
Indian Penal Code: भारतीय दंड संहिता में न्यायिक कार्यवाही (Court proceedings) से संबंधित कई तरह के प्रावधान मिलते हैं. इसी प्रकार आईपीसी की धारा 202 (IPC Section 202) में इत्तिला देने के लिये आबद्ध व्यक्ति द्वारा अपराध की इत्तिला देने का साशय लोप करना परिभाषित किया गया है. आइए जानते हैं कि आईपीसी (IPC) की धारा 202 इस बारे में क्या जानकारी देती है?
आईपीसी की धारा 202 (Indian Penal Code Section 202)
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 202 (Section 202) में उस शख्स के बारे में सजा का प्रावधान (Punishment provision) मिलता है, जो इत्तिला देने के लिये आबद्ध होते हुए भी अपराध की इत्तिला (Information of crime) देने का साशय लोप करेगा. IPC की धारा 202 के अनुसार, जो कोई यह जानते हुए, या यह विश्वास करने का कारण (Reason to believe) रखते हुए कि कोई अपराध (Offence) किया गया है, उस अपराध के बारे में कोई इत्तिला (Information) , जिसे देने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध (Legally bound) हो, देने का साशय लोप (Intentional omission) करेगा, वह अपराधी (Offender) माना जाएगा.
सजा का प्रावधान (Punishment provision)
ऐसा करने वाले दोषी को किसी भांति के कारावास से दंडित (Punished with imprisonment) किया जाएगा. जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी. साथ ही उस पर जुर्माना (Fine) किया जाएगा. या फिर उसे दोनों तरह से दंडित किया जाएगा. यह एक जमानतीय (Bailable) और गैर-संज्ञेय अपराध (Non-cognizable offenses) है. जिसकी सुनवाई किसी भी वर्ग के मजिस्ट्रेट (Magistrate) द्वारा की जा सकती है. यह अपराध समझौता योग्य नहीं (Not negotiable) है.
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क्या होती है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.