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जानिए गुरमीत राम रहीम को बार-बार दी जाने वाली पैरोल से सिख समुदाय में क्यों बढ़ रही है नाराजगी!

सिख समुदाय का मानना है कि गुरमीत राम रहीम एक बलात्कारी और हत्यारा है. आरोप है कि सरकार उसे सभी सुविधाएं देकर और बाकी कैदियों के साथ भेदभाव करके सिख समुदाय के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है.

इस बार जेल से बाहर आने पर सजायाफ्ता बाबा ने तलवार से एक बड़ा केक काटा था इस बार जेल से बाहर आने पर सजायाफ्ता बाबा ने तलवार से एक बड़ा केक काटा था
मनजीत सहगल
  • मोहाली,
  • 07 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 6:39 PM IST

बलात्कार और हत्याओं के मामलों में 20 साल जेल की सजा काट रहे डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को बार-बार मिलने वाली पैरोल की वजह से सिख समुदाय में नाराजगी बढ़ती जा रही है. इसी के चलते सिख संगठनों का कौमी इंसाफ मोर्चा पिछले एक महीने से अपनी सजा पूरी कर चुके सिख कैदियों की रिहाई के लिए मोहाली में प्रदर्शन कर रहा है. 

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सिख नेताओं का मानना है कि जेलों में बंद सिख कैदियों को या तो पैरोल नहीं दी जाती. अगर दी जाती है तो शर्तों के साथ. उन्हें जंजीरों में बांधकर सिर्फ कुछ घंटों की पैरोल दी जाती है. जबकि गुरमीत राम रहीम को बार-बार पैरोल दी जाती है और जेल से बाहर आने पर उसे जेड प्लस सुरक्षा, सत्संग करने की इजाजत और वीडियो आदि बनाने की छूट दी जा रही है.

सिख समुदाय का मानना है कि गुरमीत राम रहीम एक बलात्कारी और हत्यारा है. सरकार उसे सभी सुविधाएं देकर और सिर्फ कैदियो के साथ भेदभाव करके सिख समुदाय के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है.

सजायाफ्ता बाबा से फिर जुड़े नए विवाद
डेरा प्रमुख पैरोल के दौरान अपनी छवि सुधारने की हर संभव कोशिश कर रहा है. अपने चेलों को फिर से डेरे की तरफ आकर्षित करने के लिए वह ऑनलाइन सत्संग कर रहा है. हाल ही में उसने एक वीडियो भी जारी किया है. उसने अपने संदेश में लोगों के बीच बढ़ रही नशे की प्रवृत्ति को लेकर अप्रत्यक्ष रूप से सिख नेताओं पर हमला बोला. पैरोल के दौरान गुरमीत राम रहीम ने दो विवाद भी खड़े कर दिए. एक बार तलवार से केक काटकर और दूसरी बार तिरंगी बोतल हवा में उछाल कर.

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सिख समुदाय में लगातार बढ़ रहा है रोष
दरअसल सिख समुदाय पिछले काफी अर्से से जेलों में सजा पूरी कर चुके सिख कैदियों की रिहाई की मांग कर रहा है. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति और शिरोमणि अकाली दल पिछले दो सालों से इन कैदियों की रिहाई के लिए प्रयासरत है. इन कैदियों की रिहाई के लिए कई सिख संगठनों ने कौमी इंसाफ मोर्चा के बैनर तले एक महीना पहले चंडीगढ़-मोहाली मार्ग पर धरना प्रदर्शन शुरू किया था, जो लगातार जारी है. सिख संगठनों ने लगभग एक किलोमीटर लंबी सड़क को जाम कर दिया है. प्रदर्शन में हर रोज सैकड़ों लोग शामिल हो रहे हैं. किसान संगठनों ने भी कौमी इंसाफ मोर्चा को अपना समर्थन दिया है.

सिख संगठनों का आरोप है कि सरकार गुरमीत राम रहीम और सिख कैदियों के बीच भेदभाव कर रही है. एक तरफ जहां गुरमीत राम रहीम को बार-बार पेरोल दी जा रही हैं, वही सिख कैदियों को या तो पैरोल दी ही नहीं जाती और अगर दी जाती है तो कड़ी शर्तों के साथ.

एक निहंग सिख संगठन तरना दल के कमलप्रीत सिंह खालसा ने बताया कि पैरोल के मामले में सिखों के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि एक तरफ जहां बलात्कारी और हत्यारा गुरमीत राम रहीम मनमर्जी से पैरोल पर बाहर आ रहा है, वहीं सिख कैदियों को सजा पूरी होने के बावजूद भी रिहा नहीं किया जा रहा है.

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कमलप्रीत सिंह खालसा कहते हैं "हम लोग नशेड़ी नहीं हैं. अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं. अबकी बार पूरी तैयारी के साथ आए हैं. जब तक सिख कैदियों की रिहाई नहीं हो जाती हम लोग यहीं पर डटे रहेंगे. जब संविधान एक है तो फिर सिख कैदियों के साथ सौतेला व्यवहार क्यों." कमलप्रीत सिंह खालसा के मुताबिक कई सिख कैदी बेमतलब जेलों में बंद हैं, जबकि उनकी सजा पूरी हो चुकी है.

कपूरथला के गुरुद्वारा श्री हरगोबिंद साहिब से संबंध रखने वाले एक अन्य प्रदर्शनकारी हरनेक सिंह ने आज तक को बताया कि गुरमीत राम रहीम को बार-बार मिल रही पैरोल से साफ हो जाता है कि वह सरकार के लिए खास है. वो कहते हैं "ऐसा प्रतीत होता है कि संविधान सिर्फ कहने भर को है. अगर ऐसा नहीं है तो फिर सिर्फ कैदियों के साथ भेदभाव क्यों? सजा पूरी होने के बावजूद भी सरकार उनको जेल से रिहा करने में क्यों हिचक रही है?"

कौमी इंसाफ मोर्चा को अपना समर्थन दे रहे किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन एकता सिद्धूपुर के फाजिल्का जिला अध्यक्ष परगट सिंह ने कहा कि वह अबकी बार सिख धर्म की रक्षा के लिए मोर्चे में शामिल हुए हैं. उनका कहना है "हमारी एकमात्र मांग है कि सरकार सजा पूरी कर चुके सिख कैदियों को तुरंत रिहा करे क्योंकि सरकार के इस सौतेले रैवैये से सिख समुदाय में लगातार रोष पनप रहा है." 

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अकाली दल और भाजपा आमने-सामने
कभी भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी रहे शिरोमणी अकाली दल के नेता भी सिख कैदियों की रिहाई के मामले को लेकर भाजपा पर हमलावर हैं. अकाली दल के प्रवक्ता डॉ दलजीत चीमा ने कहा कि जिस तरह गुरमीत राम रहीम को बार बार पैरोल मिल रही है, उसे साबित होता है कि उसके लिए कोई कानून बना ही नहीं. डा. चीमा का कहना है "बलात्कारी और हत्यारे को बार-बार दी जा रही पैरोल से सिख समुदाय तो आहत है ही बल्कि दूसरे धर्मों के लोगों में भी नाराजगी है क्योंकि सवाल बेटियों की इज्जत का है. कानून उसे सजा दे रहा है लेकिन सरकार उसे पलकों पर बिठा रही है. जरा सोचिए सरकार की इस करगुजारी से जवान बेटियों के मातापिता को क्या संदेश जा रहा होगा." 

वहीं, जब इस मसले पर जब भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से बात की गई तो उन्होंने कहा कि डेरा प्रमुख को पैरोल नियमों के मुताबिक दी जा रही है और हर सजायाफ्ता कैदी को पैरोल हासिल करने का अधिकार है.

भाजपा की सफाई
हरियाणा भाजपा के प्रवक्ता प्रवीण आत्रे ने कहा कि कई सिख संगठनों ने 2019 में केंद्र सरकार के समक्ष सिख कैदियों की रिहाई का मामला उठाया था. केंद्र सरकार ने अक्टूबर 2019 में जारी एक अधिसूचना के अंतर्गत कुछ सिख कैदी रिहा किए थे. केंद्र सरकार ने इन कैदियों का मामला सुप्रीम कोर्ट के ध्यान में भी लाया. बलवंत सिंह राजोआना की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया. गुरु नानक देव जी के 550 में प्रकाशोत्सव के मौके पर कई कैदियों को राहत दी गई थी.

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अब 22 सिख कैदियों की रिहाई चाहते हैं संगठन
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और अकाली दल सहित कई सिख संगठनों ने 22 सिख कैदियों की रिहाई की मांग की है. इनमें से ज्यादातर आतंकवाद से जुड़े मामलों में सजा काट रहे हैं. सिख संगठनों का मानना है कि ज्यादातर कैदी अपनी सजा पूरी कर चुके हैं. 22 में से 8 तो 20 साल से ज्यादा समय से जेलों में बंद पड़े हैं. 8 में से 6 लोग पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले में सजा काट रहे हैं.

जिन कैदियों की रिहाई की मांग की जा रही है उनमें दविंदरपाल सिंह भुल्लर, हरनेक सिंह भाप, दया सिंह लाहोरिया, जगतार सिंह तारा, परमजीत सिंह भेवरा, शमशेर सिंह, गुरमीत सिंह, लखविंदर सिंह लक्खा, जगतार सिंह हवारा और बलवंत सिंह राजोआना आदि शामिल हैं.

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 2021 में गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व के मौके पर दविंदर पाल सिंह भुल्लर और गुरदीप सिंह खैरा की रिहाई की इजाजत दे दी थी लेकिन दिल्ली और कर्नाटक सरकार ने इस पर सहमति नहीं जताई इसलिए दोनों जेल से बाहर नहीं आ सके.

 

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