक्त परंतुक के खंड (ब) में वर्णित दशा में ऐसा अधिकारी इत्तिला देने वाले को, यदि कोई हो, ऐसी रीति से, जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाए तत्काल इस बात की सूचना दे देगा कि वह उस मामले में अन्वेषण न तो करेगा और न कराएगा.

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क्या है दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC)
दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973) भारत में आपराधिक कानून के क्रियान्यवन के लिये मुख्य कानून है. यह सन् 1973 में पारित हुआ था. इसे देश में 1 अप्रैल 1974 को लागू किया गया. दंड प्रक्रिया संहिता का संक्षिप्त नाम 'सीआरपीसी' है. सीआरपीसी (CRPC) अंग्रेजी का शब्द है. जिसकी फुल फॉर्म Code of Criminal Procedure (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर) होती है. इसे हिंदी में 'दंड प्रक्रिया संहिता' कहा जाता है. 

CrPC में 37 अध्याय (Chapter) हैं, जिनके अधीन कुल 484 धाराएं (Sections) मौजूद हैं. जब कोई अपराध होता है, तो हमेशा दो प्रक्रियाएं होती हैं, एक तो पुलिस अपराध (Crime) की जांच करने में अपनाती है, जो पीड़ित (Victim) से संबंधित होती है और दूसरी प्रक्रिया आरोपी (Accused) के संबंध में होती है. सीआरपीसी (CrPC) में इन प्रक्रियाओं का ब्योरा दिया गया है. CrPC में अब तक कई बार संशोधन (Amendment) भी किए जा चुके हैं.

 

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