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मुंबईः चलती ट्रेन में चुराया था महिला यात्री का फोन, आरोपी को मिली 3 साल कैद की सजा

एक व्यक्ति रेलवे ट्रैक के पास पोल पर खड़ा था. तभी अचानक उसने आरती के हाथ पर फोन छीनने की नीयत से झपट्टा मारा, जिससे उसका मोबाइल नीचे गिर गया. झटके के कारण वह अपना संतुलन खो बैठी और वह गिरने से बाल-बाल बची.

दोषी को अदालत ने 3 साल की सजा सुनाई है दोषी को अदालत ने 3 साल की सजा सुनाई है
विद्या
  • मुंबई,
  • 26 मई 2022,
  • अपडेटेड 8:46 PM IST
  • 15 जून, 2021 की है ये मोबाइल चोरी की घटना
  • आरोपी को पुलिस ने मौके से किया था गिरफ्तार
  • तभी से जेल में बंद है आरोपी

मुंबई की एक अदालत ने एक 25 वर्षीय व्यक्ति को चलती ट्रेन में एक यात्री का फोन चोरी करने की कोशिश के आरोप में सजा सुनाई है. दरअसल, इस घटना में पीड़िता ट्रेन से गिरने वाली थी. इस तरह चोर ने उसकी जान को खतरे में डाल दिया था. इसी को मद्देनजर रखते हुए अदालत ने उसे 3 साल कैद की सजा सुनाई है.

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अभियोजन पक्ष के मुताबिक यह मामला 15 जून, 2021 का है. उस दिन आरती मेश्राम नाम की महिला ने बांद्रा थाने में सूचना दी थी कि वह अपनी मां के साथ लोकल ट्रेन से यात्रा कर रही थी. जब करीब शाम के 08.25 बजे ट्रेन प्लेटफॉर्म नंबर 1 पर खार रेलवे स्टेशन पहुंची. उस समय वह ट्रेन के दरवाजे के पास खड़ी होकर अपने मोबाइल पर बात कर रही थी.

उस समय एक व्यक्ति रेलवे ट्रैक के पास पोल पर खड़ा था. तभी अचानक उसने आरती के हाथ पर फोन छीनने की नीयत से झपट्टा मारा, जिससे उसका मोबाइल नीचे गिर गया. झटके के कारण वह अपना संतुलन खो बैठी और वह गिरने से बाल-बाल बची. उसने बामुश्किल खुद पर काबू पाया.

लोकल ट्रेन रुकी तो आरती नीचे उतरकर उस व्यक्ति के पीछे दौड़ने लगी. वह चोर-चोर चिल्लाई तो  वहां मौजूद पुलिस ने उस आरोपी व्यक्ति को पकड़ लिया. आरोपी की तलाशी ली गई तो उसके पास आरती मेश्राम का फोन बरामद हुआ. इसके बाद पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 356 (चोरी के लिए हमला), 379 (चोरी) और भारतीय रेलवे अधिनियम की धारा 150 (ई) के तहत प्राथमिकी (FIR) दर्ज ली.

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रेलवे अधिनियम की धारा 150 (ई) दुर्भावनापूर्ण रूप से ट्रेन को तोड़ने या बर्बाद करने के प्रयास के बारे में प्रावधान करती है. यह धारा निर्दिष्ट करती है कि यदि कोई किसी रेलवे के संबंध में कोई अन्य कार्य या काम करने का प्रयास करता है या इस इरादे या ज्ञान के साथ वह रेल में यात्रा करने वाले या उस पर सवार होने वाले किसी भी व्यक्ति की सुरक्षा को खतरे में डालने की संभावना होने पर दोषी को आजीवन कारावास, या कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक हो सकती है, दंडित किया जाएगा.

अदालत में आरोपी एंथनी सिगामणि ने दोषी नहीं होने की बात कही और इस पूरे मुकदमे केस दौरान वह सलाखों के पीछे था. उसने अपने बचाव में दलील देते हुए अदालत से कहा कि आरती मेश्राम मोबाइल की मालिक नहीं है और उसके पास कोई दस्तावेज नहीं है.

हालांकि, अदालत ने कहा कि आईपीसी की धारा 379 के तहत अभियोजन को यह संतुष्ट करने की आवश्यकता है कि आरती मेश्राम के कब्जे से मोबाइल उसकी सहमति के बिना लिया गया था. ऐसे में स्वामित्व का कोई सवाल ही नहीं है. मामले में रिकॉर्ड पर पर्याप्त सबूत हैं जो यह दिखाने के लिए जाते हैं कि आरती की सहमति के बिना उसके कब्जे से मोबाइल आरोपी द्वारा छीन लिया गया था. इसलिए, अभियोजन पक्ष ने साबित किया है कि आरोपी आईपीसी की धारा 379 के तहत दंडनीय अपराधी है.

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अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एसी डागा ने भी तर्क दिया कि झटके के कारण आरती गिरने वाली थी. इससे यह साबित होता है कि अपराध करने के लिए आरती मेश्राम पर बल का प्रयोग किया गया था. तदनुसार, आईपीसी की धारा 356 के तहत यह दंडनीय अपराध का मामला बनता है. अदालत ने यह तर्क भी दिया कि चूंकि मेश्राम लोकल ट्रेन से गिरने वाली थी, इससे उसकी जान को खतरा हो सकता था. इसलिए, प्रथम दृष्टया मामला भारतीय रेल एक्ट की धारा 150 (ई) के तहत दंडात्मक प्रावधान का है. 

इस केस के दोषी सिगामणि ने न्यायाधीश डागा से प्रार्थना की कि वह एक गरीब व्यक्ति है और अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला है. उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और उसकी उम्र और इस तथ्य को देखते हुए उसे न्यूनतम सजा दी जानी चाहिए.

 

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