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IPC Section 199: कानूनी घोषणा के दौरान शामिल पाया गया झूठा बयान तो लागू होगी ये धारा

आईपीसी की धारा 198 (IPC Section 198) में जान बूझकर असली के स्थान पर जाली प्रमाण-पत्र का इस्तेमाल करने पर सजा का प्रावधान किया गया है. आइए जानते हैं कि आईपीसी (IPC) की धारा 198 इस बारे में क्या कहती है?

घोषणा में शामिल झूठे बयान से संबंधित है ये धारा  घोषणा में शामिल झूठे बयान से संबंधित है ये धारा
परवेज़ सागर
  • नई दिल्ली,
  • 19 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 9:59 PM IST
  • घोषणा के दौरान झूठे बयान से संबंधित है ये धारा
  • अंग्रेजी शासनकाल में लागू हुई थी आईपीसी
  • जुर्म और सजा का प्रावधान बताती है IPC

Indian Penal Code: भारतीय दंड संहिता में जुर्म (Offence) और उसकी सजा के प्रावधान (Punishment provisions) तो मिलते ही हैं, साथ ही अदालती कार्यवाही (Court proceedings) से जुड़े कई तरह की कानूनी जानकारी (Legal Information) भी मौजूद हैं. जिनमें सबूतों (Evidence) और जांच (Investigations) के बारे में भी जानकारी मिलती है. इसी तरह से आईपीसी की धारा 198 (IPC Section 198) में जान बूझकर असली के स्थान पर जाली प्रमाण-पत्र का इस्तेमाल करने पर सजा का प्रावधान किया गया है. आइए जानते हैं कि आईपीसी (IPC) की धारा 198 इस बारे में क्या कहती है?

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आईपीसी की धारा 199 (Indian Penal Code Section 199)
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 199 (Section 199) में ऐसी घोषणा के बारे में बताया गया है, जो साक्ष्य के रूप में विधि द्वारा ली जाती है, लेकिन उसमें झूठा बयान शामिल हो. IPC की धारा 199 के अनुसार, जो कोई अपने द्वारा की गयी या हस्ताक्षरित किसी घोषणा (Signed declaration) में, जिसकी किसी तथ्य के साक्ष्य के रूप में लेने के लिये कोई न्यायालय (Court) या कोई लोक सेवक (Public Servant) या अन्य व्यक्ति विधि द्वारा आबद्ध या प्राधिकृत हो, कोई ऐसा कथन करेगा, जो किसी ऐसी बात के सम्बन्ध में, जो उस उद्देश्य के लिये तात्विक हो जिसके लिये वह घोषणा की जाये या उपयोग में लाई जाये, मिथ्या है और जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है, या जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नहीं है, वह उसी प्रकार दण्डित किया जायेगा, मानो उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो.

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सजा का प्रावधान (Punishment provision)
ऐसा करने वाले दोषी को किसी भांति के कारावास (Imprisonment) से दंडित किया जाएगा. साथ ही उस पर जुर्माना (Fine) भी किया जाएगा. या फिर उसे दोनों तरह से दंडित किया जाएगा. यह एक जमानतीय (Bailable) और गैर-संज्ञेय अपराध (Non-cognizable offenses) है. जिसकी सुनवाई उसी न्यायालय (Court) द्वारा की जा सकती है. जहां झूठे सबूत (False evidence) पेश किए गए हों.

इसे भी पढ़ें--- IPC Section 198: असली की जगह इस्तेमाल किया नकली सर्टिफिकेट, तो मिलेगी ऐसी सजा 

क्या होती है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
 
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.

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