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CrPC Section 187: स्थानीय अधिकारिता से परे किए गए अपराध के लिए समन या वारंट जारी करने की शक्ति है ये धारा

सीआरपीसी की धारा 187 अधीन स्थानीय अधिकारिता (Local jurisdiction) के परे किए गए अपराध के लिए समन या वारंट जारी करने की शक्ति के बारे में बताया गया है. चलिए जान लेते हैं कि सीआरपीसी (CrPC) की धारा 187 इस बारे में क्या कहती है?

स्थानीय अधिकारिता के परे किए गए जुर्म से जुड़ी है ये धारा स्थानीय अधिकारिता के परे किए गए जुर्म से जुड़ी है ये धारा
परवेज़ सागर
  • नई दिल्ली,
  • 19 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 9:30 PM IST
  • स्थानीय अधिकारिता के परे किए गए जुर्म से जुड़ी है ये धारा
  • 1974 में लागू की गई थी सीआरपीसी
  • CrPC में कई बार हुए है संशोधन

Code of Criminal Procedure: दंड प्रक्रिया संहिता में अदालत (Court) और पुलिस (Police) के लिए कई तरह के कानूनी प्रावधान (Legal provision) किए गए हैं. इसी प्रकार सीआरपीसी की धारा 187 अधीन स्थानीय अधिकारिता (Local jurisdiction) के परे किए गए अपराध के लिए समन या वारंट (Summons or warrant for an offense) जारी करने की शक्ति के बारे में बताया गया है. चलिए जान लेते हैं कि सीआरपीसी (CrPC) की धारा 187 इस बारे में क्या कहती है?  
 
सीआरपीसी की धारा 187 (CrPC Section 187)
दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure 1975) की धारा 187 के अधीन स्थानीय अधिकारिता के परे किए गए अपराध के लिए समन या वारण्ट जारी करने की शक्ति को परिभाषित किया गया है. CrPC की धारा 187 के मुताबिक-

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(1) जब किसी प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को यह विश्वास करने का कारण दिखाई देता है कि उसकी स्थानीय अधिकारिता के अन्दर के किसी व्यक्ति ने ऐसी अधिकारिता के बाहर, (चाहे भारत के अन्दर या बाहर) ऐसा अपराध किया है जिसकी जांच या विचारण 177 से 185 तक की धाराओं के (जिनके अन्तर्गत ये दोनों धाराएं भी हैं), उपबन्धों के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन ऐसी अधिकारिता के अन्दर नहीं किया जा सकता है; 

किन्तु जो तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन भारत में विचारणीय है तब ऐसा मजिस्ट्रेट उस अपराध की जांच ऐसे कर सकता है मानो वह ऐसी स्थानीय अधिकारिता के अन्दर किया गया है और ऐसे व्यक्ति को अपने समक्ष हाजिर होने के लिए इसमें इसके पूर्व उपवन्धित प्रकार से विवश कर सकता है और ऐसे व्यक्ति को ऐसे अपराध की जांच या विचारण करने की अधिकारिता वाले मजिस्ट्रेट के पास भेज सकता है या यदि ऐसा अपराध मृत्यु से या आजीवन कारावास से दण्डनीय नहीं है और ऐसा व्यक्ति इस धारा के अधीन कार्रवाई करने वाले मजिस्ट्रेट को समाधानप्रद रूप में जमानत देने के लिए तैयार और इच्छुक है तो ऐसी अधिकारिता वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष उसकी हाजिरी के लिए प्रतिभुओं सहित या रहित बंधपत्र ले सकता है.

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(2) जब ऐसी अधिकारिता वाले मजिस्ट्रेट एक से अधिक हैं और इस धारा के अधीन कार्य करने वाला मजिस्ट्रेट अपना समाधान नहीं कर पाता है कि किस मजिस्ट्रेट के पास या समक्ष ऐसा व्यक्ति भेजा जाए या हाजिर होने के लिए आबद्ध किया जाए, तो मामले की रिपोर्ट उच्च न्यायालय के आदेश के लिए की जाएगी.

इसे भी पढ़ें--- CrPC Section 186: शक के हालात में हाई कोर्ट तय करेगा जांच और ट्रायल का जिला, लागू होगी धारा 186 

क्या है दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC)
दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973) भारत में आपराधिक कानून के क्रियान्यवन के लिये मुख्य कानून है. यह सन् 1973 में पारित हुआ था. इसे देश में 1 अप्रैल 1974 को लागू किया गया. दंड प्रक्रिया संहिता का संक्षिप्त नाम 'सीआरपीसी' है. सीआरपीसी (CRPC) अंग्रेजी का शब्द है. जिसकी फुल फॉर्म Code of Criminal Procedure (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर) होती है. इसे हिंदी में 'दंड प्रक्रिया संहिता' कहा जाता है. 
 
CrPC में 37 अध्याय (Chapter) हैं, जिनके अधीन कुल 484 धाराएं (Sections) मौजूद हैं. जब कोई अपराध होता है, तो हमेशा दो प्रक्रियाएं होती हैं, एक तो पुलिस अपराध (Crime) की जांच करने में अपनाती है, जो पीड़ित (Victim) से संबंधित होती है और दूसरी प्रक्रिया आरोपी (Accused) के संबंध में होती है. सीआरपीसी (CrPC) में इन प्रक्रियाओं का ब्योरा दिया गया है. CrPC में अब तक कई बार संशोधन (Amendment) भी किए जा चुके हैं.

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