
Indian Penal Code यानी भारतीय दंड संहिता अपराध (Offence), कानून (Law) और उनसे जुड़े प्रावधानों (Provisions) की जानकारी देती है. साथ अपराध से जुड़ी सजा (Punishment) के बारे में भी बताती है. आईपीसी (IPC) की धारा 38 (Section 38) भी किसी अपराध में शामिल आरोपी (Accused) के दूसरे मामलों में दोषी (Guilty) होने के संबंध में बताती है. तो चलिए जानते हैं कि आईपीसी (IPC) की धारा 38 इस बारे में क्या बताती है?
आईपीसी की धारा 38 (IPC Section 38)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 38 (Section 38) के अनुसार आपराधिक कार्य (Criminal act) में संपॄक्त (Concerned) व्यक्ति (Persons) विभिन्न अपराधों (Different offences) के दोषी (Guilty) हो सकेंगे. IPC Section 38 के मुताबिक 'जहां कि कई व्यक्ति (Several persons) किसी आपराधिक कार्य (Criminal act) को करने में लगे हुए या सम्पॄक्त (Engaged or Concerned) हैं, वहां वे उस कार्य के आधार पर विभिन्न अपराधों (Different offences) के दोषी (Guilty) हो सकेंगे.'
साधारण भाषा में कहें तो अगर किसी अपराध को अंजाम देने में कई लोग शामिल हैं, तो उस अपराध के आधार पर उन लोगों को दूसरे आपराधिक मामलों में भी दोषी ठहराया जा सकता है.
इसे भी पढ़ें--- IPC Section 37: जानें, क्या होती है आईपीसी की धारा 37?
क्या है आईपीसी (IPC)?
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.