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IPC Section 201: सबूत मिटाने और अपराधी को झूठी इत्तिला दिए जाने से जुड़ी है आईपीसी की धारा 201

आईपीसी की धारा 201 (IPC Section 201) के अधीन अपराध के साक्ष्य का विलोपन, या अपराधी को प्रतिच्छादित करने के लिए मिथ्या इत्तिला देना परिभाषित किया गया है. आइए जानते हैं कि आईपीसी (IPC) की धारा 201 इस बारे में क्या बताती है?

सबूत मिटाने और झूठी इत्तिला देने से संबंधित है ये धारा  सबूत मिटाने और झूठी इत्तिला देने से संबंधित है ये धारा
परवेज़ सागर
  • नई दिल्ली,
  • 20 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 5:46 PM IST
  • सबूत मिटाने और झूठी इत्तिला से संबंधित है ये धारा
  • अंग्रेजी शासनकाल में लागू हुई थी आईपीसी
  • जुर्म और सजा का प्रावधान बताती है IPC

Indian Penal Code: भारतीय दंड संहिता में न्यायिक कार्यवाही (Court proceedings) से संबंधित कई तरह की कानूनी जानकारी (Legal Information) मिलती है. इसी प्रकार आईपीसी की धारा 201 (IPC Section 201) के अधीन अपराध के साक्ष्य का विलोपन, या अपराधी को प्रतिच्छादित करने के लिए मिथ्या इत्तिला देना परिभाषित किया गया है. आइए जानते हैं कि आईपीसी (IPC) की धारा 201 इस बारे में क्या बताती है?

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आईपीसी की धारा 201 (Indian Penal Code Section 201)
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 201 (Section 201) के तहत अपराध के सबूतों (evidence of crime) को मिटाना या अपराधी को झूठी इत्तिला (False information) देना परिभाषित (Define) किया गया है. IPC की धारा 201 के अनुसार, अपराध के साक्ष्य का विलोपन, या अपराधी को प्रतिच्छादित करने के लिए मिथ्या इत्तिला देना-जो कोई यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि कोई अपराध (offence) किया गया है, उस अपराध के किए जाने के किसी साक्ष्य का विलोप (Annulment of evidence), इस आशय से कारित (Caused by intent) करेगा कि अपराधी को वैध दंड (lawful punishment to the offender) से प्रतिच्छादित करे या उस आशय से उस अपराध से संबंधित कोई ऐसी इत्तिला देगा, जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है;

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सजा का प्रावधान

यदि अपराध मृत्यु से दंडनीय हो- यदि वह अपराध जिसके किए जाने का उसे ज्ञान या विश्वास है, मृत्यु से दंडनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी टंडनीय होगा;

यदि आजीवन कारावास से दंडनीय हो- और यदि वह अपराध आजीवन कारावास से, या ऐसे कारावास से, जो दस वर्ष तक का हो सकेगा, दंडनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के, कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा;

यदि दस वर्ष से कम के कारावास से दंडनीय हो- और यदि वह अपराध ऐसे कारावास से इतनी अवधि के लिए दंडनीय हो, जो दस वर्ष तक की न हो, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से उतनी अवधि के लिए, जो उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि की एक-चौथाई तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा.

इसे भी पढ़ें--- IPC Section 200: जान बूझकर झूठी घोषणा को सच के रूप में इस्तेमाल करने पर लगेगी ये धारा 

क्या होती है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.

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अंग्रेजों ने लागू की थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.

 

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