
साल 2010 की बात है. उस वक्त वेस्ट बंगाल में राजनीतिक हवाएं बदल रही थीं. ममता बनर्जी विपक्ष की नेता थीं. केंद्र में रेल मंत्री भी थीं. एक आईपीएस अफसर का नाम खूब चर्चाओं में था. उनकी बेखौफ कार्यशैली ऐसी थी कि अपराधी खौफ खाते थे. वो नक्सलियों के लिए काल थे. तत्कालीन बंगाल सरकार उन पर बहुत भरोसा करती थी. यही वजह है कि किसी भी संकट में उनको ही आगे भेजा जाता था. लेकिन विपक्ष को उनकी कार्यशैली पसंद नहीं थी.
ममता बनर्जी तो उनको 'माकपा एजेंट' तक कहती थीं. उस समय उन्होंने ऐलान किया था कि जब वो सत्ता में आएंगी तो इस आईपीएस अफसर से माफी मंगवाएंगी. साल 2011 में सत्ता में आने के बाद ममता सरकार ने उनको पद से हटाकर वेटिंग में डाल दिया. लेकिन ज्यादा दिन नहीं बीते जब ममता को भी उनकी जरूरत समझ आने लगी. माओवादियों के बीच शांति वार्ता विफल होने के बाद हिंसा की आशंका को देखते हुए उन्हें वापस बुलाया गया.
जी हां, हम बात कर रहे हैं आईपीएस अफसर मनोज वर्मा की, जो कोलकाता के नए पुलिस कमिश्नर बनाए गए हैं. आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में हुए लेडी डॉक्टर रेप-मर्डर केस के बाद शहर के हालात को देखते हुए ममता बनर्जी ने उन पर बड़ा भरोसा जताया है. मनोज वर्मा ने पश्चिम बंगाल के सबसे खतरनाक समय में से एक नक्सल उग्रवाद के दौरान एक मजबूत पुलिस अफसर के रूप में अपनी साख अर्जित की है.
ध्वस्त किया था पश्चिम मेदिनीपुर में माओवादियों का गढ़
साल 2008 में जब मनोज वर्मा पश्चिम मेदिनीपुर जिले के पुलिस प्रमुख बनाए गए थे, उस वक्त वहां के हालात बहुत खराब थे. माओवादियों ने यहां अपनी जड़ें जमा ली थीं. लगभग समानांतर सत्ता स्थापित कर ली थी. उस वक्त उन्होंने दो मोर्चों पर एक साथ काम करना शुरू किया. एक तरफ वो नक्सलियों से जमकर लोहा ले रहे थे, तो दूसरी आम लोगों के साथ निरंतर संपर्क मजबूत कर रहे थे. इस तरह उन्होंने बहुत जल्द जिले में माओवादियों के गढ़ को व्यवस्थित रूप से खत्म कर दिया. साल 2010 तक जब माओवादी आंदोलन लड़खड़ाने लगा तब वो प्रशंसा और विवाद दोनों के केंद्र में थे.
कार्यशैली की आलोचना, सरकारी मोहरा होने का आरोप
विपक्ष उनकी कार्यशैली का विरोधी था. उन्होंने सुरक्षा बलों के विवादास्पद तरीकों का बचाव किया, जिसमें सालबोनी में हुआ एक एनकाउंटर भी शामिल है, जहां माओवादियों को गोली मारने के बाद उनके शव को बांस के डंडे में बांधकर ले जाया गया था. उनके आलोचकों, खासकर तृणमूल कांग्रेस और उसकी नेता ममता बनर्जी ने उन पर तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार का मोहरा होने का आरोप लगाया और उन्हें सीपीआई (एम) का एजेंट तक कहा था.
कट्टर विरोधी रहीं ममता मजबूरन मुख्य धारा में लाईं
यही ममता बनर्जी जब सत्ता में आईं और माओवादियों के साथ सरकार की शांति वार्ता विफल हो गई तो उन्होंने मनोज वर्मा को आतंकवाद विरोधी बल का नेतृत्व करने के लिए वापस लाया. उन्होंने नक्सल हिंसा को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके नेतृत्व में पुलिस ने साल 2011 में एक एनकाउंटर में शीर्ष माओवादी नेता किशनजी को मार गिराया. माओवादी नेता किशनजी की मौत नक्सल आंदोलन के लिए बहुत बड़ी झटका थी.
दार्जिलिंग में जीजेएम के हिंसक आंदोलन किया खत्म
आईपीएस अफसर मनोज वर्मा की क्षमता केवल मैदानी इलाकों तक ही सीमित नहीं है. साल 2017 में जब दार्जिलिंग में हिंसक आंदोलन चल रहे थे तो उन्हें वहां का महानिरीक्षक (आईजी) नियुक्त किया गया था. गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) द्वारा अलग गोरखालैंड राज्य के लिए आंदोलन का नेतृत्व करने के साथ ही पहाड़ियों में अराजकता फैल गई थी, जो 104 दिनों तक जारी रही. मनोज वर्मा ने यहां भी सख्त रुख अपनाया था.
ऐसे रोकी टीएमसी-बीजेपी के बीच वर्चस्व की लड़ाई
उनकी सख्त कार्रवाई की वजह से जीजेएम सुप्रीमो बिमल गुरुंग को भागने पर मजबूर होना पड़ा. यहां मिली सफलता ने उन्हें साल 2017 में सराहनीय सेवा के लिए प्रतिष्ठित पुलिस पदक सहित कई अन्य पुरस्कार दिलाए. उनकी अगली बड़ी चुनौती बैरकपुर में आई, जहां साल 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद भाजपा के बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर राजनीतिक हिंसा बढ़ गई थी. टीएमसी और बीजेपी के बीच वर्चस्व के लिए टकराव गैंगवार में बदल गया था.
लोकसभा चुनाव से पहले दी गई थी ये अहम जिम्मेदारी
बैरकपुर में पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्त होने के बाद उन्होंने फिर से अपराधियों के खिलाफ अपनी कार्रवाई शुरू कर दी. उनके नेतृत्व में राजनीतिक हिंसा पर अंकुश लगाया गया, लेकिन उनको इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी. तत्कालीन स्थानीय सांसद अर्जुन सिंह ने उन पर सत्तारूढ़ टीएमसी के पक्ष में काम करने का आरोप लगाया. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्हें पश्चिम बंगाल पुलिस का एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) नियुक्त किया गया था.
अब आईपीएस मनोज वर्मा पर टिकी हुई हैं सबकी निगाहें
अब मनोज वर्मा को 168 साल पुरानी कोलकाता पुलिस की कमान दी गई है. सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि यह अनुभवी अधिकारी यहां मौजूद तमाम चुनौतियों का सामना कैसे करेगा. क्या उनकी पिछली सफलताएं कोलकाता पुलिस के लिए आसान समय लाएंगी, यह कहना अभी जल्दीबाजी होगा, लेकिन संकट के इस समय में ममता बनर्जी ने उन्हें शहर के कानून का जिम्मा सौंपकर एक और तूफान से निपटने का काम पूरा कर लिया है.
राजस्थान में हुआ जन्म,1998 में पास किया सिविल सर्विसेज
30 सितंबर, 1968 को राजस्थान के सवाई माधोपुर में जन्मे मनोज वर्मा ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. साल 1998 में उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा पास की थी. साल 2019 में उनको मुख्यमंत्री पुलिस पदक दिया गया था. स्वतंत्रता दिवस पर ममता बनर्जी ने उन्हें सम्मानित किया था. इससे पहले उन्हें साल 2017 में राज्य सरकार का पुलिस मेडल भी मिला है. उनकी जगह आईपीएस जावेद शमीम एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) का पद संभालेंगे.