Advertisement

उम्र 70 पार, जेल में गुजरे 15 साल... अब अदालत से रहम की भीख मांग रहा ये अंडरवर्ल्ड डॉन

अरुण गवली ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच के सामने याचिका दायर कर रहम की भीख मांगी है. अरुण गवली ने अपने फेफड़ों और पेट से संबंधित बीमारी का उल्लेख करते हुए सजा को माफ किए जाने की अपील की है. न्यायमूर्ति विनय जोशी और न्यायमूर्ति वाल्मीकि मेनेजेस की खंडपीठ ने अरुण गवली की याचिका पर सरकार को नोटिस जारी किया है.

अरुण गवली को कत्ल के इल्जाम में साल 2008 में गिरफ्तार किया गया था अरुण गवली को कत्ल के इल्जाम में साल 2008 में गिरफ्तार किया गया था
aajtak.in
  • मुंबई,
  • 10 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 2:39 PM IST

कत्ल के एक मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे अंडरवर्ल्ड डॉन अरुण गवली ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच के सामने याचिका दायर कर रहम की भीख मांगी है. अरुण गवली ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में याचिका दायर कर महाराष्ट्र सरकार के गृह विभाग की ओर से साल 2006 में जारी एक सर्कुलर का हवाला दिया है, जिसमें कहा गया था कि जिन दोषियों ने चौदह साल की कैद की सजा काट ली है और उनकी उम्र 65 साल हो चुकी है, उन्हें जेल से रिहा किया जा सकता है.

Advertisement

क्या कहती है गवली की याचिका

अंडरवर्ल्ड डॉन अरुण गवली मई 2008 से जेल में बंद है. उसने अदालत में याचिका दायर कर कहा है कि वह अब 70 वर्ष का हो गया है. दरअसल, साल 2006 में महाराष्ट्र सरकार ने एक सर्कुलर जारी किया था. उसी का उल्लेख करते हुए उसने कहा कि 20 जनवरी 2006 की सरकारी अधिसूचना के अनुसार वो 14 साल की कैद पूरी होने के बाद रिहा होने का हकदार है, क्योंकि उसने 65 वर्ष से अधिक की आयु पूरी कर ली है और वह पुरानी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीड़ित है.

रिट याचिका में महाराष्ट्र सरकार के 2015 के एक सर्कुलर का भी उल्लेख किया गया है. जिसमें कहा गया है कि महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत बुक किए गए अपराधी इसके हकदार नहीं हैं और उन्हें 2006 की अधिसूचना से छूट दी गई है. गवली ने महाराष्ट्र कारागार (सजाओं की समीक्षा) नियम, 1972 के नियम-6 के उप-नियम (4) की पूर्वव्यापी प्रयोज्यता को चुनौती दी है, जिसे 1 दिसंबर, 2015 की अधिसूचना के माध्यम से जोड़ा गया था. इसके नियम 6 के तहत 20 जनवरी, 2006 को मकोका अधिनियम के तहत दोषी ठहराए गए व्यक्तियों को अधिसूचना का लाभ लेने के लिए संशोधित किया गया था. रिट याचिका में उल्लेख किया गया है कि गवली को 2012 में दोषी ठहराया गया था, इसलिए 2015 की अधिसूचना उस पर लागू नहीं होती है.

Advertisement

गवली ने रिट याचिका में अपने फेफड़ों और पेट से संबंधित बीमारी का उल्लेख करते हुए अपनी सजा को माफ किए जाने की प्रार्थना की है. न्यायमूर्ति विनय जोशी और न्यायमूर्ति वाल्मीकि मेनेजेस की खंडपीठ ने अरुण गवली की दायर याचिका पर नोटिस जारी किया है और 15 मार्च तक उसका जवाब देने के लिए कहा है. 

ये था पूरा मामला

साल 2007 में शिवसेना पार्षद कमलाकर जमसांडेकर को विजय गिरि नाम के एक शख्स ने साकीनाका, अंधेरी में उनके आवास पर सीधे गोली मार दी थी. जांच से पता चला कि जमसांडेकर को अरुण गवली के हुक्म पर खत्म किया गया था, जिसे जामसांडेकर के दुश्मनों ने 30 लाख रुपये की सुपारी दी थी. दरअसल, जमसांडेकर और आरोपियों के बीच एक जमीन के सौदे को लेकर विवाद था.

2008 में हुई थी गवली की गिरफ्तारी

अरुण गवली को इस मामले में मई 2008 में गिरफ्तार किया गया था, उस वक्त वह विधायक था. इसके बाद निचली अदालत ने 2012 में उसे दोषी ठहराया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी निचली अदालतों के आदेश को बरकरार रखा.

अरुण गवली की कहानी

मुंबई धमाकों के बाद सभी बड़े अंडरवर्ल्ड डॉन मुंबई छोड़ चुके थे. पूरा मैदान खाली था. अब जुर्म के दो खिलाड़ी ही मैदान में थे. वो खिलाड़ी थे अरुण गवली और अमर नाइक. दोनों के बीच मुंबई के तख्त को लेकर गैंगवार शुरू हो चुका था. अरुण गवली के शार्पशूटर रवींद्र सावंत ने 18 अप्रैल 1994 को अमर नाइक के भाई अश्विन नाइक पर जानलेवा हमला किया लेकिन वह बच गया. 

Advertisement

इसके बाद मुंबई पुलिस ने 10 अगस्त 1996 को अरुण के दुश्मन अमर नाइक को एक मुठभेड़ में ढ़ेर कर दिया. और उसके बाद अश्विन नाइक को भी गिरफ्तार कर लिया गया. बस तभी से मुंबई पर अरुण का राज चलने लगा. हमेशा सफेद टोपी और कुर्ता पहनने वाला अरुण गवली सेंट्रल मुंबई की दगली चाल में रहा करता था. वहां उसकी सुरक्षा के कड़े इंतजाम थे. 

हालात ये थे कि पुलिस भी वहां उसकी इजाजत के बिना नहीं जाती थी. दगड़ी चाल बिल्कुल एक किले की तरह थी. जिसके दरवाजे भी 15 फीट के थे. वहां गवली के हथियार बंद लोग हमेशा तैनात रहा करते थे. माफिया अरुण गवली के गिरोह में सैंकड़ो लोग काम करते थे. जानकार उसके गैंग में काम करने वालों की संख्या 800 के करीब बताते थे. उसके सभी लोगों को हथियार चलाने में महारत हासिल थी. जिसके लिए बाकायदा उन्हें ट्रेनिंग दी जाती थी. 

उन सभी को हर महीने वेतन भी दिया जाता था. मुंबई के कई बिल्डर और व्यापारी अपने कारोबार को बढ़ाने और दुश्मनों को खत्म करने के लिए गवली की मदद लेते थे. गवली को इस काम से पैसा मिलता था. इसके साथ ही वो हफ्ता वसूली और रंगदारी भी करने लगा था. मुंबई में उसने मजबूती से पैर जमा लिए थे.

Advertisement

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement