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IPC: जानिए, क्या होती है आईपीसी की धारा 270, कितनी मिलती है सजा

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 270 के तहत ऐसे मामले आते हैं, जो किसी गंभीर बीमारी को फैलाने के लिए जिम्मेदार हों या ऐसे कोई काम जिसकी वजह से किसी दूसरे शख्स की जान को खतरा हो.

IPC की धारा 270 का संबंध नैतिक शिक्षा और शिष्टाचार से जुड़ा है IPC की धारा 270 का संबंध नैतिक शिक्षा और शिष्टाचार से जुड़ा है
परवेज़ सागर
  • नई दिल्ली,
  • 10 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 8:22 AM IST
  • आईपीसी के अध्याय 14 में आती है धारा 270
  • जनता से जुड़े कई मामलों में होता है इस्तेमाल
  • सजा और जुर्माने का है प्रावधान

भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC में महामारी एक्ट यानी धारा 188 (Section 188) के जैसे ही कई और प्रावधान भी मौजूद है. इनमें से एक है धारा 270 (Section 270). इस धारा के तहत नैतिकता और स्वास्थ से संबंधित मामले आते हैं. क्या है इस धारा का मतलब आइए जानते हैं.

क्या है IPC की धारा 270 (Section 270)

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भारतीय दंड संहिता की धारा 270 के तहत ऐसे मामले आते हैं, जो किसी गंभीर बीमारी को फैलाने के लिए जिम्मेदार हों या ऐसे कोई काम जिसकी वजह से किसी दूसरे शख्स की जान को खतरा हो. धारा 270 आईपीसी के अध्याय 14 में आती है, जिसमें जनता के स्वास्थ्य, सुरक्षा, सुख, शिष्टाचार और नैतिकता को प्रभावित करने वाले अपराध शामिल होते हैं. 

ये है सजा का प्रावधान

धारा 270 के तहत दोषी करार दिए जाने पर 2 साल की सजा या जुर्माना हो सकता है. या विशेष हालात में अदालत दोषी को दोनों ही प्रकार से दंडित कर सकती है.

इसे भी पढ़ें--- Law and Order: जानिए, क्या होता है पुलिस अधिनियम, कैसे करता है काम 

क्या है भारतीय दंड संहिता (IPC)

भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक द्वारा किये गये कुछ अपराधों की परिभाषा और दंड का प्रावधान करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.

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अंग्रेजों ने लागू की थी आईपीसी

ब्रिटिश काल में लागू हुई थी आईपीसीब्रिटिश कालीन भारत के पहले कानून आयोग की सिफारिश पर आईपीसी 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता के तौर पर 1 जनवरी 1862 को लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे.

 

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