
Indian Penal Code: भारतीय दंड संहिता में यूं तो कई अपराध और कार्यों की परिभाषा मिलती है. लेकिन आईपीसी की धारा 96 से लेकर 106 तक आत्मरक्षा के अधिकार के प्रावधान बताए गए हैं. इसी श्रृंखला में आईपीसी की धारा 97 (IPC Section 97) शरीर तथा संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार परिभाषित करती है. आईपीसी की धारा 97 इस बारे में क्या कहती है? आइए जान लेते हैं.
आईपीसी की धारा 97 (Indian Penal Code Section 97)
भारत का संविधान हर भारतीय को अपनी सुरक्षा और संपत्ति की रक्षा (Security and protection of property) करने का मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) देता है. इसी प्रकार भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 97 (Section 97) में शरीर तथा संपत्ति (Body and of property) की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार (Right of private defence) की जानकारी दी गई है. IPC की धारा 97 के अनुसार, धारा 99 में अंतर्विष्ट निर्बन्धनों के अध्यधीन, हर व्यक्ति को अधिकार है कि, वह-
पहला- मानव शरीर (Human body) पर प्रभाव डालने वाले (Influencers) किसी अपराध के विरुद्ध (Against any offence) अपने शरीर और किसी अन्य व्यक्ति के शरीर की प्रतिरक्षा करे;
दूसरा- किसी ऐसे कार्य के विरुद्ध, जो चोरी, लूट, रिष्टि या आपराधिक अतिचार (Theft, robbery, Mischief or criminal trespass) की परिभाषा में आने वाला अपराध है, या जो चोरी, लूट, रिष्टि या आपराधिक अतिचार करने का प्रयत्न (Attempt) है, अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की, चाहे जंगम, चाहे स्थावर संपत्ति की प्रतिरक्षा करे.
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क्या होती है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.
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