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CrPC Section 31: जानें, क्या होती है सीआरपीसी की धारा 31?

सीआरपीसी (CrPC) की धारा 31 (Section 31) भी विचारण (Trial), दोषसिद्ध (Convicted) और सजा (Punished) के बारे में है. आइए जानते हैं कि सीआरपीसी की धारा 31 (Section 31) इस विषय पर क्या कहती है?

सीआरपीसी की धारा 31 सजा और आदेश से संबंधित है सीआरपीसी की धारा 31 सजा और आदेश से संबंधित है
परवेज़ सागर
  • नई दिल्ली,
  • 16 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 7:06 PM IST
  • दोष और दंड से जुड़ी है CrPC की धारा 31
  • 1974 में लागू हुई थी सीआरपीसी

दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure) में अदालत (Court), विचारण (Trial), आदेश (Order) और फैसलों (Verdict) से जुड़ी प्रक्रिया (Procedure) और उनसे जुड़े प्रावधान (Provision) शामिल हैं. सीआरपीसी (CrPC) की धारा 31 (Section 31) भी विचारण (Trial), दोषसिद्ध (Convicted) और सजा (Punished) के बारे में है. आइए जानते हैं कि सीआरपीसी की धारा 31 (Section 31) इस विषय पर क्या कहती है?

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सीआरपीसी की धारा 31 (CrPC Section 31)

दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure) में धारा 31 (Section 31) एक ही विचारण (One trial) में कई अपराधों (Several offences) के लिए दोषसिद्ध होने के मामलों (Cases of conviction) में दंडादेश (Sentences) दिए जाने से संबंधित है. जिसमें इसके प्रावधान (Provision) बताये गए हैं. 

(1) जब एक विचारण (Trial) में कोई व्यक्ति (Person) दो या अधिक अपराधों (Offences) के लिए दोषसिद्ध (Convicted) किया जाता है तब, भारतीय दंड संहिता Indian Penal Code (1860 का 45) की धारा 71 (सेक्शन 71) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, न्यायालय (Court) उसे उन अपराधों के लिए विहित विभिन्न दंडों (Punishments) में से उन दंडों के लिए, जिन्हें देने के लिए ऐसा न्यायालय सक्षम (Competent) है. दंडादेश दे सकता है; जज (Judge) ऐसे दंड कारावास (Imprisonment) के रूप में हो तब, यदि न्यायालय (Court) ने यह निदेश न दिया हो कि ऐसे दंड साथ-साथ भोगे जाएंगे, तो वे ऐसे क्रम से एक के बाद एक प्रारंभ होंगे जिसका न्यायालय निदेश दे.

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(2) दंडादेशों के क्रमवर्ती (Sequence of sentences) होने की दशा में केवल इस कारण से कि कई अपराधों (Several offenses) के लिए संकलित दंड (Aggregate punishment) उस दंड से अधिक है जो वह न्यायालय एक अपराध के लिए दोषसिद्धि (Conviction) पर देने के लिए सक्षम (Competent) है, न्यायालय के लिए यह आवश्यक (Necessary) नहीं होगा कि अपराधी (Offender) को उच्चतर न्यायालय (Higher Court) के समक्ष विचारण (Trial) के लिए भेजे.

इसे भी पढ़ें - CrPC Section 30: जानिए, क्या है सीआरपीसी की धारा 30?

लेकिन (क) किसी भी दशा में ऐसा व्यक्ति चौदह वर्ष (Fourteen years) से अधिक की अवधि (Period के कारावास (Imprisonment) के लिए दंडादिष्ट (sentenced) नहीं किया जाएगा; (ख) संकलित दंड (Aggregate punishment) उस दंड की मात्रा के दुगने से अधिक न होगा जिसे एक अपराध (Offense) के लिए देने के लिए वह न्यायालय (Court) सक्षम (Competent) है.

(3) किसी सिद्धदोष व्यक्ति (Convicted person) द्वारा अपील (appeal) के प्रयोजन (Purpose) के लिए उन क्रमवर्ती दंडादेशों (Successive sentences) का योग, जो इस धारा के अधीन उसके विरुद्ध (against) दिए गए हैं, एक दंडादेश समझा जाएगा।

क्या होती है सीआरपीसी (CrPC)

सीआरपीसी (CRPC) अंग्रेजी का शब्द है. जिसकी फुल फॉर्म Code of Criminal Procedure (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर) होती है. इसे हिंदी में 'दंड प्रक्रिया संहिता' कहा जाता है. CrPC में 37 अध्याय (Chapter) हैं, जिनके अधीन कुल 484 धाराएं (Sections) मौजूद हैं. जब कोई अपराध होता है, तो हमेशा दो प्रक्रियाएं होती हैं, एक तो पुलिस अपराध (Crime) की जांच करने में अपनाती है, जो पीड़ित (Victim) से संबंधित होती है और दूसरी प्रक्रिया आरोपी (Accused) के संबंध में होती है. सीआरपीसी (CrPC) में इन प्रक्रियाओं का ब्योरा दिया गया है.

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1974 में लागू हुई थी CrPC

सीआरपीसी के लिए 1973 में कानून (Law) पारित किया गया था. इसके बाद 1 अप्रैल 1974 से दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी (CrPC) देश में लागू हो गई थी. तब से अब तक CrPC में कई बार संशोधन भी किए गए है.

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