
दिल्ली की एक अदालत ने साल 2016 में हुए सामूहिक बलात्कार के एक मामले में चार आरोपियों को बरी कर दिया है. एक महिला के यौन उत्पीड़न के सात साल बाद अदालत ने चारों आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष का मामला संदिग्ध था और संदेह का लाभ उन्हें दिया जाना चाहिए. यही वजह है कि कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया.
दिल्ली की एक अदालत में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश राजिंदर सिंह गुरुवार को चारों आरोपियों के खिलाफ इस मामले की सुनवाई कर रहे थे. इनमें से एक के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (बलात्कार) और अन्य पर धारा 376 डी (सामूहिक बलात्कार) के तहत आरोप लगाए गए थे.
अभियोजन पक्ष के अनुसार, पीड़िता एक मेड के तौर पर काम करती थी. वो 25 जनवरी 2016 को किसी से मिलने के लिए अपने मालिक के घर से निकली थी, जिसके बाद एक आरोपी उसे पश्चिमी दिल्ली में अपने कमरे में ले गया. वहां उसके साथ कथित तौर पर आरोपी और उसके साथियों ने उसके साथ दो बार बलात्कार किया.
अदालत ने अभियोजक के बयान पर गौर किया, जिसमें कहा गया था कि महिला 26 जनवरी, 2016 की सुबह 7 बजे तक दोषियों के साथ थी. अभियोजन पक्ष का एक गवाह उस महिला को मदद के लिए एक एनजीओ में ले गया था. वो 31 जनवरी को शिकायतकर्ता से मिला था. इसके बाद एक मामला दर्ज किया गया था. यह नोट किया गया.
अदालत ने 11 दिसंबर के अपने आदेश में कहा, "यह साफ नहीं है कि अभियोजक 26 जनवरी की शाम से 31 जनवरी तक कहां था." आदेश में आगे कहा गया है, "उपरोक्त अवधि के लिए अभियोजक के ठिकाने का स्पष्टीकरण न होने के साथ-साथ मामले की रिपोर्ट करने में देरी के कारण अभियोजन पक्ष का मामला संदिग्ध हो जाता है."
पीटीआई के मुताबिक, न्यायाधीश ने इस बात पर जोर दिया कि अभियोजक अदालत में सभी आरोपियों की पहचान करने में विफल रही और उन्हें बलात्कार की कथित घटना से जोड़ने के लिए कोई फोरेंसिक या मेडिकल सबूत नहीं था. आगे कहा गया, "अभियोजन पक्ष अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है और संदेह का लाभ आरोपी व्यक्तियों को मिलेगा."