
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) यानी IPC कानून व्यवस्था से जुड़े महत्वपूर्ण शब्दों (Important words) को भी परिभाषित (defined) करती है. आईपीसी की धारा 20 ऐसे ही एक शब्द की व्याख्या करती है, जिसका संबंध न्यायालय (Court) से है. तो आइए जानते हैं कि आईपीसी (IPC) की धारा 20 (Section 20) क्या है? और यह क्या प्रावधान (Provision) करती है?
आईपीसी की धारा 20 (IPC Section 20)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 20 (Section 20) के अनुसार, न्यायालय (Court) शब्द उस न्यायाधीश (judge) का, जिसे अकेले ही को न्यायिकत: कार्य करने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो, या उस न्यायाधीश-निकाय का, जिसे एक निकाय के रूप में न्यायिकत: कार्य करने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो, जबकि ऐसा न्यायाधीश या न्यायाधीश-निकाय न्यायिकत: कार्य कर रहा हो, द्योतक है.
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ये होती है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक द्वारा किये गये कुछ अपराधों की परिभाषा और दंड का प्रावधान करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत के पहले कानून आयोग की सिफारिश पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.