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हाथरस केस: कैसे बरी हो गए 3 आरोपी? कोर्ट में क्यों साबित नहीं हो पाया पीड़िता के साथ गैंगरेप का आरोप

हाथरस गैंगरेप और मर्डर केस की घटना ने यूपी की राजनीति में घमासान मचा दिया था. अब अदालत के फैसले ने कई सवालों को जन्म दे दिया है. आखिर गैंगरेप के आरोपों का क्या हुआ? अदालत ने आखिर आरोपियों से गैंगरेप का मुकदमा वापस क्यों ले लिया? पीड़ित परिवार अब आगे क्या कदम उठाने जा रहा है?

कोर्ट ने हाथरस केस के 4 में 3 आरोपियों को बरी कर दिया है. (फाइल फोटो) कोर्ट ने हाथरस केस के 4 में 3 आरोपियों को बरी कर दिया है. (फाइल फोटो)
अनीषा माथुर
  • नई दिल्ली,
  • 02 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 10:53 PM IST

उत्तर प्रदेश के चर्चित हाथरस रेप एंड मर्डर केस में एक विशेष अदालत ने मुख्य आरोपी संदीप सिंह को दोषी ठहराया है जबकि तीन आरोपियों लव-कुश, रामू और रवि को बरी कर दिया है. अदालत ने इस केस में मुख्य आरोपी संदीप सिंह को आईपीसी की धारा 3/110 और 304 के तहत गैर इरादतन हत्या का दोषी पाया है.

कोर्ट ने संदीप सिंह को आजीवन कारावास और 50000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है. हालांकि अदालत ने इस मामले से रेप के आरोप हटा लिए हैं. यानी कि कोर्ट ने माना है कि पीड़िता के साथ गैंगरेप की वारदात नहीं हुई थी. 

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क्या है मामला

14 सितंबर 2020 को हाथरस के बूलगढ़ी में एक दलित युवती के साथ गैंगरेप की वारदात हुई थी. इस लड़की को इलाज के लिए दिल्ली के सफदरजंग अस्पातल में भर्ती कराया गया था. 29 सितंबर 2020 को ही इसी अस्पताल में इलाज के दौरान लड़की की मौत हो गई थी. पीड़ित परिवार का आरोप है कि उनकी इच्छा के खिलाफ 29 सितंबर 2020 की रात को यूपी पुलिस और प्रशासन ने इस लड़की का अंतिम संस्कार कर दिया और शव को जला दिया. 

2000 पन्नों की चार्जशीट

इस मामले में पुलिस ने मुख्य आरोपी (अब दोषी) संदीप ठाकुर, लवकुश, रामू और रवि को हत्या, रेप और एससी/एसटी एक्ट की धाराओं के तहत गिरफ्तार किया और जेल भेज दिया. भारी पब्लिक दबाव की वजह से इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी. 29 दिसंबर 2020 को सीबीआई ने इस मामले में 4 आरोपियों के खिलाफ 2000 पन्नों की चार्जशीट फाइल की थी. 

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इस मामले में सीबीआई 104 गवाहों को लेकर आई थी. अब अदालत ने इस मामले में मुख्य आरोपी संदीप सिंह को दोषी गैर इरादतन हत्या का दोषी माना है. लेकिन अदालत ने आरोपियों के ऊपर लगे गैंगरेप के चार्ज को हटा दिया है. 

सवाल है कि आखिर कोर्ट ने किस आधार पर आरोपियों के ऊपर लगे गैंगरेप के चार्ज को हटाया है. इस सवाल का जवाब जानने के लिए अदालत की टिप्पणियों को जानना जरूरी है. 

पीड़िता और उसकी मां ने यौन उत्पीड़न की बात नहीं बताई

अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि जब 14 सितंबर को पीड़िता को अस्पताल में भर्ती कराया गया तो न तो उसने और न हीं उसकी मां ने यौन उत्पीडन की बात बताई थी. सेक्सुअल असॉल्ट की चर्चा पहली बार अस्पताल में एडमिट करने के एक सप्ताह बाद 22 सितंबर को हुई. 

मेडिकल साक्ष्यों में नहीं मिले सेक्सुअल असॉल्ट के सबूत

मेडिकल साक्ष्यों से भी सेक्सुअल असॉल्ट साबित नहीं हो पाया है. अदालत के अनुसार साक्ष्यों में खून और वीर्य के सैंपल नहीं पाए गए. कोर्ट ने अपने नोट में कहा गया है कि घटना के बाद पीड़िता के अंगों को साफ किया गया था. 

मेडिकल साक्ष्य इशारा करते हैं कि पीड़िता को जब अस्पताल ले जाया गया था तो उस वक्त उसकी रीढ़ की हड्डी गर्दन के पास से चोटिल थी. कोर्ट की टिप्पणी के अनुसार गर्दन पर लिगेचर मार्क लगातार दिख रहा है, जिससे पता चलता है कि पीड़िता का गला दबाने की कोशिश की गई है, लेकिन इसी वजह से मौत नहीं हुई है. 

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पीड़िता के शरीर पर एक ही व्यक्ति द्वारा हमले के निशान

कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि पीड़िता के शरीर पर मिले जख्म के निशान एक ही व्यक्ति द्वारा किये गए हैं. जख्मों से ये पता नहीं चलता है कि पीड़िता पर कई लोगों ने हमला किया है. 

पीड़िता के बयान में बदलाव 

कोर्ट के अनुसार पीड़िता के बयान में बदलाव दिखा है. पीड़िता ने जो बयान डॉक्टर को दिया है और जो स्टेटमेंट महिला कॉस्टेबल को दिया है उसमें भिन्नता है.  

कोर्ट का कहना है कि पीड़िता ने 14 सितंबर को मीडियाकर्मियों के सामने बयान दिया था और वीडियो रिकॉर्ड किया था, उसमें यौन उत्पीड़न का खुलासा नहीं किया गया था. 22 सितंबर को पुलिस द्वारा बयान दर्ज किए जाने तक पीड़िता दूसरे  सह आरोपियों का नाम नहीं लिया गया. 

तभी विसर्जन करेंगे अस्थियां...

अदालत के फैसले के बाद पीड़ित पक्ष संतुष्ट नहीं है. पीड़िता के वकील काकहना है कि वह इस फैसले को लेकर हाईकोर्ट में अपील करेंगे. इसमें कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ हुआ है. पीड़िता की भाभी ने भी कोर्ट के निर्णय पर संतुष्टि नहीं जताई है. उनकी मानें तो वह चारों की सजा पर ही संतुष्ट होंगी और मृतका की अस्थियों को विसर्जन तभी करेंगे. 

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