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भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) में धारा 96 (Section 96) से लेकर धारा 106 (Section 106) तक आत्मरक्षा (Self defense) के प्रावधान दर्ज किए गए हैं. ऐसे ही आईपीसी की धारा 104 (IPC Section 104) यह बताती है कि जब इस तरह के अधिकार का विस्तार मृत्यु के अलावा कोई नुकसान पहुंचाने तक होता है. आइए जानते हैं कि आईपीसी की धारा 104 इसके बारे में क्या बताती है?
आईपीसी की धारा 104 (Indian Penal Code Section 104)
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 104 (Section 104) में बताया गया है कि जब ऐसा अधिकार मृत्यु के अलावा किसी भी नुकसान का कारण बनता है. IPC की धारा 104 के मुताबिक, वो अपराध, जिसे करने या करने का प्रयास करने के दौरान निजी रक्षा के अधिकार का प्रयोग का अवसर आता है, ऐसी चोरी, शरारत, या आपराधिक अतिचार हो, पिछले पूर्ववर्ती खंड में वर्णित किसी भी विवरण में से नहीं, यह अधिकार मृत्यु के स्वैच्छिक कारण तक विस्तारित नहीं होता है, लेकिन उसका विस्तार धारा 99 में उल्लिखित प्रतिबंधों के अधीन, स्वैच्छिक रूप से गलत-कर्ता की मौत के अलावा किसी भी नुकसान का कारण होने तक होता है.
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क्या होती है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.