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Code of Criminal Procedure: दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 158 में तो पुलिस (Police) द्वारा मजिस्ट्रेट के समक्ष किसी भी मामले की रिपोर्ट कैसे दी जाएंगी, यह बताया गया है. लेकिन आईपीसी की धारा 159 में किसी जांच या प्रारंभिक जांच को लेकर मजिस्ट्रेट की शक्ति को परिभाषित किया गया है. चलिए जान लेते हैं कि सीआरपीसी (CrPC) की धारा 159 इस बारे में क्या बताती है?
सीआरपीसी की धारा 159 (CrPC Section 159)
दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure 1973) की धारा 159 का संबंध किसी मामले की पुलिस (Police) द्वारा की जाने वाली उस जांच से है, जिसे मजिस्ट्रेट (Magistrate) अपनी शक्ति से प्रभावित (Affected by power) कर सकता है. या ये कहें तो यह धारा अन्वेषण या प्रारम्भिक जांच करने की शक्ति के बारे में बताती है. CrPC की धारा 159 के मुताबिक ऐसा मजिस्ट्रेट (Magistrate) ऐसी रिपोर्ट प्राप्त होने पर अन्वेषण के लिए आदेश (Order for investigation) दे सकता है, या यदि वह ठीक समझे तो वह इस संहिता में उपबंधित रीति (manner provided) से मामले की प्रारम्भिक जांच (Preliminary investigation) करने के लिए या उसको अन्यथा निपटाने के लिए तुरन्त कार्यवाही (Prompt action) कर सकता है, या अपने अधीनस्थ (Subordinate) किसी मजिस्ट्रेट को कार्यवाही करने के लिए प्रतिनियुक्त (Deputed) कर सकता है.
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क्या है दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC)
दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973) भारत में आपराधिक कानून के क्रियान्यवन के लिये मुख्य कानून है. यह सन् 1973 में पारित हुआ था. इसे देश में 1 अप्रैल 1974 को लागू किया गया. दंड प्रक्रिया संहिता का संक्षिप्त नाम 'सीआरपीसी' है. सीआरपीसी (CRPC) अंग्रेजी का शब्द है. जिसकी फुल फॉर्म Code of Criminal Procedure (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर) होती है. इसे हिंदी में 'दंड प्रक्रिया संहिता' कहा जाता है.
CrPC में 37 अध्याय (Chapter) हैं, जिनके अधीन कुल 484 धाराएं (Sections) मौजूद हैं. जब कोई अपराध होता है, तो हमेशा दो प्रक्रियाएं होती हैं, एक तो पुलिस अपराध (Crime) की जांच करने में अपनाती है, जो पीड़ित (Victim) से संबंधित होती है और दूसरी प्रक्रिया आरोपी (Accused) के संबंध में होती है. सीआरपीसी (CrPC) में इन प्रक्रियाओं का ब्योरा दिया गया है. CrPC में अब तक कई बार संशोधन (Amendment) भी किए जा चुके हैं.