
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 96 (Sction 96) से लेकर धारा 106 (Section 106) तक आत्मरक्षा (Self defense) के अधिकारों की विधिपूर्ण परिभाषा (Legal definition) मौजूद है. ऐसे ही आईपीसी की धारा 100 (IPC Section 100) यह बताती है कि मृत्यु कारित करने के लिए शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार कब लागू होता है? आइए जान लेते हैं कि आईपीसी की धारा 100 इस बारे में क्या प्रावधान करती है?
आईपीसी की धारा 100 (Indian Penal Code Section 100)
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 100 (Section 100) में शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार (Rright of private defense) का विस्तार मृत्यु कारित करने पर कब होता है? IPC की धारा 100 के मुताबिक, शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार पूर्ववर्ती अंतिम धारा में वर्णित निर्बन्धनों के अधीन रहते हुए, हमलावर की स्वेच्छया मृत्यु कारित करने या कोई अन्य अपहानि कारित करने तक है, यदि वह अपराध, जिसके कारण उस अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, निम्नलिखित में से किसी भी प्रगणित प्रकार का है, अर्थात्–
पहला- ऐसा हमला जिससे युक्तियुक्त रूप (Reasonable form) से यह आशंका कारित (Cause of apprehension) हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम (Result of attack) मृत्यु (Death) होगा;
दूसरा- ऐसा हमला जिससे युक्तियुक्त रूप (Reasonable form) से आशंका कारित (Cause of apprehension) हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम (Result of attack) घोर उपहति (Grievous hurt) होगा;
तीसरा- बलात्संग करने के आशय से (Intent to commit rape) किया गया हमला (Assault);
चौथा- प्रकृति-विरुद्ध काम (Work against nature)-तृष्णा की तृप्ति (Gratification of craving) के आशय से किया गया हमला;
पांचवां- व्यपहरण या अपहरण (kidnapping) करने के आशय से किया गया हमला;
छठा- इस आशय से किया गया हमला कि किसी व्यक्ति का ऐसी परिस्थितियों में सदोष परिरोध (Wrongful confinement under circumstances) किया जाए, जिनसे उसे युक्तियुक्त रूप (Reasonable form) से यह आशंका कारित (Cause of apprehension) हो कि वह अपने को छुड़वाने के लिए लोक प्राधिकारियों (Public authorities) की सहायता प्राप्त नहीं कर सकेगा.
सातवां- तेजाब फेकने का कार्य (Acid-throwing) या प्रयास करना जिससे यथोचित रूप (Reasonably) से आशंका कारित (Cause of apprehension) हो कि अन्यथा ऐसे कृत्य का परिणाम (Result of action) घोर क्षति (Serious damage) होगा.
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क्या होती है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.