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187 बंधक, 5 हाईजैकर्स और 8 दिन... जब भारत को बदले में छोड़ने पड़े 3 खौफनाक आतंकी

फ्लाइट ने उड़ान भरी और वह 35000 फीट उंचाई पर पहुंच गया. इसी बीच प्लेन के अंदर 5 नकाबपोश और हथियारों से लैस हाईजैकर्स अचानक आ धमके. इनमें से हाईजैकर्स का चीफ इब्राहिम अख्तर पिस्टल लेकर कोकपिट के अंदर घुसा और देवी शरण को गन प्वाइंट पर ले लिया.

3 आतंकियों को रिहा किए जाने के बाद ही सभी बंधक यात्रियों को छोड़ा गया था 3 आतंकियों को रिहा किए जाने के बाद ही सभी बंधक यात्रियों को छोड़ा गया था
तन्वी गुप्ता
  • नई दिल्ली,
  • 24 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 1:59 PM IST

35000 फीट की ऊंचाई, 187 लोग और 5 हाईजैकर्स. सभी प्लेन सवार यात्रियों के सामने थी तो बस मौत. कहानी है कंधार हाइजैक की. जब तालिबान ने अपने आतंकवादियों को छुड़वाने के लिए भारतीय प्लेन IC 814 को 8 दिन के लिए हाईजैक कर लिया था. क्या था पूरा मामला, चलिए विस्तार से जानते हैं.

24 दिसंबर 1999 की तारीख थी. घड़ी में शाम के 4:30 बज रहे थे. काठमांडू के त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट से भारतीय एयरलाइन्स की फ्लाइट IC 814 नई दिल्ली के लिए उड़ान भरने के लिए तैयार थी. लेकिन नेपाल के इस एयरपोर्ट की सिक्योरिटी कुछ खास नहीं थी. IC 814 में क्रू मेंबर्स को मिलाकर कुल 187 लोग सवार थे. फ्लाइंग कमांडर कैप्टन देवी शरण ने इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए उड़ान भर दी. उनसे साथ थे फ्लाइंट इंजीनियर अनिल जागिया और को पायलट राजेंद्र कुमार.

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फ्लाइट ने उड़ान भरी और वह 35000 फीट उंचाई पर पहुंचा. इसी बीच प्लेन के अंदर 5 नकाबपोश और हथियारों से लैस हाईजैकर्स अचानक आ धमके. इनमें से हाईजैकर्स का चीफ इब्राहिम अख्तर पिस्टल लेकर कोकपिट के अंदर घुसा और देवी शरण को गन प्वाइंट पर ले लिया. वहीं, बाकी हाईजैकर्स ने यात्रियों को धमकाना और मारना शुरू किया. किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर ये सब क्या हो रहा है. प्लेन में हथियार से लैस लोग कैसे आए सब यही सोच रहे थे.

कैप्टन देवी शरण ने हाईजैकर्स से पूछा कि आखिर वे क्या चाहते हैं? जो जवाब मिला कि प्लेन को लखनऊ के रास्ते लाहौर ले चलो. कैप्टन ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि प्लेन में इतना फ्यूल नहीं है कि लाहौर तक इसे ले जाया जाए. उन्होंने जानबूझकर प्लेन की रफ्तार भी कम कर दी. लेकिन वह गन प्वाइंट पर थे, इसलिए उनके पास कोई और रास्ता भी नहीं था. लेकिन पाकिस्तान ने भी कैप्टन को लाहौर में लैंडिंग की परमिशन नहीं दी. उन्हें कहा गया कि आप पाकिस्तान एयर स्पेस में नहीं घुस सकते.

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कैप्टन ने भारत सरकार तक पहुंचाया मैसेज

पैसेंजर्स डरे हुए थे. उन्हें नहीं पता था कि उनके साथ क्या होने वाला है. बस बार-बार प्लेन को उड़ा देने की धमकी दी जा रही थी. इससे बुरा तो यह था कि अब तक इस बारे में भारतीय एविएशन्स के अधिकारियों को भी कुछ भी पता नहीं था. फिर शाम 6 बजकर 4 मिनट पर कैप्टन देवी शरण का मैसेज भारत सरकार तक पहुंचा कि प्लेन हाईजैक हो चुका है और हमारे पास सिर्फ आधे घंटे का ही फ्यूल बचा है. प्लीज हमें लाहौर में उतरने की अनुमति दिलवाएं. नहीं तो ये लोग हमें मार डालेंगे.

हाईजैक की खबर से देश में मचा हड़कंप

उस समय देश में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी. तब के सिविल एविएशन मिनिस्टर शरद यादव ने कहा कि हमारा पायलट के अलावा किसी के भी साथ कोई कम्यूनिकेशन नहीं हो पा रहा है. हाईजैकर्स के पास AK-47 है या पिस्टल कुछ भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता. यह खबर सुनने के बाद देश में हड़कंप मच गया. अब सरकार को भी इसे हैंडल करना मुश्किल भरा लग रहा था.

फ्यूल भरने से पहले ही टेकऑफ के लिए कह दिया

वहीं, प्लेन का फ्यूल खत्म होने लगा था. लेकिन तब तक देवी शरण हाईजैकर्स को प्लेन अमृतसर में लैंड करवाने के लिए राजी कर चुके थे. प्लेन काफी देर तक अमृतसर एयरपोर्ट के ऊपर मंडराता रहा. फिर करीब 7:01 मिनट पर प्लेन लैंड हुआ. सरकार चाहती थी कि प्लेन ज्यादा से ज्यादा देर अमृतसर एयरपोर्ट पर खड़ा रहे. ताकि कुछ प्लान करने का वक्त मिल जाए. लेकिन हाईजैकर्स को पता था कि भारत कोई चाल चलने वाला है. इसलिए वे पायलट को जल्द से जल्द टेकऑफ के लिए कह रहे थे. उधर पायलट एयर ट्रैफिक कंट्रोल से फ्यूल की गुहार लगा रहे थे. लेकिन दिल्ली से कमांड थी कि प्लेन को किसी भी तरह अमृतसर में ही खड़ा रखा जाए. जब फ्यूल आया तो हाईजैकर्स को उसमें कुछ गड़बड़ी दिखाई दी. उन्होंने पायलट के सिर पर पिस्टल रखकर उल्टी गिनती गिननी शुरू कर दी और कैप्टन देवी शरण से टेकऑफ करने को कहा.

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लाहौर से मिली परमिशन

कैप्टन ने शाम 7 बजकर 50 मिनट में दोबारा से उड़ान भर दी. अब जहाज लाहौर के आसमान में था. लाहौर एयरपोर्ट की बत्तियां बुझा दी गईं और प्लेन लैंड करने की परमिशन भी नहीं दी गई. लेकिन देवी शरण के पास प्लेन लैंड करवाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था. फ्यूल कुछ मिनटों के लिए ही प्लेन को हवा में रख सकता था. आखिरकार लाहौर से लैंडिंग की परमिशन मिल गई. लेकिन सिर्फ फ्यूल लेने के लिए. रात 10:30 बजे IC 814 को दोबारा टेकऑफ करना पड़ा. अब प्लेन में माहौल बिगड़ रहा था. प्लेन में मौजूद एक पैसेंजर ने जब टॉयलेट जाने की परमिशन मांगी तो हाईजैकर्स ने उसे मार दिया.

25 दिसंबर 1999 को दुबई में लैंड हुआ प्लेन

अब सभी के चेहरे पर डर साफ दिखाई दे रहा था. लाहौर से टेकऑफ करने के बाद प्लेन काबुल होते हुए मस्कट. फिर वहां से ओमान तक गया. लेकिन हाईजैकर्स ने कहीं भी उसे लैंड करने की परमिशन नहीं दी. आखिरकार 25 दिसंबर 1999 की सुबह 3 बजे प्लेन दुबई में लैंड हुआ. यहां फ्यूल भरे जाने के बदले 26 पैसेंजर्स को छोड़े जाने का समझौता हुआ. रिहा हुए ज्यादातर पैसेंजर्स बीमार, बूढ़े, औरतें और बच्चे थे. इसके बाद प्लेन ने अफगानिस्तान के काबुल की ओर उड़ान भरी. काबुल एयरपोर्ट से विमान को कंधार ले जाने के लिए कहा गया. फिर 26 दिसंबर 1999 को सुबह करीब बजे प्लेन कंधार एयरपोर्ट पर लैंड हुआ.

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तालिबान ने की ये मांग

इसके बाद प्लेन अगले 6 दिनों तक उसमें सफर कर रहे लोगों के लिए जेल बना रहा. अब शुरू हुई समझौते की बात. उस वक्त अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार थी. तालिबान ने शुरुआत में बंधक यात्रियों की रिहाई के बदले देश की अलग-अलग जेलों में बंद 36 आतंकियों को छोड़ने, एक आतंकवादी सज्जाद अफगानी की लाश सौंपने और 20 करोड़ अमेरिकी डॉलर की रकम बतौर फिरौती देने की मांग की. इनकी मांग सुनकर पूरा देश सकते में आ गया. लेकिन इस हालात से निपटना भी जरूरी था. इसलिए 27 दिसंबर 1999 को कई सख्त और तेज तर्रार ऑफिसर्स के साथ क्रैक कमांडो की टीम कंधार एयरपोर्ट पर उतरी. वहां पता चला कि तालिबानी लड़ाके पोजिशन लेकर खड़े हैं.

तीन आतंकियों की रिहाई की मांग

फिर दोबारा समझौते की बात शुरू हुई. तालिबान की तरफ से कहा गया कि उन्हें मौलाना चाहिए. अफसरों को पता ही नहीं था कि मौलाना है कौन? फिर बताया गया कि मौलाना मसूद अजहर की बात हो रही है. जो हरकत-उल-मुजाहिद्दीन का मुखिया है. बता दें, मसूद अजहर 1994 से जम्मू जेल में बंद था. दूसरा था उमर शेख, जो दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद था. तीसरा था मुश्ताक जरगर, जिस पर 40 से ज्यादा हत्याओं का आरोप था. जिसमें मारे गए ज्यादातर लोग कश्मीरी पंडित थे.

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प्लेन में लोगों का हो चुका था बुरा हाल

उधर, 5 दिन बीतने के बाद पैसेंजर्स की हालत काफी बुरी हो चुकी थी. लोगों के चेहरे पीले पड़ चुके थे. टॉयलेट ओवरफ्लो कर रहे थे. न खाने का इंतजाम था और न पीने का. जैसे-जैसे दिन बीतते जा रहे थे भारत सरकार भी पैसेंजर्स को बचाने की कोशिश तेज कर रही थी. 28 दिसंबर 1999 को डील डन हुई. तीनों आतंकियों मौलाना मसूद अजहर, उमर शेख और मुश्ताक जरगर को रिहा करने की बात तय हो गई. इसमें 36 की बजाय सिर्फ तीन आतंकियों को ही छोड़ने की बात तय की गई थी.

बंधक क्रू मेंबर्स और पैसेंजर्स को किया रिहा

31 दिसंबर को पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह तीनों आतंकियों को लेकर खुद कंधार पहुंचे ताकि कोई फैसला बदलना भी पड़े तो दिल्ली की तरफ रुख न करना पड़े. अब दो बातों पर अग्रीमेंट बन चुका था. पहला ये की तीनों आतंकियों की पहचान की जाए और दूसरा कि सभी बंधक क्रू मेंबर्स और पैसेंजर्स नीचे उतरेंगे. जिसके बाद पाकिस्तान खुफिया एजेंसी ISI के लोग तीनों आतंकियों के रिश्तेदारों को लेकर कंधार पहुंचे. उन्होंने तीनों आतंकियों को पहचान लिया. अब प्लेन से एक-एक करके क्रू मेंबर्स और पैसेंजर्स को उतारना शुरू किया गया. किसी को बहुत सी चोटें आईं थी. तो कोई खून से लथपथ था. लेकिन गनीमत थी कि सभी अभी तक जिंदा थे.

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प्लेन में हाईजैकर्स ने छोड़ा था लाल बैग

मसूद अजहर को छुड़ाने के बाद एयरपोर्ट पर पहले से खड़ी तालिबानी आतंकियों की गाड़ियां रवाना हो गईं. लेकिन आखिरकार हाईजैकर्स भी आतंकी ही तो थे. कैप्टन देवी शरण को पहले से ही पता लग चुका था कि प्लेन में आतंकियों ने एक लाल बैग छोड़ा है जिसमें कुछ तो गड़बड़ है. जिसके बाद कैप्टन ने जसवंत सिंह से कहा कि बेहतर होगा प्लेन को हम यहीं छोड़ दें. बाद में पता चला कि उस लाल बैग में 5 ग्रेनेड थे. इस पूरी घटना के बाद तालिबान का असली चेहरा दुनिया के सामने आया था, जिसकी दुनिया में काफी आलोचना भी हुई.

 

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