
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने शुक्रवार को लाओस मानव तस्करी केस और साइबर धोखाधड़ी मामले में हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान में कई स्थानों पर तलाशी ली. इस सर्च ऑपरेश का मकसद विभिन्न संदिग्धों की मिलीभगत की पहचान करना था.
NIA की तरफ से जारी किए गए एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि भारत से कमजोर युवाओं को लाओस के गोल्डन ट्राइंगल एसईजेड में तस्करी करने में शामिल व्यक्तियों और ट्रैवल एजेंटों के खिलाफ एजेंसी की कार्रवाई के चलते एनआईए की टीमों ने दो राज्यों और राष्ट्रीय राजधानी में पांच स्थानों पर गहन तलाशी ली.
एनआईए के बयान में कहा गया है कि तलाशी के दौरान डिजिटल डिवाइस और दस्तावेज आदि सहित आपत्तिजनक सामग्री जब्त की गई. एनआईए ने बयान में आगे बताया कि लक्षित स्थान मुख्य आरोपी बलवंत उर्फ बॉबी कटारिया के सहयोगियों और कार्यालयों से जुड़े परिसर थे.
एनआईए की जांच से पता चला है कि संदिग्ध कथित तौर पर तस्करी में पीड़ितों को संभाल रहे थे, और लाओस में एक साइबर धोखाधड़ी कंपनी में उनकी रसद और भर्ती का इतंजाम भी कर रहे थे. जांच एजेंसी ने कहा कि जांच के दायरे में आने वाला मानव तस्करी करने वाला गैंग गुरुग्राम और भारत के भीतर और बाहर के अन्य क्षेत्रों से काम कर रहा था.
इनका काम भारत से पीड़ितों की भर्ती, परिवहन और लाओस के गोल्डन ट्राइंगल एसईजेड में स्थानांतरण से संबंधित था.
मूल रूप से यह मामला गुरुग्राम पुलिस ने दर्ज किया था, लेकिन इस महीने की शुरुआत में एनआईए ने इस मामले की जांच अपने हाथ में ले ली थी. प्रारंभिक जांच से पता चला है कि शुक्रवार को जिन संदिग्धों के परिसरों की तलाशी ली गई, वे दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान में एमबीके ग्लोबल वीजा प्राइवेट लिमिटेड के मालिक आरोपी बलवंत उर्फ बॉबी कटारिया के लिए काम कर रहे थे.
बयान में कहा गया है कि वे विदेशों में आकर्षक नौकरियों का वादा करके युवाओं को लुभाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे. एनआईए ने कहा कि अंग्रेजी में कुशल पीड़ितों को सोशल मीडिया चैनलों के माध्यम से बहलाया जाता था और धोखे से लाओस भेजा जाता था, जहां उन्हें फर्जी कॉल सेंटरों में काम करने के लिए मजबूर किया जाता था.
बयान में कहा गया है कि उनके साथ शारीरिक दुर्व्यवहार किया जाता था और अगर वे सहयोग करने से इनकार करते थे तो उनके यात्रा दस्तावेज छीन लिए जाते थे.