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मुंबईः 2 साल तक सौतेली बेटी से किया रेप, डीएनए रिपोर्ट से खुलासा, सजा बरकरार

जब वह 7वीं कक्षा में पढ़ रही थी, तब उसके सौतेले पिता ने उसका यौन उत्पीड़न किया. जब भी उसकी मां काम करने के लिए बाहर जाती थी, वो दरिंदा उसे अपनी हवस का शिकार बनाता था.

आरोपी अपनी सौतेली बेटी को अकेला पाकर उसका यौन उत्पीड़न करता था आरोपी अपनी सौतेली बेटी को अकेला पाकर उसका यौन उत्पीड़न करता था
विद्या
  • मुंबई,
  • 11 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 5:26 PM IST
  • पिता की मौत के बाद मां ने की थी दूसरी शादी
  • यौन उत्पीड़न के कारण गर्भवती हो गई थी पीड़िता
  • डीएनए टेस्ट ने किया आरोपी पिता का खुलासा

बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपनी सौतेली बेटी के साथ बलात्कार करने वाले शख्स की सजा को बरकरार रखा है. आरोपी ने कोर्ट में राहत के लिए याचिका लगाई थी. इस मामले में 14 साल की पीड़िता के गर्भवती होने पर सौतेले पिता की करतूत सामने आई थी. इसके बाद मां ने लड़की का गर्भपात करा दिया था. लेकिन डीएनए के लिए भ्रूण के सैंपल लिए गए थे. उसी आधार पर विशेष अदालत ने आरोपी पिता को दोषी करार दिया था. 

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इस मामले की सुनवाई के बाद बॉम्बे उच्च न्यायालय ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम के तहत एक विशेष अदालत की सजा को बरकरार रखा. दोषी पिता को कोई राहत नहीं दी गई. न्यायमूर्ति संदीप के शिंदे की पीठ 36 वर्षीय मैकेनिक की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसे स्पेशल पॉक्सो कोर्ट ने इस अपराध के लिए दोषी ठहराया था और सजा सुनाई गई थी.

दरअसल, 14 वर्षीय पीड़िता के पिता की वर्ष 2000 में मौत हो गई थी. उस वक्त वह सिर्फ दो साल की थी. इसके बाद वह अपने नाना-नानी के साथ उनके घर पर रह रही थी. लेकिन साल 2010 में उसकी मां ने पुनर्विवाह कर लिया. वर्ष 2012 में पीड़िता अपनी मां, बहनों, सौतेले पिता (आरोपी) और सौतेले भाई के साथ ठाणे में रहने लगी. जब वह 7वीं कक्षा में पढ़ रही थी, तब उसके सौतेले पिता ने उसका यौन उत्पीड़न किया. जब भी उसकी मां काम करने के लिए बाहर जाती थी, वो दरिंदा उसे अपनी हवस का शिकार बनाता था.

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वो लड़की को धमकी भी देता था. यही वजह थी कि पीड़िता ने इस घटना के बारे में किसी को नहीं बताया. लेकिन लड़की के गर्भवती होने पर ये अपराध सामने आ गया. डॉक्टर ने जांच के बाद बताया कि नाबालिग लड़की 4 महीने की गर्भवती थी. इसके बाद उसकी मां ने थाने जाकर अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज कराया था. इसके बाद उसने अपनी बेटी का गर्भपात करा दिया. लेकिन फोरेंसिक स्टाफ ने डीएनए टेस्ट के लिए पीड़िता के ब्लड सैंपल लेने के साथ-साथ भ्रूण की कोशिकाओं के नमूने भी ले लिए थे. 

केस दर्ज होने के बाद पुलिस ने पीड़िता और उसकी मां का बयान दर्ज किया. इस दौरान पीड़ित लड़की ने दो अलग-अलग कहानियां पुलिस को बताईं. एक बयान में उसने कहा कि दिसंबर 2013 के आसपास जब वह स्कूल से लौट रही थी, रास्ते में एक रिक्शा चालक ने उसे रिक्शा में बैठाया और पीने के लिए पानी दिया. इसके बाद उस रिक्शा चालक ने उसका यौन उत्पीड़न किया. उसने अपने स्कूल के साथी मनीष उर्फ ​​मनोज राठौड़ के नाम का भी खुलासा किया, जिसने उसे यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया था.

लेकिन पुलिसस को जांच में पता चला कि मनीष उर्फ ​​मनोज राठौड़ एक फर्जी नाम था. ऐसा कोई छात्र लड़की के साथ स्कूल में नहीं पढ़ रहा था. पीड़िता ने शुरू में आरोपी की पहचान छिपाने के लिए अपने स्तर पर पूरी कोशिश की, लेकिन आखिरकार, 26 अप्रैल 2014 को उसने खुलासा किया कि जब घर पर कोई नहीं था तो उसके सौतेले पिता ने उसके साथ बार-बार मारपीट और उसका यौन शोषण किया था. पुलिस ने तुरंत उसके सौतेले पिता को गिरफ्तार कर लिया, और उसके टेस्ट किए गए .

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इसके फौरन बाद पीड़िता की मां का बयान भी दर्ज किया गया. हालांकि पीड़िता की मां ने अलग बयान दिए. सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति शिंदे ने उल्लेख किया कि पीड़ित लड़की ने गवाही में विस्तार से बताया कि क्या हुआ, अब इस घटना को क्रॉस-एग्जामिन किया जाना चाहिए था. लड़की ने अदालत को इसलिए सौतेल पिता नाम नहीं बताया, क्योंकि वह अपने पिता को खोने के बाद अब अपनी मां और सौतेले पिता पर ही निर्भर थी. वो अपना आश्रय खोने से डर रही थी. और उसके सौतेले पिता ने किसी को भी इस बारे में बताने पर उसे अंजाम भुगतने की धमकी भी दी थी. पीड़िता ने अदालत को बताया था कि वह अपने घर वापस नहीं जाना चाहती थी. इसलिए उसे बालिका आश्रय गृह भेजा गया. 

न्यायमूर्ति शिंदे ने कहा, "मेरे विचार में, पीड़िता का आचरण अस्वाभाविक नहीं था, और इसलिए उसने शुरू में अपने सौतेले पिता के नाम का खुलासा नहीं किया था." इस मामले में भ्रूण की डीएनए रिपोर्ट थी, जिसने आरोपी पिता को सजा तक पहुंचा दिया. जब डीएनए रिपोर्ट का नतीजा सामने आया तो अभियुक्त पिता ने इसका विरोध किया था. उसके वकीलों ने डीएनए रिपोर्ट को नहीं माना था. 

न्यायमूर्ति शिंदे ने कहा कि इस केस में आरोपी ने विशेषज्ञ को बुलाने के लिए कोई आवेदन नहीं दिया था और न ही अभियुक्त ने ये बताया कि रिपोर्ट में कैसे कमी थी, इसके लिए सबूतों में डीएनए रिपोर्ट को स्वीकार करने से पहले विशेषज्ञ को बुलाना था. ऐसे हालात में अभियुक्त ने रिपोर्ट पर आपत्ति उठाई थी. ट्रायल कोर्ट ने पहले विशेषज्ञ की जांच के बिना सबूतों में डीएनए रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया, अदालत ने पहले उसे खारिज कर दिया था.

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