
गुरुग्राम के निजी स्कूल में 2017 में सात साल के मासूम प्रिंस की हत्या कर दी गई थी. बच्चे की हत्या गला रेतकर की गई थी. उसका शव बाथरूम में मिला था. इस घटना के बारे में जानकर हर कोई दंग रह गया था, क्योंकि एक 11वीं में पढ़ने वाले छात्र ने मासूम प्रिंस की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी थी, ताकि परीक्षा के बाद होने वाली पैरेंट्स-टीचर्स मीटिंग रद्द हो जाए. अब यह मामला एक बार फिर चर्चा में है. जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB) ने अपने पुराने आदेश को जारी रखते हुए सोमवार को हत्या के मामले में नाबालिग आरोपी को बालिग मानकर सुनवाई करने का फैसला सुनाया है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल जुलाई में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के 11 अक्टूबर, 2018 के आदेश को बरकरार रखा था कि स्कूल में हत्या में कथित तौर पर शामिल नाबालिग आरोपी पर बालिग के तौर पर केस चलाया जाए या नहीं, यह सुनिश्चित करने के लिए नए सिरे से जांच होनी चाहिए. इसके बाद आरोपी भोलू की दोबारा जांच की गई. रिपोर्ट के आधार पर JJB ने आरोपी भोलू को बालिग मानकर केस चलाने का आदेश दिया है.
बालिग की तरह क्यों चलेगा केस?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गुरुग्राम मेडिकल कॉलेज के तीन डॉक्टर की टीम ने आरोपी का मेंटल और साइक्लोजिकल असेसमेंट किया था. असेसमेंट में भोलू की हालत स्थिर पाई गई. डॉक्टर्स ने अपनी रिपोर्ट में बताया, हत्यारोपी की मानसिक और बौद्धिक स्थिति बिल्कुल ठीक है. उसने योजनाबद्ध तरीके से मासूम की हत्या की थी. इस रिपोर्ट को आधार मानते हुए JJB ने ये फैसला सुनाया.
पुलिस की जांच पर उठे सवाल
गुरुग्राम के निजी स्कूल में 2017 में सात साल के मासूम प्रिंस की गला रेतकर हत्या की गई थी. गुरुग्राम पुलिस ने इस सनसनीखेज हत्याकांड को रफा-दफा करने के मकसद से 24 घंटे में ही स्कूल बस के कंडक्टर को आरोपी बनाकर गिरफ्तार कर लिया था. हालांकि, मृतक बच्चे के परिजन पुलिस की जांच पर संदेह जताते रहे और वे कहते रहे कि पुलिस मामले में सही से जांच नहीं कर रही है. इसके बाद पीड़ित के परिजनों ने सीबीआई जांच की मांग की थी.
योजनाबद्ध तरीके से हुई थी हत्या
2 महीने बाद हत्याकांड की जांच CBI को सौंपी गई. जब सीबीआई ने इस मामले को खंगाला, तो गुरुग्राम पुलिस की थ्योरी पूरी तरह से बेबुनियाद और कोरी कहानी साबित हुई. जांच में पता चला कि 11वीं का छात्र पैरेंट्स-टीचर्स मीटिंग को कैंसिल करना चाहता था. इसलिए उसने योजनाबद्ध तरीके से मासूम की हत्या की थी. इस मामले में सीबीआई ने पुलिस की थ्योरी को चैलेंज करते हुए उसी स्कूल के 16 वर्षीय छात्र भोलू को गिरफ्तार किया था. साथ ही सीबीआई ने इस मामले में स्कूल बस के कंडक्टर अशोक कुमार को क्लीन चिट दी थी. पुलिस ने अशोक को मुख्य आरोपी बनाकर गिरफ्तार किया था. जबकि सीबीआई का कहना था कि ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिससे अशोक के हत्या में शामिल होने का पता चलता हो.
साल 2012 में हुए निर्भया कांड के बाद कानून में संशोधन किया गया था. इसके अनुसार, 16 से 18 वर्ष के नाबालिग आरोपियों के खिलाफ जघन्य मामलों में बतौर वयस्क मुकदमा चलाया जा सकता है. इसी के तहत जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने अपने पिछले फैसले में कहा था कि आरोपी को बालिग की तरह ट्रीट किया जाना चाहिए. सेशन कोर्ट ने मई 2018 में इस फैसले को सही ठहराया था. हालांकि, हाईकोर्ट ने इस फैसले रद्द कर दिया था. इसके बाद पीड़ित बच्चे के पिता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल जुलाई में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के 11 अक्टूबर, 2018 के आदेश को बरकरार रखा था कि स्कूल में हत्या में कथित तौर पर शामिल नाबालिग आरोपी पर बालिग के तौर पर केस चलाया जाए या नहीं, यह सुनिश्चित करने के लिए नए सिरे से जांच होनी चाहिए.