
बटला हाउस एनकाउंटर केस में दोषी आरिज खान को अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है. दिल्ली की साकेत कोर्ट ने इसे रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस माना है. आरोपी आरिज खान को कोर्ट ने 8 मार्च को दोषी करार देते हुए फैसला सुरक्षित कर लिया था. इस एनकाउंटर के दौरान स्पेशल सेल के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा गोली लगने से घायल हो गए थे. बाद में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई थी. आइए आपको बताते हैं, उस दिन क्या हुआ था.
बटला हाउस एनकाउंटर की दास्तान 13 सितंबर 2008 को दिल्ली में हुए सीरियल बम ब्लास्ट से शुरू होती है. दिल्ली के करोल बाग, कनाट प्लेस, इंडिया गेट और ग्रेटर कैलाश में हुए धमाकों में उस दिन 26 लोग मारे गए थे, जबकि 133 घायल हो गए थे. जांच में पता चला था कि बम ब्लास्ट को आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन ने अंजाम दिया था. धमाकों के 6 दिन बाद 19 सितंबर 2008 को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को सूचना मिली थी कि इंडियन मुजाहिद्दीन के पांच आतंकी बटला हाउस के एक मकान में छुपे हैं. ये सूचना मिलते ही पुलिस अलर्ट हो गई.
19 सितंबर 2008
सुबह आठ बजे इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की फोन कॉल स्पेशल सेल के लोधी कॉलोनी स्थित ऑफिस में मौजूद एसआई राहुल कुमार सिंह को मिली. उन्होंने राहुल को बताया कि आतिफ एल-18 में रह रहा है. उसे पकड़ने के लिए टीम लेकर वह बटला हाउस पहुंच जाए. राहुल सिंह अपने साथियों एसआई रविंद्र त्यागी, एसआई राकेश मलिक, हवलदार बलवंत, सतेंद्र विनोद गौतम आदि पुलिसकर्मियों को लेकर प्राइवेट गाड़ी में रवाना हो गए.इस टीम के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा डेंगू से पीड़ित अपने बेटे को नर्सिंग होम में छोड़ कर बटला हाउस के लिए रवाना हो गए.
वह अब्बासी चौक के नजदीक अपनी टीम से मिले. सभी पुलिस वाले सिविल कपड़ों में थे. बताया जाता है कि उस वक्त पुलिस टीम को यह पूरी तरह नहीं पता था कि बटला हाउस में बिल्डिंग नंबर एल-18 में फ्लैट नंबर 108 में सीरियल बम ब्लास्ट के जिम्मेदार आतंकवादी रह रहे थे. उनका कहना है कि यह टीम उस फ्लैट में मौजूद लोगों को पकड़ कर पूछताछ के लिए ले जाने आई थी. जानिए क्या हुआ था उस दिन.
सुबह 10:55 बजे
एसआई धर्मेंद्र कुमार फोन कंपनी के सेल्समैन का लुक बनाए हुए थे. वह लैदर शूज पहन कर और टाई लगाए हुए थे. खुद को फोन कंपनी का एग्जेक्यूटिव बताते हुए वह फ्लैट के गेट खटखटाने लगे. अंदर सन्नाटा छा गया. बाकी पुलिस वाले नीचे इंतजार कर रहे थे. इसी बीच इंस्पेक्टर शर्मा सीढ़ियां चढ़ने लगे. दो पुलिसकर्मी नीचे खड़े रहे.
सुबह 11:05 बजे
पुलिस वालों ने ऊपर जाकर देखा कि सीढ़ियों के सामने इस फ्लैट में दो गेट हैं. उन्होंने बाईं ओर वाला दरवाजा अंदर की ओर धकेल दिया. पुलिस वाले अंदर घुस गए. उन्हें अंदर चार लड़के नजर आए. वह थे आतिफ अमीन, साजिद, आरिज और शहजाद पप्पू. सैफ नामक एक लड़का बाथरूम में था. दोनों ओर से धड़ाधड़ फायरिंग होने लगी.
सुबह 11:10 बजे
दोनों तरफ से फायरिंग खत्म हो चुकी थी. इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा को दो गोलियां लगी. हवलदार बलवंत के हाथ में गोली लगी. आरिज और शहजाद पप्पू दूसरे गेट से निकल कर भागने में कामयाब रहे. गोलियां लगने से आतिफ अमीन और साजिद की मौत हो गई. फायरिंग सुनकर लोग सीढ़ियों से नीचे भागने लगे. इसका फायदा उठाकर आरिज और शहजाद भी भाग गए थे.
सुबह 11:13 बजे
इसी बीच पुलिस ने दो को भागते समय गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद ओवेस मलिक नामक एक शख्स ने 100 नंबर पर फोन करके फायरिंग की खबर दी. पीसीआर से जामिया नगर पुलिस चौकी को इस एनकाउंटर की खबर मिली. मैसेज फ्लैश कर दिया गया.
सुबह 11:20 बजे
महज 10 मिनट के अंदर इस गोलीबारी की खबर इलाके में फैल गई. इस मौके पर भारी भीड़ जमा हो गई. पुलिस भी भारी तादाद में पहुंच गई. उस फ्लैट को सील कर दिया गया था.
शाम 5 बजे
होली फैमिली हॉस्पिटल में इलाज के दौरान इंस्पेक्टर शर्मा का निधन हो गया. इंस्पेक्टर शर्मा ने अपनी 21 साल की पुलिस की नौकरी में 60 आतंकियों को मार गिराया था, जबकि 200 से ज्यादा खतरनाक आतंकियों और अपराधियों को गिरफ्तार भी किया था, लेकिन बटला हाउस का यह एनकाउंटर आखिरी साबित हुआ. उनकी मौत खून बहने के कारण हुई थी.
21 सितंबर, 2008
पुलिस ने कहा कि उसने इंडियन मुजाहिदुदीन के तीन कथित आतंकियों और बटला हाउस के एल-18 मकान की देखभाल करने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार किया. दिल्ली में हुए विस्फोटों के आरोप में पुलिस ने कुल 14 लोग गिरफ्तार किए गए थे, जो दिल्ली और यूपी के रहने वाले थे. मानवाधिकार संगठनों ने एनकाउंटर को फर्जी करार दिया था और इसकी जांच की मांग की थी.
21 मई, 2009
दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से पुलिस के दावों की जांच कर दो महीने में रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा था.
22 जुलाई, 2009
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने दिल्ली हाईकोर्ट के सामने अपनी रिपोर्ट पेश की. रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट दी गई थी.
26 अगस्त, 2009
दिल्ली हाईकोर्ट ने एनएचआरसी की रिपोर्ट स्वीकार करते हुए न्यायिक जांच से इनकार कर दिया था.
30 अक्टूबर, 2009
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई, लेकिन उसने भी इंकार कर दिया था.