
Code of Criminal Procedure: दंड प्रक्रिया संहिता की धाराएं उन कानूनी प्रक्रियाओं (Legal procedures) को परिभाषित (Define) करती है, जिनका इस्तेमाल अदालत (Court) और पुलिस (Police) अपने काम के दौरान करती है. ऐसे ही सीआरपीसी (CrPC) की धारा 94 (Section 94) में उस स्थान की तलाशी का प्रावधान (Provision) किया गया है, जिसमें चुराई हुई संपत्ति, कूटरचित दस्तावेज आदि होने का शक होता है. आइए जानते हैं कि सीआरपीसी की धारा 94 इस बारे में क्या कहती है?
सीआरपीसी की धारा 94 (CrPC Section 94)
दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Proced) की धारा (94 Section 94) में उस स्थान की तलाशी की प्रक्रिया (Procedure) का प्रावधान (Provision) किया गया है, जिसमें चुराई हुई संपत्ति (Stolen property), कूटरचित दस्तावेज (Forged document) आदि होने का संदेह (Doubt) होता है. CrPC की धारा 94 के मुताबिक-
(1) यदि जिला मजिस्ट्रेट (District Magistrate), उपखंड मजिस्ट्रेट (Sub-Divisional Magistrate) या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट (Magistrate of the First Class) को इत्तिला मिलने पर और ऐसी जांच के पश्चात् जैसी वह आवश्यक समझे, यह विश्वास करने का कारण है कि कोई स्थान चुराई हुई संपत्ति (Stolen property) के निक्षेप या विक्रय के लिए या किसी ऐसी आपत्तिजनक वस्तु (Objectionable object) के, जिसको यह धारा लागू होती है, निक्षेप, विक्रय या उत्पादन के लिए उपयोग में लाया जाता है, या कोई ऐसी आपत्तिजनक वस्तु किसी स्थान में निक्षिप्त है, तो वह कांस्टेबल की पंक्ति से ऊपर के किसी पुलिस अधिकारी (Police Officer) को वारंट द्वारा यह प्राधिकार दे सकता है कि वह-
(क) उस स्थान में ऐसी सहायता के साथ, जैसी आवश्यक हो, प्रवेश करे; (ख) वारंट में विनिर्दिष्ट रीति से उसकी तलाशी ले; (ग) वहां पाई गई किसी भी संपत्ति या वस्तु को, जिसके चुराई हुई संपत्ति ( Stolen property) या ऐसी आपत्तिजनक वस्तु (Objectionable object), जिसको यह धारा लागू होती है, होने का उसे उचित संदेह है, कब्जे में ले; (घ) ऐसी संपत्ति या वस्तु को मजिस्ट्रेट (Magistrate) के पास ले जाए या अपराधी को मजिस्ट्रेट के समक्ष ले जाने तक उसको उसी स्थान पर पहरे में रखे या अन्यथा उसे किसी सुरक्षित स्थान में रखे; (ङ) ऐसे स्थान में पाए गए ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को अभिरक्षा में ले और मजिस्ट्रेट के समक्ष ले जाए, जिसके बारे में प्रतीत हो कि वह किसी ऐसी संपत्ति या वस्तु के निक्षेप, विक्रय या उत्पादन में यह जानते हुए या संदेह करने का उचित कारण रखते हुए संसर्गी रहा है कि, यथास्थिति, वह चुराई हुई संपत्ति है या ऐसी आपत्तिजनक वस्तु है, जिसको यह धारा लागू होती है.
(2) वे आपत्तिजनक वस्तुएं (Objectionable objects), जिनको यह धारा लागू होती है. निम्नलिखित हैं- (क) कूटकृत सिक्का; (ख) धातु टोकन अधिनियम, 1889 (1889 का 1) के उल्लंघन में बनाए गए अथवा सीमाशुल्क अधिनियम, 1962 (1962 का 52) की धारा 11 के अधीन तत्समय प्रवृत्त किसी अधिसूचना के उल्लंघन में भारत में लाए गए धातु-खंड; (ग) कूटकृत करेंसी नोट, कूटकृत स्टाम्प; (घ) कूटरचित दस्तावेज, (ङ) नकली मुद्राएं; (च) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 292 में निर्दिष्ट अश्लील वस्तुंए; (छ) खंड (क) से (च) तक के खंडों में उल्लिखित वस्तुओं में से किसी के उत्पादन के लिए प्रयुक्त उपकरण या सामग्री.
इसे भी पढ़ें--- CrPC Section 93: कब जारी किया जा सकता है तलाशी वारंट, यही बताती है धारा 93
क्या है सीआरपीसी (CrPC)
सीआरपीसी (CRPC) अंग्रेजी का शब्द है. जिसकी फुल फॉर्म Code of Criminal Procedure (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर) होती है. इसे हिंदी में 'दंड प्रक्रिया संहिता' कहा जाता है. CrPC में 37 अध्याय (Chapter) हैं, जिनके अधीन कुल 484 धाराएं (Sections) मौजूद हैं. जब कोई अपराध होता है, तो हमेशा दो प्रक्रियाएं होती हैं, एक तो पुलिस अपराध (Crime) की जांच करने में अपनाती है, जो पीड़ित (Victim) से संबंधित होती है और दूसरी प्रक्रिया आरोपी (Accused) के संबंध में होती है. सीआरपीसी (CrPC) में इन प्रक्रियाओं का ब्योरा दिया गया है.
1974 में लागू हुई थी CrPC
सीआरपीसी के लिए 1973 में कानून (Law) पारित किया गया था. इसके बाद 1 अप्रैल 1974 से दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी (CrPC) देश में लागू हो गई थी. तब से अब तक CrPC में कई बार संशोधन (Amendment) भी किए गए है.