
Indian Penal Code यानी भारतीय दंड संहिता में अपराध (Crime) और उनकी सजा (Punishment) के साथ-साथ कानून (Law) से जुड़े प्रावधान (Provisions) मौजूद हैं. आईपीसी (IPC) की धारा 31 (Section 31) में 'विल' को परिभाषित किया गया है. आइए जानते हैं कि आईपीसी (IPC) की धारा 31 (Section 31) इस बारे में क्या जानकारी देती है?
आईपीसी की धारा 31 (IPC Section 31)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 31 (Section 31) हमें बताती है कि आखिर 'विल' (a will) क्या होती है. इसका संबंध किस बात से है. दरअसल, IPC की धारा 31 के अनुसार विल (a will) शब्द किसी भी वसीयती दस्तावेज (Testamentary document) का द्योतक (Denote) है.
साधारण भाषा में कहें तो आईपीसी (IPC) की धारा 31 (Section) ये कहती है कि वसीयत से जुड़ा कोई भी दस्तावेज (Document) 'विल' कहा जाता है. अक्सर लोग वकील (Advocate) की मदद से वसीयत करते हैं या बनवाते हैं. उस प्रक्रिया (Procedure) में तैयार किए गए दस्तावेज (Document) को ही विल कहते हैं.
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क्या होती है IPC?
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक द्वारा किये गये कुछ अपराधों की परिभाषा और दंड का प्रावधान करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
किसने लागू की थी IPC?
ब्रिटिश कालीन भारत के पहले कानून आयोग की सिफारिश पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.