
पहले से ही उत्पाद शुल्क नीति और शराब घोटाले से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रही दिल्ली की केजरीवाल सरकार एक बार फिर से विवादों में घिर गई है. हाल ही में दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) वीके सक्सेना के नेतृत्व में की गई जांच में पाया गया कि एक आईएएस अधिकारी ने शराब विक्रेताओं से पैसा इकट्ठा करने के लिए एक अधीनस्थ पर अनुचित दबाव डाला था.
नतीजतन, एलजी ने संबंधित अधिकारी अमरनाथ तलवड़े के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है और गृह मंत्रालय से उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश भी की है. तलवड़े फिलहाल अरुणाचल प्रदेश में तैनात हैं.
एलजी कार्यालय ने एक बयान जारी करके बताया कि यह मामला हाल ही में हुए शराब घोटाले के बाद एक बार फिर दिल्ली में AAP सरकार और शराब व्यापारियों या माफिया के बीच गहरी मिलीभगत का खुलासा करता है, जिसमें पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया और AAP सांसद संजय सिंह शामिल हैं.
वे दोनों ही हिरासत में हैं, जबकि सीएम केजरीवाल को बार-बार प्रवर्तन निदेशालय से समन का सामना करना पड़ रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने भी एक महत्वपूर्ण मनी ट्रेल की पहचान की है, जिसके कारण उसने सिसौदिया को जमानत देने से इनकार कर दिया है.'
यह मामला 2015-16 की अवधि से जुड़ा है, जिस दौरान तलवड़े ने डीएससीएससी के तत्कालीन प्रबंधक, पीके शाही को स्थानांतरण की धमकी देकर विक्रेताओं से अधिक पैसे इकट्ठा करने के लिए उन्हें मजबूर किया था. उनकी फोन पर बातचीत का एक ऑडियो क्लिप सामने आया है, जिसे एफएसएल ने वास्तविक पाया है. तलवड़े को डीएससीएससी का कार्यभार संभालने के तुरंत बाद शाही से 5 लाख रुपये की प्राप्ति स्वीकार करते हुए सुना गया है.
21 मार्च 2023 में इस ऑडियो क्लिप के साथ एक नोएडा निवासी की शिकायत दर्ज होने के बाद जांच शुरू की गई थी. उस रिकॉर्डिंग में तलवड़े ने शाही को कुल संग्रह का 35 फीसदी देने का आदेश दिया था, जो तलवड़े ने केजरीवाल को दिया था. शाही ने जवाब देते हुए कहा कि दो शुष्क महीनों में कम राजस्व के कारण वह केवल 15 प्रतिशत का प्रबंधन कर सकते हैं.
दिल्ली एफएसएल लैब में परीक्षण के बाद ये बात साबित हो गई कि उस ऑडियो क्लिप के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई थी. इसके बाद यह मामला कानून विभाग, जीएनसीटीडी के सामने पेश किया गया. GNCTD इस नतीजे पर पहुंची कि इस मामले में एफआईआर दर्ज किए जाने ठीक था. परिणामस्वरूप, डीओवी (DOV) ने इस मामले को एसीबी (ACB) को सौंपने का प्रस्ताव रखा और एलजी (LG) की मंजूरी मांगी.
इसी के बाद अधिकारी के खिलाफ ठोस सबूत होने के बावजूद मामले की सुनवाई में देरी होने पर निराशा जताते हुए दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना ने अपनी मंजूरी दे दी.